सहमा सहमा डरा सा रहता है मन

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फोबिया एक डर है, जो सामान्य डर से अलग है। सामान्य डर वह होता है, जो परिस्थिति विशेष पर उत्पन्न होता है। मसलन किसी ने आपको डांट दिया, धमकी दी या कोई जानवर आपको काटने के लिए आ रहा हो तो उस हालत में आप में जो डर पैदा होगा, वह डर सामान्य श्रेणी का माना जाएगा। यह डर कोई बीमारी नहीं मानी जाएगी, लेकिन यही डर बाद में आपके जीवन पर नकारात्मक असर डालने लगे तो माना जाएगा कि आपको फोबिया बीमारी हो गई है। फोबिया का डर इतना अधिक हावी हो जाता है कि बाज दफा आदमी इस डर पर काबू पाने के लिए अपनी जीवन लीला हीं समाप्त कर देता है।

फोबिया एक मनोविकार है, जिसे आम तौर पर रोगी छिपाने की कोशिश करता है। रोगी को लगता है कि यदि वह इसका जिक्र करेगा तो लोग उस पर हंसेंगे। उसकी आलोचना करेंगे। रोग छिपाने की कोशिश उनके मन में अंर्तद्वंद पैदा करता है। वे उन हालातों से बचने की कोशिश करते हैं, जिनसे उनको डर पैदा होता है। यही अंर्तद्वंद फोबिया का दौरा लाता है। साइकोथेरेपिस्ट आपके मन में बैठे हुए डर को समझने की कोशिश करता है। वह उन परिस्थितियों से धीरे-धीरे आपको रूबरू कराते हुए उन परिस्थितियों के साथ आपको जीना सिखाता है। आपका आत्मविश्वास शनैः-शनैः वापस लौटना शुरू होता है। जिन्दगी पुराने ढर्रे पर लौटनी शुरू हो जाती है। इसे डिसेंसीटाइजेशन थेरेपी कहा जाता है।

फोबिया के कई प्रकार होते हैं। एक फोबिया वह होती है, जिसमें रोगी को खुले में जाने से डर लगता है। ऐसे रोगी भीड़-भाड़ के इलाके में जाने से बचते हैं। वे निहायत ही तन्हाई पसंद हो जाते हैं। रोग अधिक बिगड़ने पर वे बाहर बिल्कुल निकलना बन्द कर देते हैं। एक बीमारी सोशल फोबिया की होती है, जिसमें रोगी को मंच पर बोलने से घबराहट होती है। किसी से बात करने में झिझक होती है। उसे लगता है, सभी उसकी तरफ ही देख रहे हैं। एक डर वह होता है, जिसमें पानी, मकड़ी, कीड़े, काक्रोच, कुत्ते, ऊंचाई कारक होते हैं। यह बीमारी विशिष्ट फोबिया कहलाती है।

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आम तौर पर साइकोथेरेपिस्ट हर फोबिया का इलाज करना जरूरी नहीं समझते,परन्तु वह फोबिया रोगी के जीवन में जब नकारात्मक असर डालने लगे तो इलाज जरूरी हो जाता है। ऐसे में साइकोथेरेपिस्ट CBT (Cognitive Behavioral Therapy) देते हैं। मरीज की सोच में बदलाव लाने की कोशिश की जाती है। इस बात को रोगी भी समझता है कि उसके डर का कोई तार्किक आधार नहीं है, पर उस डर पर काबू पाने में असफल रहता है। रोगी को कभी घटी हुई घटना के पुर्नरावृति का डर सताता रहता है। साइकोथेरेपिस्ट चिंता निवारक दवाएं देने के साथ साथ रोगी का काउन्सलिंग भी करता है। वह फोबिया प्रेरक स्थिति से रोगी का साबका कराता है, मन में उठती हुई आंशकाओं को कन्ट्रोल करने का उपाय रोगी को बताता है।

मनुष्य में हर हालत में सामंजस्य बैठाने की असीमित क्षमता होती है। यही हालत काक्रोच की भी है। इसीलिए वह इस दुनिया में तब से है जब से मनुष्य है। यहां तक कि मनुष्य उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर गया तो काक्रोच भी साथ गया। वहां भी वह प्रजनन करके लौटा। मनुष्य के साथ यह साए के साथ लगा हुआ है। मनुष्य की इसे मारने की तमाम कोशिशें नाकामयाब रही हैं, क्योंकि यह सामंजस्य बैठाने में माहिर है।

फोबिया से भी लड़ने में हमें सामंजस्य बिठाना होगा. हमें यह सोचना चाहिए कि भय मन का हिस्सा है. मन का डरपोक होना नितांत हीं स्वभाविक प्रक्रिया है. मन हर उस बात से डरता है, जिससे वह नफरत करता है। इसलिए भय से सामंजस्य बिठाएं. भय को सामने आने दीजिए। उससे बिल्कुल न डरें.डर की ऊर्जा को पहचानें। फिर आप आगे आगे और डर आपके पीछे पीछे चलेगा। फिर तो आपको यह कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सहमा सहमा डरा सा रहता है।
जाने क्यों जी भरा सा रहता है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

SD Ojha एसडी ओझा

(एसडी ओझा इंजीनियर होने के अलावा विभिन्‍न विषयों पर अपने लेख आदि लिखते रहते हैं। उनके फेसबुक वाल से)

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