कैसे एक मजदूर बन गया 20 कंपनियों का मालिक
मधुसूदन राव एमएमआर ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक और निदेशक हैं। इन्होंने टेलीकॉम, आईटी, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, फूड प्रोसेसिंग जैसे कई क्षेत्रों में अपनी कंपनियां खोली हैं और हर कंपनी अच्छा काम करते हुए मुनाफा कमा रही है। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने से पहले मधुसूदन ने दर-दर ठोकरें खाईं, लेकिन हार नहीं मानी। आखिरकार गांव के गरीब दलित परिवार में जन्मा एक मजदूर आज कईयों का रोल मॉडल बन चुका है। इनकी कहानी सुनकर आप भी उद्योगपति हेनरी फोर्ड के उस कथन को याद करेंगे कि ‘प्लेन हवा को चीरकर ऊपर उठता है, हवा के अनुकूल होने का इंतजार नहीं करता।’
मजदूर थे पिता
मधुसूदन के पिता एक बंधुवा मजदूर थे। सालों से वे एक जमींदार के पास काम करते आ रहे थे। उन्हें बताया गया कि उनके दादा और परदादा भी जमींदारों के यहां बंधुवा मजदूरी ही करते थे। जमींदार के यहां उनके पिता को 18-18 घंटे काम करना पड़ता था। काम पर गए तो पैसा मिलता था वरना नहीं। मधुसूदन आठ भाई-बहन थे, इन सब का पेट भरने के लिए उनकी मां को भी मजदूरी के लिए जाना पड़ा। हालात इतने खराब थे कि उनकी बड़ी बहन को छोटी उम्र में ही मां से साथ जाकर तंबाकू की फैक्ट्री में मजदूरी करनी पडी। इतनी मेहनत करने के बाद भी उनके परिवार को कई बार भूखा रहना पड़ता था।
स्कूल से जिंदगी में शुरू हुआ बदलाव
मधुसूदन की जिंदगी में बदलाव उस समय आना शुरू हुआ जब उन्हें पढ़ाई के लिए स्कूल भेजा गया। मजबूर और गरीब मजदूर मां-बाप ने फैसला किया था कि वे अपनी आठ संतानों में से दो को जरूर स्कूल भेजेंगे। मधुसूदन राव से पहले उनके बड़े भाई माधव को स्कूल भेजा गया। फिर स्कूल के लिए मधुसूदन राव को चुना गया। दोनों भाई ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की। मधुसूदन ने हमेशा अच्छे नंबर लाए। धीरे-धीरे बदलाव का दौर शुरू हो चुका था।
हॉस्टल में मिला दाखिला
मधुसूदन राव के मुताबिक उन दिनों गांव के पास ही के एक सरकारी सोशल वेलफेयर हॉस्टल के वार्डन लक्ष्मी नरसय्या की वजह से उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। लक्ष्मी नरसय्या ने मधुसूदन के पिता को इस बात के लिए मना लिया कि मधुसूदन का दाखिला हॉस्टल में करा दिया जाए। चूंकि हॉस्टल में मुफ्त में रहने, खाने-पीने की सुविधा थी सो पिता मान गए। बड़े भाई माधव की तरह ही मधुसूदन का दाखिला भी हॉस्टल में हो गया।
पॉलिटेक्निक की ली डिग्री
सोशल वेलफेयर हॉस्टल से ही मधुसूदन ने 12वीं की परीक्षा पास कर ली। बड़े भाई माधव ने बीटेक का कोर्स चुना था। मधुसूदन भी बीटेक ही करना चाहते थे। लेकिन, भाई और कुछ दूसरे लोगों ने पॉलिटेक्निक करने की सलाह दी थी। मधुसूदन को भी भाई की सलाह पर यकीन हो गया। उन्होंने फिर एंट्रेंस दिया और क्वालीफाई कर तिरुपति के श्री वेंकटेश्वरा विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। मधुसूदन ने दो साल तिरुपति और एक साल ओंगोल में पढ़ाई कर पॉलिटेक्निक डिप्लोमा हासिल कर लिया।
नहीं मिली नौकरी
जैसे ही मधुसूदन को डिप्लोमा का सर्टिफिकेट मिल गया, घर-परिवार वालों की उम्मीदें बढ़ गई। माता-पिता, भाई-बहनों को लगा कि अब मधुसूदन को अच्छी नौकरी मिल जाएगी और उसकी आमदनी से घर की गरीबी हमेशा के लिए दूर चली जाएगी। नौकरी के लिए मधुसूदन ने कई जगह अर्जियां दी। दर-दर जाकर नौकरी मांगी और कई जगह नौकरी की तलाश की। कई कोशिशों के बाद भी मधुसूदन को नौकरी नहीं मिली। वे फिर से उदास और गमगीन हो गए। माता-पिता, भाई-बहनों की उम्मीदें भी दम तोड़ने लगी थीं।
…जब करनी पड़ी मजदूरी
नौकरी नहीं मिलने पर मधुसूदन ने फैसला किया कि वे अपने दूसरे भाई-बहनों की तरह ही मजदूरी करेंगे। उनका एक भाई हैदराबाद में मिस्री का काम करता था। मधुसूदन ने अपनी भाई के यहां ही मजदूरी करनी शुरू दी। बिल्डिंगों और बंगलों के निर्माण के लिए मिट्टी और पत्थर ढोए। उन्होंने हर वो काम किया, जो निर्माणकर्मी करते हैं। चूंकि मजदूरी ज्यादा नहीं मिलती थी, तब उन्होंने इसके साथ-साथ रात में वॉचमैन का भी काम किया।
एक इंजीनियर की पड़ी नजर
एक दिन मधुसूदन टेलीफोन का एक खंभा गाढ़ने के लिए खुदाई कर रहे थे। एक इंजीनियर उनकी तरफ आया और उसने पूछा क्या तुम पढ़े लिखे हो। उन्होंने बताया कि वे पॉलिटेक्निक किए हुए हैं। इस जवाब के बाद उस इंजीनियर ने कहा कि तुम्हारे काम करने के तरीके को देखकर ही मैं समझ गया था कि तुम पढ़े-लिखे हो। कोई दूसरा मजदूर होता तो इस तरह सलीके से नाप लेकर खुदाई नहीं करता। मैंने सिर्फ तुम्हें ही देखा है, जिसने नाप लिया और साइंटिफिक तरीके से खुदाई की।
जिंदगी में आया नया मोड़
मधुसूदन उस इंजीनियर से नौकरी के लिए गिड़गिड़ाने लगे। मधुसूदन की मान-मनुहार का फायदा उन्हें मिला। वो इंजीनियर उन्हें अपने दफ्तर ले गया। मधुसूदन का इंटरव्यू शुरू हुआ। एक तरफ जहां इंटरव्यू चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ एक बड़े ठेकेदार और उपठेकेदार के बीच एक ठेके को लेकर बहस चल रही थी। उपठेकेदार ज्यादा रकम मांग रहा था। ये देखकर मधुसूदन ने बड़े ठेकेदार से वो ठेका उन्हें दे देने की गुजारिश की। मधुसूदन पर भरोसा कर उस ठेकेदार ने उन्हें वो ठेका दे दिया। इसके बाद मधुसूदन ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर आगे उन्हें एक के बाद एक नए ठेके मिलते गए।
शुरू किया स्टार्टअप
बाद में मधुसूदन ने खुद की एक कंपनी शुरू कर दी। कंपनी को ठेके मिलने लगे और काम चल पड़ा। उसके बाद मधुसूदन ने अपनी कामयाबी की कहानी को जिस तरह से आगे बढ़ाया और विस्तार दिया वो एक अद्भुत मिसाल है। मधुसूदन ने एक के बाद एक करते हुए अब तक 20 कंपनियों की स्थापना कर चुके हैं। आईटी से लेकर फूड प्रोसेसिंग तक अब उनकी कंपनियों की धाक है। मधुसूदन राव अपनी कामयाबी की वजह से अब भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में प्रसिद्ध हो गए हैं। वे दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स की आंध्रप्रदेश शाखा के अध्यक्ष भी हैं।