‘ठंडाई’ ने भोलेनाथ को पहुंचायी थी ठंडक, कुछ ऐसी हुई थी खोज

0

बनारस की होली का रंग इसका ढंग और भंग तीनों का अपना अलग मिजाज और अंदाज है. इनकी व्‍याख्‍या करना हर किसी के बूते की बात नहीं है. पर अगर कोई बनारसी हो तो भगवान भोलेनाथ खुद उसे ऐसा करने की शक्ति प्रदान करते हैं. ऐसे ही एक बनारसी हैं वरिष्‍ठ पत्रकार और टीवी 9 भारतवर्ष के न्‍यूज डायरेक्‍टर हेमंत शर्मा. उन्‍होंने बनारसी की होली और यहां के खास पेय ठंडाई को अपने फेसबुक वाल पर सहेजने जतन किया है. सच मानिये भांग वाली ठंडाई का यह वर्णन बिना इसे उदरस्‍थ किये ही आपको मस्‍ती के रंग से सराबोर कर देगी. ठंडाई के विशेष संदर्भ में उनके शब्‍द जतन के कुंछ अंश.

वरिष्‍ठ पत्रकार हेमंत शर्मा के फेसबुक वाल से

होलीठंडाईऔर बनारस .. ये महज तीन शब्द नहींबल्कि जीवन जीने की कला हैं। इसमें कला भी हैसाहित्य भीविज्ञान और अध्यात्म भी। यहां बरसों से आबाद ठंडाई की दुकानें सत्ता-साहित्य से जुड़े लोगों का अड्डा रही हैं। जयशंकर प्रसाद और रूद्र जी तो बिना भंग की तंरग के सृजन के आयाम ही नहीं खोलते थे।बनारस का मुनक्का प्रसिद्ध है। मुनक्का का सेवन स्वास्थ्यवर्धक होता है।मुनक्के में काजू किसमिस पिस्ता बादाम का पेस्ट और उसी अनुपात में भॉंग होती है। बहुत ही स्वादिष्ट।

ठंडाई और भांग का एक अद्भुत आपसी मेल है। भॉंग की तासीर को ठंडा करने के लिए ठंडाई का आविर्भाव हुआ। इसकी भी एक कथा है। जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से निकला विष भगवान शिव ने पीकर अपने गले में धारण कर लिया था। हलाहल विष से उन्हें बहुत गर्मी लगने लगी शरीर नीला पड़ना शुरू हो गया।फिर भी शिव पूर्णतः शांत थे तब देवताओं और वैद्य शिरोमणि अश्विनी कुमारों ने भगवान शिव की तपन को शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष का प्रभाव कम करने के लिए विजया (भांग का पौधा)बेलपत्र और धतूरे को दूध में मिलाकर (ठंडाई) भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया। इससे वे विष की गर्मी भी झेल गए थे। तभी से ठंडाई में भांग मिलाकर शिव को भोग लगाते है।

Places To Visit in Varanasi | Travel & Food Guide

भारतीय वॉंग्मय में भॉंग का दूसरा नाम शिव प्रिया और विजया भी है। शिवजी को प्रिय भांग औषधीय गुणों से भरी पड़ी है। अंग्रेज़ी में इसे कैनाबीसबीड कहते है। जिसमें टेट्राहाइड्रोकार्बनबिनोल पाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीनमैंगनीजविटामिन ईमैग्‍नीशिम एवं फास्‍फोरस समेत कई पोषक तत्व होते हैं। इसे सही मात्रा में लेने से कोलेस्ट्राल नियंत्रित रहता है। क्योंकि भॉंग खून को प्यूरिफाई करने का काम करता है।ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों में इसका ज़िक्र है।सुश्रुत संहिता में गांजे के चिकित्सीय प्रयोग की जानकारी मिलती है। सुस्तीनजला और डायरिया में इसके इस्तेमाल का उल्लेख है।

अथर्ववेद में जिन पांच पेड़-पौधों को सबसे पवित्र माना गया है उनमें भांग का पौधा भी शामिल है. इसे मुक्तिखुशी और करुणा का स्रोत माना जाता है। इसके मुताबिक भांग की पत्तियों में देवता निवास करते हैं. अथर्ववेद इसे प्रसन्नता देने वाले’ और मुक्तिकारी’ वनस्पति का दर्जा देता है –

पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूमः।

दर्भो भङ्गो यवः सह ते नो मुञ्चन्त्व् अंहसः॥

पॉंच पौधों में सोम श्रेष्ठ है ऐसी औषधियों के पांच राज्यदर्भ, (भङ्ग) भांग, (यवः) जौ और (महः) बलशाली धानको (ब्रूमः) हम कहते हैं कि वे हम सबको पापसे बचावे। कहते हैं भांग और धतूरे के सेवन से ही भगवान शिव हलाहल विष के प्रभाव से मुक्त हुए थै। इसलिए शंकर को भंग पंसद है।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More