कश्मीर में तीन महीने में 50,000 भर्तियां हो सकती हैं तो बाकी राज्यों में क्यों नहीं

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रवीश कुमार

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के उपराज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि राज्य में 50,000 भर्तियों का पता लगाया गया है। इन पदों पर दो से तीन माह के भीतर अभियान चलाकर भर्ती कर दी जाएगी। उन्होंने यह नहीं बताया कि 50,000 पदों में से ज़्यादातर किस प्रकार के पद हैं, चतुर्थ श्रेणी के हैं या मध्य श्रेणी के हैं। दो से तीन महीने के भीतर भर्ती अभियान पूरा करने की बात कर रहे हैं।

भारत के हाल-फिलहाल के इतिहास में कहीं भी दो से तीन महीने के भीतर 50,000 भर्तियों की प्रक्रिया पूरी हुई होगी। लेकिन टीवी पर बोलना ही है तो कमी क्यों रखी जाए। हेडलाइन भी तो बनेगी कि तीन महीने में होंगी 50,000 भर्तियां।

किसी भी राज्य के लिए सरकारी नौकरियों में भर्ती की ऐसी प्राथमिकता हो, उसका स्वागत करना चाहिए। कश्मीर को लेकर हुए इस फ़ैसले से उन राज्यों के युवा भी उत्साहित और चकित हैं जिनके लिए कश्मीर का फ़ैसला किया गया है। बिहार-बंगाल से लेकर राजस्थान-मध्य प्रदेश और सबसे बड़ा प्रदेश उत्तर प्रदेश, पंजाब और दिल्ली भी शामिल है। कश्मीर की आबादी सवा करोड़ है तब वहां पर मात्र 50,000 पद ही ख़ाली मिले हैं।

उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ से अधिक है। क्या ऐसा हो सकता है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सारे विभागों के ख़ाली पदों की संख्या का पता लगाएं और कश्मीर पर आधी अधूरी जानकारी को सर-माथे पर लिए नौजवानों को बता दें। टारगेट दे दें कि तीन महीने न सही, छह महीने में भर्ती पूरी कर नियुक्ति दे देंगे। उत्तर प्रदेश सरकार दो साल में 1 लाख 37 हज़ार शिक्षकों की नियुक्ति पूरी नहीं कर पाई।

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त कर दिया था और कहा था कि इनकी जगह नए शिक्षकों की भर्ती करें क्योंकि प्राथमिक शिक्षा बच्चों के लिए अति महत्वपूर्ण है। 68,500 की भर्ती निकली उसमें से भी सारे पद नहीं भरे गए। फिर 6 जनवरी को 69000 शिक्षकों की परीक्षा हुई।

मामला कोर्ट में चला गया है। वहां तारीख़ बढ़ती जा रही है। सात महीने हो गए रिज़ल्ट नहीं निकला है। यही हाल अन्य परीक्षाओं का है, जिनके बारे में अलग से लिखने की ज़रूरत नहीं है। हिन्दी में लिख रहा हूं ताकि सभी राज्यों के अलग-अलग परीक्षा के छात्र इस समस्या में ही अपनी समस्या शामिल मान लें।

कश्मीर की तरह अन्य राज्यों की सरकारी भर्तियों में बेचैनी क्यों नहीं है। केंद्र सरकार की स्टाफ सलेक्शन कमीशन की परीक्षा को लेकर बेचैनी क्यों नहीं है। सीजीएल 2017 की परीक्षा अभी तक पूरी नहीं हो सकी है।

रेलवे के ग्रुप डी की परीक्षा में मात्र फोटो के लिए लाखों छात्रों को परीक्षा से वंचित कर दिया गया। उनसे 500 रुपये भी लिए गए जो वापस नहीं हुआ। चुनाव के समय जो बहाली निकली थी उसमें भी 500 रुपये लिए गए थे तब रेल मंत्री गोयल ने कहा था कि 400 वापस होगा। कुछ लोगों को मिला बाकी भूल ही गए।

राहुल गांधी ने एक साल के भीतर केंद्र सरकार के ख़ाली पदों को भरने का वादा किया था, नौजवानों ने उनके वादे पर भरोसा नहीं किया। उनकी हर बात का मज़ाक उड़ाने वाली बीजेपी इस बात को किनारे कर गई। उसे पता था कि इस बात का मज़ाक उड़ाएंगे तो अपना ही पर्दाफ़ाश हो जाएगा और नया वादा करना पड़ेगा।

ख़ैर अब राहुल गांधी भी इस मसले को भूल चुके हैं। कम से कम राजस्थान और मध्य प्रदेश की परीक्षाओं की ही रिपोर्ट ले लेते, वहां एक साल के भीतर भर्तियां पूरी करा देते तो युवाओं के पास जाने का मौक़ा होता। मध्य प्रदेश में भी सात महीने से शिक्षक बहाली के रिज़ल्ट का इंतज़ार हो रहा है।

यह भी सही है कि जब चुनाव आता है तब यही नौजवान अपने इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देते हैं। कश्मीर पर इनकी जानकारी वही है जो नेताओं ने प्रोपेगैंडा के तहत थमा दी है। उसे ही अंतिम मानकर घूम रहे हैं। नेताओं का भरोसा बढ़ा है कि कुछ हो जाए कश्मीर के कारण वोट तो मिलेगा ही।

अब अगर वोट बैंक के लिए नहीं किया है तो फिर बाकी राज्यों के नौजवानों को भी नौकरियां समय से दो। नौजवान भी यह सवाल तो कर ही सकते हैं कि बाकी राज्यों में भी सरकारी पदों को भर्ती करने का अभियान चला दीजिए। सिर्फ कश्मीर ही क्यों? कश्मीर के प्रोपेगैंडा को सपोर्ट करने वाले नौजवानों को भी तो कुछ मिले।

राजनेताओं को भरोसा है नौकरी नहीं देंगे तब भी कश्मीर ने इन्हें डिबेट की नौकरी दे दी है। यह भरोसा राज्यपाल को भी है। इसलिए खुलेआम कह रहे हैं कि चुनाव में अनुच्छेद 370 के सपोर्टर को पब्लिक जूते मारेगी। पब्लिक को भीड़ में बदलकर हमला करने का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है।

आपने देखा ही होगा कि इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या के आरोपी जेल से बाहर आए तो उनका फूल माला से स्वागत हुआ। अब भीड़ बनकर हत्या करने वाली पब्लिक के भरोसे एलान किया जा रहा है कि वह जूते भी मार सकती है।

उम्मीद है कि इस पब्लिक को नौकरी देने का एलान भी उसी शान से किया जाएगा। ताकि नौजवान नौकरी पाकर पहले जूते तो ख़रीद लें। फिर जूते मारते रहेंगे। ऐसा लगता है कि जनता सरकार की लठैत हो गई है, जब वह कहेगी दो चार लोगों को जूते मारने चल देगी। गर्व कीजिए गर्व। आप किसी को भी जूते मारने लायक हुए हैं।

(रवीश कुमार के ब्लॉग से)

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