इतिहास का हिस्सा बन चुकी है Atlas साइकिल की कहानी

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3 जून को दुनिया भर में विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है। संयोग से जब इसी दिन सुबह जब देश की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी एटलस के उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद स्थित कारखाने के कर्मचारी काम के लिए पहुंचे तो गेट पर नोटिस लगा मिला कि इस इकाई को बंद कर दिया गया है और सभी कर्मचारियों को काम से हटा दिया गया है।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 1989 में शुरू हुए इस कारखाने के गेट पर एक नोटिस लगा था जिसमें लिखा था कि कारखाने को अनिश्चितकाल के लिए बंद किया जा रहा है। कंपनी के पास कारखाना चलाने का पैसा नहीं है, न ही उनके पास कोई निवेशक है। नोटिस में यह भी कहा गया था कि कंपनी 2 साल से घाटे में है और दैनिक खर्च भी नहीं निकाल पा रही है, इसलिए कर्मचारियों को ले-ऑफ पर भेजा जा रहा है। इसका अर्थ है कि कंपनी के पास उत्पादन के लिए धन नहीं है, ऐसे में कर्मचारियों को निकला नहीं जा रहा है, पर उन्हें वेतन नहीं मिलेगा, लेकिन साप्ताहिक अवकाश को छोड़कर रोजाना अपनी हाजिरी लगानी होगी।

साइकिलों का सर्वाधिक उत्पादन यहीं से-

साहिबाबाद की साइट-4 में साइकिल बनाने वाले इस कारखाने में स्थायी और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को मिलाकर लगभग 1,000 लोग काम करते थे। बताया जाता है कि साइकिलों का सर्वाधिक उत्पादन यहीं होता था। कंपनी यहां हर साल लगभग 40 लाख साइकिल बनाती थी।

बंटवारे के बाद कराची से आए जानकी दास कपूर ने साल 1951 में एटलस साइकिल कंपनी शुरू की थी। साहिबाबाद स्थित कारखाने के बंद होने से पहले कंपनी मध्य प्रदेश के मालनपुर और हरियाणा के सोनीपत की इकाइयां भी बंद कर चुकी है। बुधवार को यह नोटिस मिलने के बाद नाराज़ कर्मचारियों ने कारखाने के सामने जमा होकर प्रदर्शन भी किया। अमर उजाला की खबर के अनुसार, प्रदर्शन की सूचना पर पहुंची लिंक रोड पुलिस ने कर्मचारियों के एकत्र होने पर हल्का बल प्रयोग कर सभी को हटाया।

कंपनी के बाहर ही प्रदर्शन-

एटलस साइकिल यूनियन के महासचिव महेश कुमार ने बताया कि इस कारखाने में परमानेंट और कांट्रेक्ट आधार पर करीब एक हजार कर्मचारी काम करते हैं और वे भी पिछले 20 साल से कंपनी में हैं।

उन्होंने बताया कि बुधवार को कर्मचारी ड्यूटी पर पहुंचे तो उन्हें गार्डों ने अंदर नहीं घुसने दिया और नोटिस देखने को कहा। उन्होंने कंपनी के प्रबंधकों से इस बारे में बात करने का प्रयास किया, लेकिन किसी की बात नहीं हो सकी। कुछ देर में कर्मचारियों की भीड़ बढ़ती गई। सभी को इस बारे में मालूम हुआ तो उनका गुस्सा भड़क गया और सभी कंपनी के बाहर ही प्रदर्शन करने लगे।

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