लॉकडाउन के इस समय में बढ़ते तनाव से लड़ना होगा

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बिजनेस के सिलसिले में श्रीलंका से लौटने के बाद 14 दिनों की ‘होम क्वारंटीन’ पूरी करने वाला मृदु स्वभाव का एक नौजवान शुक्रवार को अचानक उत्तेजित हो गया और देखते-देखते घर से बाहर निकल आया। जब तक परिवार के बाकी सदस्य उसे पकड़ते, तब तक उसने 80 साल की एक वृद्ध महिला की गरदन को बुरी तरीके से काट लिया था। उसका यह विचित्र व्यवहार परिजनों के लिए समझना मुश्किल था।

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विज्ञान की भाषा में इसे ‘केबिन फीवर’ कहते हैं। यह कई दिनों तक एक सीमित स्थान पर रहने के कारण पैदा होने वाली चिंता, बेबसी और गुस्से जैसी भावना है। मनोरोग विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार घर के अंदर रहने की एकरसता और ऊब मानव-व्यक्तित्व के द्वंद्व को बढ़ा सकती हैं। दिल्ली स्थित मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के निदेशक डॉ निमेश देसाई का कहना है कि इस तरह की घटनाएं दुर्लभ हैं, मगर घरों में कैद रहने जैसी स्थिति उन लोगों को उत्तेजित कर सकती है, जो स्वस्थ दिखते तो हैं, पर मनोरोगी हैं। उनमें अप्रत्याशित व्यवहार के संकेत उभर सकते हैं। जो लोग अभी अपनी मानसिक समस्याओं का इलाज करा रहे हैं, उनके लिए तो खैर यह मुश्किल वक्त है ही।

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जाहिर है, कोरोना वायरस के खतरे से जो बेबसी और निराशा उभरी है, वह सेहतमंद लोगों में भी अवसाद या व्यग्रता बढ़़ा सकती है, जिससे उनमें चिड़चिड़ापन, अनिद्रा और स्मृति व एकाग्रता से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। एम्स (नई दिल्ली) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ राजेश सागर कहते हैं, यह ऐसा समय है, जब स्वस्थ हो चुका मनोरोगी भी बीमार पड़ सकता है, इसीलिए इस सामाजिक अलगाव के बावजूद इलाज का प्रयास जारी रहना चाहिए, जिसमें टेलीमेडिसिन एक अहम भूमिका निभा सकता है। एम्स ने शनिवार से टेलीमेडिसिन सेवाएं शुरू कर दी हैं, और स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी ऐसे लोगों की काउंसिलिंग के लिए टोल-फ्री नंबर जारी किया है।

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”कोरोना वायरस के खतरे से जो बेबसी और निराशा उभरी है, वह सेहतमंद लोगों में भी अवसाद या व्यग्रता बढ़ा सकती है।”

अत्यधिक अलग-थलग रहकर तनावपूर्ण काम करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों पर नासा ने जो शोध किया है, वह अलगाव के प्रभाव को कम करने में मददगार माना गया है, और इसका इस्तेमाल जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले सेना के जवानों व नौ-सैन्यकर्मियों के साथ-साथ अकेले रहने वाले बुजुर्गों के लिए किया जा रहा है। चूंकि लंबे मिशन की सूरत में व्यवहार में बदलाव की आशंका बढ़ जाती है, इसलिए अंतरिक्ष यात्रियों को दिमागी रूप से इस कदर प्रशिक्षित किया जाता है कि वे लंबे समय तक एक छोटी टीम के बीच खुद को बचाए रखते हैं। डॉ सागर कहते हैं, एक तंग जगह में अकेले रहने की भावना समय के साथ दरक सकती है, इसलिए उन लोगों के साथ संवाद करने पर जोर देने की जरूरत है, जो आपके साथ हैं या घर के बाहर हैं। आइसोलेशन सिर्फ शारीरिक दूरी है, सामाजिक दूरी नहीं, लिहाजा इस वक्त अपने सामाजिक मित्रों के संपर्क में बने रहना चाहिए। यानी अपने दोस्तों को फोन करें, ई-मेल से बातें करें, सोशल मीडिया पर वक्त बिताएं आदि। बातचीत करना एक बेहतर दवा है, लेकिन दुर्भाग्य से तनाव भगाने में इसकी भूमिका को कमतर माना गया है।

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अगर आप एक नियमित दिनचर्या अपनाते हैं, तो निश्चय ही तनाव और अनिश्चितता को थामने में मदद मिलेगी। डॉ सागर बताते हैं, आने वाले दिनों को लेकर अनिश्चितता है, लिहाजा हमें नई दिनचर्या अपनाने की तैयारी करनी चाहिए, जिसमें से एक है, सोशल मीडिया पर आने वाली सूचनाओं से एक दूरी बरतना।

[bs-quote quote=”(यह लेखक के अपने विचार हैं यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित है)
” style=”style-13″ align=”left” author_name=”संचिता शर्मा ” author_job=”हेल्थ एडीटर, हिन्दुस्तान टाइम्स” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/03/sanchita-sharma.jpg”][/bs-quote]

होम आइसोलेशन जरूरी है। इसे उन मजेदार चीजों को करने के एक अवसर के रूप में लेना चाहिए, जिन्हें आप हमेशा से करना चाहते थे, पर अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारण ऐसा नहीं कर सके या जिनसे जुड़ना चाहते थे, मगर जुड़ न सके। फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार विज्ञान के निदेशक डॉ समीर पारिख इसमें कुछ और जोड़ते हैं। वह बताते हैं, व्यायाम करने से भी तनाव कम किया जा सकता है, इसलिए स्पॉट जॉगिंग, सीढ़ियों पर ऊपर-नीचे करना या घर के चारों तरफ वॉकिंग करने जैसी शारीरिक गतिविधियां रोजाना 30-40 मिनट तक करनी चाहिए। चूंकि तनाव महसूस होते ही घर में तनातनी बढ़ सकती है, इसलिए तर्क-वितर्क की स्थिति बनते ही वहां से हट जाने में भी भलाई है।

 

 

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