संक्रमित अर्थव्यवस्था में आपका धन

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एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखने का मुहावरा पुराना है, लेकिन इसे इस्तेमाल करने का असली वक्त अभी आया है। हमारी याददाश्त में देश और दुनिया ने इतना बड़ा कोई संकट नहीं देखा है। अब तक इसकी तुलना सिर्फ दूसरे विश्व युद्ध से की जा रही है। लेकिन जरा सी भी चूक हुई, तो यह उससे बड़ी त्रासदी साबित हो सकती है। इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि यह डर पूरी अर्थव्यवस्था और उसकी संभावनाओं को अपनी चपेट में ले रहा है।

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देश के जाने-माने वेंचर कैपिटलिस्ट और ट्रेंड रीडर हरेश चावला ने इसके खतरों का गहराई से आकलन किया, तो वह इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर कोरोना वायरस पर अगले दो-तीन हफ्तों में निर्णायक रूप से काबू नहीं पाया जा सका, तो हम आर्थिकEconomy मोर्चे पर एक बहुत बडे़ हड़कंप की ओर बढ़ रहे होंगे। यह आजाद भारत का सबसे गंभीर, सबसे खतरनाक आर्थिकEconomy संकट होगा। यह समस्या तब एक ऐसा विकराल रूप ले लेगी, जिसे फाइनेंशियल मार्केट में ब्लैक स्वान यानी भीषण अनहोनी माना जाता है। ऐसी, जो कभी देखी, सुनी या सोची न गई हो। उनके हिसाब से सबसे बड़ी समस्या यही है कि ऐसे संकट से निपटने के लिए क्या करना है, किसी को पता नहीं है। हम जिसे आर्थिकEconomy मोर्चे पर खलबली या डिसरप्शन कह रहे हैं, उनके हिसाब से वह किसी भूचाल से कम नहीं होगा। दुनिया भर में खपत में भयानक गिरावट आने वाली है, और उसका जो असर होगा, वह पूरे अर्थतंत्रEconomy को बुरी तरह नुकसान पहुंचाएगा।

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ऐसी हालत में हमको यही लगेगा कि जितना जरूरी हो, उतना ही खर्च करें और बाकी बचाकर रखें, बशर्ते बचाने की हालत हो और नौकरी बनी रहे। हालांकि प्रधानमंत्री ने ऊंची कमाई वालों और व्यापारियों से आग्रह भी किया है कि वे अपने लिए काम करने वालों का ख्याल रखें, उनकी तनख्वाह न काटें। लेकिन यहां पर संकट कुछ और है। हल इतना आसान नहीं है। खर्च में कमी का सीधा अर्थ होने वाला है बहुत से कारोबारियों के लिए बड़ी मुश्किल। हरेश चावला का कहना है कि पिछले करीब दस वर्ष से हमारी Economy में जो रफ्तार आई, वह मोटे तौर पर करीब पांच करोड़ परिवारों की बदौलत रही। ये वे परिवार हैं, जिनको अपना भविष्य सुनहरा दिख रहा था और जो सारी सुख-सुविधाएं जुटाने और अपने शौक पूरे करने के लिए कर्ज लेकर भी खर्च करने में पीछे न थे। अब समस्या यह है कि इस पूरे दौर में कमाने वाले भारतीयों की बड़ी संख्या बचत कम और खर्च ज्यादा कर रही थी। हौसला बढ़ा हुआ था, इसलिए ऐसा चल रहा था। कोरोना के डर से हौसला अब आशंका में बदल गया है।

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इसका सबसे बड़ा असर उन अनगिनत छोटे-छोटे व्यापारियों पर पडे़गा, जो इन खर्च करने वाले लोगों की असली खिदमत कर रहे थे। ये कौन लोग हैं? ये वे लोग हैं, जिनके पास और कोई काम नहीं था, जिनके पास खोने को कुछ भी नहीं था, इसलिए जो थोड़ी-बहुत रकम इनके पास थी, उसे लगाकर इन्होंने कोई काम शुरू किया। ज्यादातर सर्विस इंडस्ट्री में हैं। और ऐसा हर आदमी एक से ज्यादा लोगों को रोजगार भी देता है। लाखों लोग काम पर लगे हुए हैं। दिखते नहीं हैं, हिसाब में नहीं हैं, मगर कमाते थे और खर्च भी करते थे। पिछले दो-तीन साल में ये कई झटके भी झेल चुके हैं। नोटबंदी, जीएसटी, एनबीएफसी घोटाले के बाद पैसे की किल्लत, मंदी का डर फैलने के साथ कारोबार में गिरावट। और अब उनके सामने और भी भयानक खतरा खड़ा है।

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पिछले दिनों यूट्यूब के एक दर्शक शफीक अंसारी ने पूछा- ‘हमारे देश की करीब 18 प्रतिशत जनता दो वक्त की रोटी के लिए रोज जद्दोजहद करती है। ये लोग घर से न निकले, तो इनका क्या होगा? कोरोना से बचे, तो भुखमरी इन्हें मार देगी।’ दूसरा सवाल मनीष कुमार ने किया, जो फूड डिलीवरी एप के साथ काम कर रहे हैं- ‘इस वक्त काम नहीं है, तो क्या करें? इसका जवाब देने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है।’ ये सिर्फ दो नमूने हैं। हो सकता है कि अभी दहशत में बड़े लग रहे हों, मगर कोरोना का संकट वक्त रहते नहीं टला, तो अपने चारों ओर ऐसे सवाल खडे़ होने वाले हैं। जिनका काम नहीं चलेगा, वे दूसरे को तनख्वाह कहां से देंगे? अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसे देशों में सरकार के पास पैसा भी है और आबादी भी कम, तो वहां की सरकार लोगों की जेब में सीधे पैसे डालने की तैयारी कर रही है। भारत में भी यह रास्ता सुझाया जा रहा है, लेकिन पैसा कहां से आएगा? रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और आर्थिक सलाहकार परिषद से जुड़े सी रंगराजन का कहना है कि भारत सरकार सबको पैसा नहीं दे सकती। संभव नहीं है। देश इससे कैसे मुकाबला करे और किसको कैसे राहत पहुंचाई जाए, इसके लिए सरकार ने एक टास्क फोर्स भी बनाई है, जो बताएगी कि क्या करना है।

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इस सबको अलग रखें, तो आपको भी तय करना है कि इस वक्त अपने पैसे का क्या करें? बैंक में रखें, सोना खरीदें या बाजार गिर गया है, तो शेयर खरीद लें। लालच भी आ रहा है और बाजार बीच-बीच में उछाल मारकर दिखा भी रहा है। मगर यहीं पर फूंक-फूंककर कदम रखना है। चर्चित फाइनेंशियल प्लानर गौरव मशरूवाला की सलाह है कि कैश इज किंग या सबसे बड़ा रुपैया को याद रखिए और अपने पास अपने जरूरी खर्चे के हिसाब से नकद पैसा जरूर रखिए। बुरे वक्त में यही काम आता है। दूसरी सलाह ईडलवाइज म्यूचुअल फंड चलाने वाली कंपनी की सीईओ राधिका गुप्ता की है। उनका भी कहना है कि आपके पास नकद पैसा हो या ऐसी जगह लगा हो, जहां से तुरंत निकल सकें, यह सबसे जरूरी है। उसके बाद अगर बचे, तब आगे निवेश की सोचिए।

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[bs-quote quote=”(यह लेखक के अपने विचार हैं, यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित है)” style=”style-13″ align=”left” author_name=”आलोक जोशी ” author_job=”वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/03/Alok-Joshi.jpg”][/bs-quote]

 

यह समय बेवजह हिम्मत दिखाने का नहीं है। बाजार गिरा हुआ है, यह सोचकर अपनी सारी बचत एक साथ कहीं न लगा दें। जो पैसा बहुत लंबे समय के लिए लगा सकते हैं, वे भी थोड़ा-थोड़ा हफ्ते-दस दिन के अंतर पर ही लगाएं। याद रखिए, जब अर्थव्यवस्थाEconomy संकट के दौर में होती है, तब बाजार में पैसा लगाने वाले लोग लंबे समय में काफी फायदा कमाते हैं। लेकिन सावधानी हमेशा जरूरी होती है।

 

 

 

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