38 साल पहले भी मिला था ऐसा ही इंसाफ

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निर्भया कांड के चारो आरोपियों को 20 जनवरी की सुबह 5.30 बजे फांसी पर लटका दिया गया। पूरे देश ने उनकी फांसी को इंसाफ के रूप में स्वी कार किया। आपको बतायें कि तकरीबन 38 साल पहले ऐसा ही देश की जनता को ऐसा ही इंसाफ मिला था रंगा और बिल्लाल(ranga billa ) को फांसी दी गयी थी। कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला वो नरपिशाच थे जिन्होंने  साल 1978 में दो किशोर 16 साल की गीता चोपड़ा और उनके 14 साल के भाई संजय चोपड़ा को निर्ममता से मार डाला था। गीता का मर्डर करने से पहले उसका रेप भी किया गया था।

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फ़िरौती था मकसद  
नेवल आफिसर मदन चोपड़ा की बेटी गीता और संजय उस दिन एक कार में लिफ़्ट लेकर ऑल इंडिया रेडियो जा रहे थे। जहां युववाणी कार्यक्रम में उनका एक शो था। दुर्भाग्य से उन्हें लिफ़्ट दो गुंडों ने दी जो बंबई से दिल्ली आए थे.. उनकी योजना थी कि वो किसी का अपहरण कर उसके घरवालों से फ़िरौती वसूल करेंगे। उन्होंने इन बच्चों को ये सोचकर ‘किडनैप’ किया कि उनके माँ बाप के पास बहुत सारा पैसा होगा और वो उनसे लंबी फिरौती वसूलेंगे। पर ये पूरा मामला रेप और फिर हत्या में बदल गया।

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भाई की हत्या फिर बहन से रेप
वारदात की दिन बादल छाए हुए थे और सुबह से ही रह रहकर बारिश हो रही थी। मदन चोपड़ा अपने बच्चों  को 9 बजे आकाशवाणी लेने पहुंचे तो वहाँ बच्चों का कोई पता नहीं था। जब उन्होंने अंदर पूछताछ की तो उन्हें बताया गया कि गीता और संजय चोपड़ा वहाँ रिकार्डिंग के लिए पहुंचे ही नहीं। इन बच्चों को ढ़ूंढने के लिए दिल्ली और कई राज्यों की पुलिस ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी। रंगा और बिल्ला इन दोनों को बुद्धा गार्डेन की तरफ़ रिज इलाक़े में ले गए। वहां उन्होंने एक सुनसान इलाक़े में कार रोककर पहले संजय चोपड़ा की हत्या की और गीता के साथ बलात्कार किया।

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पूरा देश हिल गया था
इस जघन्यद अपराध से पूरा देश हिल गया था। पूरे देश में हत्यारों को सजा देने के लिए प्रदर्शन किया जा रहा था। उन दिनों मोरारजी देसाई की सरकार थी। संसद के दोनों  सदनों में घटना को लेकर जोरदार हंगामा हुआ। जिससे सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। बाद में रंगा बिल्लार को रेल से भागते हुए गिरफतार किया गया। मुकदमा चला और अदालत ने देानो को फाँसी की सज़ा सुनाई। जिसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरक़रार रखा। 31 जनवरी 1982 को दोनों को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। बिल्ला और रंगा किसी के भी रिश्तेदारों ने उनके शवों को स्वीकार नहीं किया और जेल की तरफ़ से ही उनकी अंतयेष्ठि की गई।

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