बलात्कार के आरोपों से दागदार है सभी पार्टियों के दामन

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Martand Singh

भारतीय जनता पार्टी के उन्नाव से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर लगा बलात्कार का आरोप उत्तर प्रदेश के राजनीतिक माहौल को गरमाए हुए है। इस मामले में योगी सरकार  की चौतरफा किरकिरी हो रही है, विधायक को बचाने के आरोप भी सरकार पर लग रहे है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में ये पहला मामला है जब किसी पार्टी के माननीय पर इस तरह के आरोप लगे हैं। इससे पहले भी माननीयों पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं, चाहे वो सपा हो या बसपा या वर्तमान भाजपा सरकार। हर पार्टी का दामन बलात्कार के आरोपों से दागदार है।

 मायावती का कार्यकाल भी मुक्‍त नहीं

2010 का साल था तब सूबे में बसपा की पूर्ण बहुमत की  सरकार हुआ करती थी, मायावती मुख्यमत्री थी और पूरे प्रदेश में दलित महापुरुषों के स्मारक बनवाये जा रहे थे। 2012 का विधान सभा चुनाव अभी दूर था लिहाजा राजनीति के गलियारों में अभी उतनी तपन नहीं आ पाई थी।

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तभी बांदा की एक घटना ने अचानक से प्रदेश के राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया था। बांदा के नरैनी विधानसभा के विधायक पुरुषोत्तम नाथ द्विवेदी पर शीलू नाम की एक 17 साल की लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया था। घोर हंगामा मचा, विपक्षी पार्टियों को बैठे बिठाये परमाणु बम जैसा मुद्दा मिल गया था। फिर क्या था मुँह के लांचर से आरोपों की मिसाइलें दगनी शुरू हो गई।

उल्‍टा विधायक ने पीड़िता को ही जेल भिजवाया

हंगामा मचता देख विधायक ने पुलिस के साथ मिलकर उल्टा उस लड़की को ही चोरी के आरोप में जेल भिजवा दिया था।

उस समय भी जबरदस्त सियासी हंगामा मचा था। तमाम हथकंडे विधायक की तरफ से अपनाये गए पर शीलू निषाद ने हार नहीं मानी वो लगातार लड़ती रही। वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दलों की भी खिचड़ी पक रही थी। राहुल गाँधी तो पीड़िता से मिलने उसके घर तक पहुंच गए थे। ऐसे में चौतरफा हमलों को झेलना मुख्यमंत्री मायावती के लिए मुश्किल हो गया था।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने पुरुषोत्तम नाथ द्विवेदी को पार्टी से निष्कासित कर सीबीसीआईडी जाँच के आदेश दिए थे। बाद में इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया था। सजा से बचने के लिए विधायक ने खुद को नपुंसक बताया था. लेकिन उनकी ये दलील काम नहीं आई और 5 जून, 2015 को सीबीआई की विशेष कोर्ट ने आरोपी बसपा विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी सहित तीन को दोषी करार दिया।

द्विवेदी को मिली दस साल की सजा

पूर्व बसपा विधायक को 10 साल की सजा मिली और एक लाख रुपया जुर्माना लगाया था। अब भी विधायक जेल में हैं। बुन्देलखंड की पथरीली जमीं से आये इस मामले ने बसपा की राह को आगामी चुनाव के लिए मुश्किल बना दिया था।

अखिलेश भी नहीं बचे

2012 में बसपा के बाद सत्ता में आई अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार भी अपना दामन रेप के मामलों से बचा नहीं पाई। समाजवादी पार्टी के विधायक और मंत्रियों पर भी रेप के आरोप खूब लगे। प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनने के तत्काल बाद बलरामपुर सदर से सपा विधायक जगराम पासवान को लेकर माहौल काफी गरम हो गया था।

विधायक के नौकर पर एक 12 साल की लड़की का अपने साथियो के साथ मिलकर रेप करने का आरोप लगा था। मामला चर्चा में इसलिए ज्यादा रहा क्योंकि रेप की इस घटना को विधायक के घर पर ही अंजाम दिए जाने का आरोप लगा था। औरैया ज़िले के समाजवादी पार्टी के विधायक मदन गौतम पर भी एक 19 साल की लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा। आरोप यह भी था कि विधायक ने चार महीने तक लड़की को बंधक रखा।

सबसे ज्‍यादा सियासी घमासान गायत्री पर मचा

लेकिन समाजवादी सरकार में जिस घटना ने सबसे ज्यादा सियासी घमासान मचाया वो था गायत्री प्रजापति का मामला। उस समय एक महिला ने गायत्री प्रजापति पर बलत्कार का आरोप लगाया था। अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गायत्री प्रजापति की गिनती उस समय पार्टी के कद्दावर नेताओं में होती थी। गायत्री की पहुंच सीधे मुलायम सिंह तक थी लिहाजा इस मामले ने बहुत तूल पकड़ा।

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महिला का आरोप था कि गायत्री तीन साल से उसके साथ उसकी कुछ तस्वीरों को वायरल करने का डर दिखा बलात्कार कर रहा है। महिला के मुताबिक अशोक तिवारी नाम के एक ब्यक्ति ने उसकी मुलाकात तीन साल पहले गायत्री प्रजापति से कराई थी। इसके बाद उसे नशीली चाय पिलाकर उसके साथ यौन संबंध बनाये गए। इस दौरान उसकी अश्लील तस्वीरें भी खींची गईं। इसके बाद मंत्री गायत्री प्रजापति उसे ब्लैकमेल करके आये दिन बलात्कार करने लगे। महिला ने गायत्री पर और भी कई गंभीर आरोप लगाए थे।

पीड़िता की बेटी से की थी मारपीट

महिला के मुताबिक मंत्री गायत्री प्रजापति ने उसकी 17 साल की नाबालिग बेटी से भी छेड़छाड़ की और विरोध करने पर महिला की पिटाई की और उसे जान से मारने की धमकी भी दी।

इस मांमले के बाद विपक्षी दलों ने पूरी ताकत के साथ समजवादी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। और इसका खामियाजा सपा को चुनाव में हार कर चुकाना पड़ा। उस समय भी सरकार और पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगा था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई गिरफ्तारी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गायत्री प्रजापति के खिलाफ मुकदमा लिखा गया था और कोर्ट के ही आदेश के बाद गिरफ़्तारी हुई थी। मामला अब भी कोर्ट में है और गायत्री सलाखों के पीछे।

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जब भी कोई इस तरह का कोई मामला सामने आता है तब सियासी गलियारों में खूब हल्ला मचता है। हर पार्टी एक दूसरे पर शब्द बाण छोड़ती है। सभी पार्टियां महिलाओं के सम्मान, बेटियों के सम्मान और सुरक्षा की बातें करती हैं पर उन्हीं के पार्टी के नेता उनके इन नारों और वादों की धज्जियां उड़ाते हैं।

पार्टियां भी ऐसे मामलों में कम लीपापोती का काम नहीं करती हैं। जब तक दूसरे की सरकार रहती है तब विपक्ष में बैठी पार्टियां खूब हो हल्ला मचाती हैं और अपनी सरकार के आने के बाद जैसे ही कोई उनका दोषी होता तब सारा सिस्टम कवरअप करने में लग जाता हैं। और ये चक्र ऐसे ही चलता रहता है।

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