भारत – नेपाल विवाद: नाकामियों को छिपाने की कोशिश या चीन की शह

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भारत से सीमा विवाद की कड़ी में एक और पड़ोसी मुल्‍क नेपाल भी शामिल हो गया। नेपाल ने भारत के लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के तकरीबन 395 वर्ग किलोमीटर इलाके पर अपना हक बताया है। सिर्फ इतना ही नहीं उसने एक नया नक्‍शा भी जारी कर दिया है।

बात इतने से नहीं बनी तो नेपाली प्रधानमंत्री ने वहां कोरोना के बढ़ते संक्रमण के लिए भारत को जिम्‍मेार बता दिया। कहा कि भारत से अवैध रूप से आने वाले लोग नेपाल में कोरोना फैला रहे हैं। सवालों का उठना लाजमी है कि पहले सीमा विवाद और फिर कोरोना को लेकर इस तरह की बयानबाजी का मलतब क्‍या है ? कहीं इस नये राग के पीछे बीजिंग तो नहीं है। या नेपाल सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए इस तरह के अर्नगल बयानबाजी कर रही है।

नेपाल भारत की सीमा से लगा एक छोटा सा राज्‍य है। भारत और नेपाल की संस्‍कृति में खासी समानता है। राजशाही के दौर में 2008 तक नेपाल हिन्‍दू राष्‍ट्र हुआ करता था। वहां की तकरीबन 80 प्रतिशत आबादी हिन्‍दू है। नेपाल से हमारा रोटी-बेटी का संबंध है। पर आज की स्थिति बदली हुई है। वह हमें धमकी दे रहा है। यहां तक की उसने अपनी अपनी सेना को हमारे खिलाफ सीमा पर तैनात कर दिया है। वर्तमान हालात की बात करें तो नेपाल ने सीमा को लेकर झंझट लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन के बाद से शुरू किया है। नेपाल इस इलाके को अपना बता रहा है। नेपाल ने अपने नए नक्‍शे में लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के अलावा गुंजी, नाभी और कुटी गांवों को भी शामिल किया। नक्‍शे में शामिल कालापानी पर भारत ने सड़क बनायी है।

सुगौली संधि में इलाका भारत का है

इंडिया ने नेपाल के नये नक्‍शे को पूरी तरह खारिज किया है। नेपाल जिसे अपना कहता है वह भारत का है। इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं। नेपाल और अंग्रेजों के बीच 1816 में हुई सुगौली संधि हुई थी। सुगौली बिहार के बेतिया के पास स्थित एक छोटा सा शहर है। अपनी विस्‍तारवादी नीतियों के तहत अंग्रेजों ने नेपाल के राजा को हराया और उनके कई इलाकों पर कब्‍जा कर लिया। इसके अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति का प्रयोग करते हुए नेपाल को कुछ ऐसे इलाके भी वापस कर दिये जो भारत के हिस्‍से में आते थे। मूलत: उन इलाकों पर भारत का अधिकार था। जिसे भारत दस्‍तावेजों के आधार पर साबित भी कर चुका है। पर नेपाल इसे मानने को तैयार नहीं है।

नये संविधान का विरोध और अघोषित आर्थिक प्रतिबंध

भारत और नेपाल के संम्‍बन्‍धों में आयी गिरावट की एक बड़ी वजह भारत का उसके नये संविधान को लेकर संतुष्‍ट न हो पाना भी है। इस मसले को हम इन प्‍वांइंटस के जरिये समझ सकते हैं।

-2015 में  नेपाल ने अपने नये संविधान को लागू किया।

-इंडिया ने इस संविधान को सकारात्‍मक रूप से नहीं लिया

-भारत का मानना था कि नेपाल का यह संविधान वहां के अल्‍पसंख्‍यक मधेशिया के हितों की रक्षा नहीं करता है।

-मधेशिया सांस्‍कतिक और सामाजिक रूप से भारत के अधिक करीबी हैं ।

-भारत नेपाल के संविधान में संशोधन चाहत था और उसने नेपाल पर अघोषित आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिये गये।

-नेपाल में पेट्रोल डीजल से लेकर दूसरे जरुरत के सामानों की भारी कमी हो गयी।

-जिसका नतीजा रहा कि नेपाल के लोगों में भारत विरोध की एक लहर बन गयी। ।

ओली का भारत विरोध, चीन को मिला मौका

वामपंथी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी भारत विरोध को हवा दी। यहां यह बता देना जरूरी है भारत के मदृेनजर नेपाल चीन के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। चीन तो पहले से ही इस तरह के मौके की तलाश में था। उसने नेपाल को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया और अपने यहां के दरवाजे नेपाल से व्‍यापार के लिए पूरी तरह से खोल दिये। इसके अलावा काठमांडू और बीजिंग के बीच इस नजदीकी की वजह दोनों सरकारों का वामपंथी विचारों का होना भी है।उधर नेपाल ने चीन से नजीदीकी बढ़ायी और इधर भारत दूरी बढ़ती गयी। अपने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले टीवी इंटरव्‍यू में पीएम ओली ने चीन के साथ अच्‍छे व्‍यापारिक संबधों की बात कही थी।

दोस्‍ती निभा रहा है चीन

 अब जबकि चीन और नेपाल की दोस्‍ती है और चीन और भारत के रिश्‍तों में टकराहट बढ़ी है तो चीन की शह पर नेपाल ये नया राग अलाप रहा है। दूसरे कोरोना का संक्रमण रोक पाने में नाकाम नेपाल सरकार ने भारत विरोध को अपने कवच के रूप में इस्‍तेमाल करने की एक चाल चली है। अगर ये मान भी लिया जाय कि भारत से आने वालों की वजह से नेपाल में कोरोना संक्रमण्‍ बढ़ रहा है तो यह भी विफलता तो नेपाल सरकार की ही है। चुंकि नेपाली 2015 के आर्थिक प्रतिबंधों के चलते पैदा हुई दुश्‍वारियों को भूले नहीं है और नेपाली सरकार उसे बार बार याद भी दिलाती रहती है ऐसे में पीएम ओली इसे कैश करा रहे हैं। हालांकि चीन के विदेश मामलों के प्रवक्‍ता शाओ लीजिआन ने भारत और नेपाल के सीमा विवाद को उनका आंतरिक मसला करार दिया है। पर चीन की बातों पर विश्‍वास नहीं किया जा सकता है।

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