क्‍या यूपी में सपा-बसपा की राहें हुईं जुदा?

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आशीष बागची

आखिर जिसका अंदेशा था वही हुआ। 2019 के लोकसभा चुनावों में भारी हार के बाद यूपी में सपा-बसपा अब अलग-अलग राहों पर चलने का लगातार संकेत दे रही है।

सोमवार को बसपा की दिल्‍ली बैठक के बाद मायावती ने सपा-बसपा गठबंधन टूटने के संकेत दिए। मायावती ने इस बैठक में कहा कि गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ। वह बेहद नाराज भी दिखीं।

आमतौर पर उपचुनावों में न उतरने वाली बसपा ने आगामी छह माह में विधानसभा की 11 सीटों पर होने वाले उपचुनावों में उतरने का ऐलान कर दिया। इससे उनके गठबंधन को लेकर बदले नजरिये का पता चलता है।

बसपा को यादवों के वोट नहीं मिले-

मायावती ने कहा कि यादवों के वोट उन्हें नहीं मिले। अगर वोट मिलते तो यादव परिवार के लोग चुनाव नहीं हारते। समाजवादी पार्टी के लोगों ने गठबंधन के खिलाफ काम किया, सिर्फ मुसलमानों ने साथ दिया।

11 विधानसभा सीटों पर बसपा उप चुनाव लड़ेगी-

मायावती ने ऐलान किया कि सभी 11 विधानसभा सीटों पर बसपा उप चुनाव लड़ेगी। इससे भी संकेत मिलता है कि अब गठबंधन का अस्तित्‍व खतरे में है।

गठबंधन को महज 15 सीटें मिलीं-

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन को संयुक्त रूप से 15 सीटों पर जीत मिली है, इनमें अकेले बसपा को 10 सीटों पर सफलता मिली। उम्मीद की जा रही थी कि गठबंधन यूपी में भाजपा को तगड़ी चुनौती देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भाजपा ने प्रदेश में 62 सीटों पर जीत हासिल की।

अभी गठबंधन तोड़ने का ऐलान नहीं-

हालांकि, गठबंधन तोड़ने की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन परिणामों ने गठबंधन दलों को बेहद निराश किया है। लगता है कि गठबंधन अब अधिक दिनों तक नहीं चल पायेगा।

सपा ने भी दिये संकेत-

इससे पहले खबर आयी थी कि लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक नतीजे न मिलने से मायूस सपा पहले की तरह ही अपनी अलग राह पर चलेगी। समाजवादी कुनबे से छिटक गये लोगों को फिर से जोड़ा जाएगा। हार की समीक्षा के बाद सपा एक बार फिर संघर्ष और संवाद के रास्ते पर बढ़ेगी।

पार्टी विधानसभा उपचुनावों में पूरी ताकत से उतरने की रणनीति पर भी काम शुरू कर रही है। इसका पहला उदाहरण तब मिला जब उत्‍तर प्रदेश लोकसेवा आयोग के प्रयागराज स्थित मुख्‍यालय पर सपा कार्यकर्ताओं ने परीक्षाओं में गड़बड़ी के बाद परीक्षा नियंत्रक अंजू कटियार की गिरफ्तारी व धांधली को लेकर प्रदर्शन किया। संकेत साफ है कि सपा भी राह पर चलेगी।

क्‍यों बना था गठबंधन?

सपा ने यूपी में भाजपा को रोकने के लिए बसपा व रालोद से गठबंधन करके 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उसे अपेक्षाकृत परिणाम नहीं मिले। इसका कारण बसपा के कोर वोट का गठबंधन के बजाय भाजपा की तरफ कुछ हद तक खिसक जाना आप कह सकते हैं। यही हाल यादवों का भी रहा। इससे दोनों सपा-बसपा को ही करारा झटका लगा। सपा को तो सिर्फ पांच सीटों पर कामयाबी मिली। मुलायम परिवार के तीन सदस्य डिम्पल यादव, धर्मेंद्र यादव व अक्षय यादव चुनाव हार गए।

अभी तक प्रतिकूल टिप्‍पणी किसी ने नहीं की-

करारी हार और तमाम कयासबाजियों के बावजूद सपा-बसपा और रालोद के प्रमुख नेताओं ने गठबंधन को लेकर सार्वजनिक तौर पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है लेकिन जानकारों का कहना है कि अब बसपा के सभी 11 सीटों पर उपचुनाव लड़ने के निर्णय से सपा को भी अपने संगठन व रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। इसके संकेत अभी से मिलने शुरू हो गये हैं।

शिवपाल की वापसी के संकेत-

सपा में युवाओं के साथ ही पुराने नेताओं की राय को तवज्जो देने की बात इन दिनों कही जा रही है। सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि बसपा से गठबंधन, टिकट आवंटन से नाराजगी या पार्टी में उपेक्षा के चलते पार्टी से बाहर जाने वालों या अन्य कारणों से बिछुड़े नेताओं को फिर पार्टी से जोड़ा जाए। वे चाहते हैं कि शिवपाल की सपा में वापसी हो। शिवपाल और मुलायम पहले ही गठबंधन के खिलाफ राय व्‍यक्‍त कर चुके हैं।

मायावती का वोट सपा को कम मिला-

एक घटना का का यहां जिक्र जरूरी है। मैनपुरी से जहां से मुलायम चुनाव लड़ रहे थे वहां यादवों को बहुत बाद में पता चला कि दलितों ने एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव को वोट नहीं दिया है। चुनाव में गठबंधन होने के बावजूद समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं करने के लिए एक गांव के दलितों पर बुरी तरह हमला किया और गोलीबारी की गयी। इस बात का पता नहीं चलता, अगर उत्तर प्रदेश एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष ने एक पत्र नहीं लिखा होता।

दरअसल, आयोग के अध्यक्ष ब्रजलाल ने मैनपुरी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को पत्र लिखकर मुलायम सिंह यादव के उन यादव समर्थकों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया है, जिन्होंने समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं करने के लिए दलितों पर बुरी तरह हमला किया और गोलीबारी की।

तभी से यह सवाल पूरे प्रदेश में पूछा जाने लगा है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पार्टी को क्या मायावती का कोर वोटर माने जाने वाले सभी दलितों का वोट मिला? लोकसभा चुनावों में हार के बाद समाजवादी पार्टी के कई कार्यकर्ता दबी जुबान इस बात की लगातार चर्चा कर रहे हैं।

0 से 10 सीटों पर पहुंची BSP, 5 मिले SP को-

जब से लोकसभा चुनावों के परिणाम आये हैं तभी से यह सवाल हवाओं में तैर रहा है। यूपी की 80 लोकसभा सीटों के नतीजों पर गौर करें तो आप पायेंगे कि बीजेपी को 64 पर जीत मिली थी। कुल पड़े वोटों में से बीजेपी को 51 प्रतिशत मिला। वहीं बीएसपी 19 फीसदी वोटों के साथ 10 सीटों को जीतने में सफल रही, जबकि समाजवादी पार्टी का आंकड़ा 17 फीसदी वोट के साथ 5 पर सिमट गया। कांग्रेस पार्टी के खाते में 6 प्रतिशत वोट और मात्र एक सीट ही आई। इस स्थिति ने ही शायद सपा-बसपा की राहें जुदा करना प्रशस्‍त किया।

बसपा आमतौर पर उन चुनाव नहीं लड़ती-

यहां यह याद रखना चाहिये कि बसपा आमतौर पर उपचुनाव नहीं लड़ा करती है। यह नजरिये में भी बड़े बदलाव का संकेत है। इससे भी साबित होता है कि जल्दी ही राज्य में एसपी और बीएसपी गठबंधन टूटने वाला है।

 

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