क्लाइमेट चेंज की नजरों पर है साइबेरियन बर्ड्स…

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बनारस को दुनिया के दिल का नुक्ता कहना दुरुस्त होगा। बनारस की हवा मुर्दों के बदन में रूह फूंक देती है।

अगर दरिया-ए-गंगा इसके क़दमों पर अपनी पेशानी न मलता तो वह हमारी नज़रों में मोहतरम न होता। मिर्ज़ा ग़ालिब के ये बोल बनारस के घाटों से निकले और दुनिया भर में मशहूर हो गए।

ग़ालिब के जैसे हजारों बनारस के दीवाने है। इंसान ही नहीं बल्कि हर साल ऐसा लगता है कि बनारस की दीवानी ये साइबेरियन बर्ड्स भी है।

करीब 4800 का सफर तय करके ये साइबेरियन क्रेन रूस से बनारस आ जाती है। मिड-अक्टूबर से इनकी इस यात्रा की शुरुआत होती है और दिसंबर तक ये भारत के अलग-अलग जगहों पर अपना डेरा डाल लेती है।

बनारस में इनका प्रवास मार्च-अप्रैल तक चलता है और बनारस के हिसाब से इनके आगमन से ठण्ड भी बनारस में आ जाती है।

दूसरे घर जैसा-

बनारस के ये बहुत पुराने मेहमान है। इनके लिए बनारस दूसरे घर जैसा है। साइबेरिया से ये हर उन ट्रॉपिकल कन्ट्रीज की ओर जाते है जहां-जहां पर सर्दियों में ठंड कम होती है।

इनके माइग्रेशन पैटर्न की बात करें तो वह भी डिस्ट्रिब्यूटेड है। ये वह पक्षियां है जिनका माइग्रेशन सबसे लंबा होता है। इनकी ईस्टर्न पापुलेशन चीन की ओर प्रवास के लिए जाती है।

वही वेस्टर्न पापुलेशन ईरान और सेंट्रल पापुलेशन इंडिया में अपना प्रवास खोजने आ जाती है।

सतह पर पाए जाने वाले मरे हुए जानवर या पौधे इनकी स्टेपल डाइट है। इसीलिए इनके बारे में कहा जाता है कि ये वहां ज़्यादा पाए जाते है जहां पर प्रदूषण की बड़ी समस्या है।

हालांकि इसकी अभी कोई भी वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो पाई है।

विलुप्त होने की कगार माइग्रेटरी बर्ड्स-

हाल के कुछ सालों में माइग्रेटरी बर्ड्स की हालत बहुत नाजुक हो चुकी है। क्लाइमेट चेंज की वजह से अब इन्हें माइग्रेट करने में भी दिक्कत आ रही है। 84 परसेंट बर्ड्स अभी विलुप्त होने की कगार पर है।

गंगा में अब इनकी तादात भी कम हो गई है। चुकी ये बस सतह पे पाई जानी वाली चीजों को खाती है और गंगा में मटेरियल पॉल्युशन की प्रॉब्लम बहुत बड़ी है।

सतह पे अब ज़्यादातर प्लास्टिक के टुकडें, पूजा पाठ की सामग्री ही मिलती है। रिसर्च में जब इनकी बॉडी को देखा गया तब ये पता चला की इनके बॉडी में प्लास्टिक के टुकड़े ही सबसे ज्यादा थे।

यही नहीं बल्कि दुनियाभर में इनके माइग्रेशन के दौरान इनके शिकार भी इनके खौफनाक साबित हो चुके है।

तो साफ़ है की चाहे पॉलुशन कंट्रोल बोर्ड कितनी भी बुलंदियां छू कर ये बोल दे की गंगा साफ़ हो चुकी है, उनके लिए ये साइबेरियन बर्ड्स ही काफी। जिनके साथ फोटो खिंचवाने और खेलने के लिए इतनी भीड़ आ जाती है वो अब सिर्फ चंद दिनों के मेहमान है।

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