…तो ये है सीएम योगी के कुंडल, केश और वेश-भूषा का राज़

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क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर योगी आदित्यनाथ की वेश-भूषा देश के दूसरे योगियों से अलग क्यों है? क्यों योगी आदित्यनाथ सिर पर केश नहीं रखते? क्यों उनके कपड़ों का रंग हमेशा भगवा ही रहता है? उनके कानों में जो बड़े से कुंडल है उसकी कहानी क्या है? आखिर उनके गले में काले ऊन का जनेऊ क्या कहता है? क्या ये सबकुछ सिर्फ एक परम्परा का हिस्सा है, या इसकी कोई दूसरी वज़ह भी है? बाबा गोरखनाथ के धाम में हमें जितने योगी दिखे, इसी वेश-भूषा में दिखे इसलिए इसका रहस्य समझना जरूरी हो गया, क्योंकि माना जाता है कि नाथ संप्रदाय के योगियों की शक्तियां उसी रहस्य से जुड़ी हैं।

गोरखधाम पीठ के महंत हैं योगी आदित्यनाथ

बाबा गोरखनाथ और योगी आदित्यनाथ के बीच सीधा रिश्ता ये है कि वो गोरखधाम पीठ के महंत हैं यानी बाबा गोरखनाथ के प्रतिनिधि। यहां के जानकार कहते हैं कि ‘महंत यहां गोरखनाथ के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं’। इस रिश्ते को थोड़ा और करीब से जानने के लिए हमें योगी आदित्यनाथ की वेश-भूषा को समझना होगा।

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वैसे तो देशभर के अलग अलग योगी, अलग-अलग भेष में दिखते हैं। कोई जटा-जूट वाला योगी, तो कोई बिना बाल वाला योगी. कोई नागा साधु, तो कोई गेरुए कपड़े वाला योगी। योगी आदित्यनाथ सिर पर बाल नहीं रखते। माना जाता है कि सिर पर बाल न होना नाथ संप्रदाय के योगियों की एक पहचान भी है। अगर वाकई ऐसा है, तो फिर योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ तो केश और दाढ़ी दोनों रखते थे। गोरखनाथ पीठ के योगियों ने बताया कि नाथ पंथ के योगियों के लिए दो शर्ते होती हैं। या तो पूरे केश रखे जाएं, या फिर सिर पर कोई बाल न हो।

आखिर गेरुए रंग का मतलब क्या है?

अब बारी आती है योगी आदित्यनाथ के गेरुए वस्त्र की। ये केसरिया कपड़े भी नाथ संप्रदाय से जुड़े योगियों की एक पहचान है, लेकिन सवाल ये कि आखिर गेरुए कपड़े ही क्यों? आखिर गेरुए रंग का मतलब क्या है? योगी परम्परा में गेरुआ रंग अग्नि का रुप माना जाता है जो इस बात का प्रतीक भी है कि इंसान सांसारिक मोह-माया को त्यागकर योगी बन चुका है।

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आपने योगी आदित्यनाथ के कानों में एक कुंडल भी देखा होगा। वैसे ये कुंडल सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही नहीं, नाथ संप्रदाय से जुड़ा हर साधु पहनता है जो वैराग्य का प्रतीक है। यानी इस कुंडल से ही पता चलता है कि कोई योगी किस संप्रदाय से जुड़ा है। गोरखनाथ पीठ में हमें बताया गया कि जब कोई बच्चा योगी बनने की प्रकिया में होता है, तो सबसे पहले उसके कानों में कुंडल डाले जाते हैं। अगर आप बाबा गोरखनाथ के चित्रों और प्रतिमाओं को देखेंगे, तो यहां भी ये कुंडल साफ दिखाई देगा। कहा जाता है कि ‘ये लोग कान में कुंडल पहनते हैं एक प्रतीक के तौर पर इसलिए इन्हें कनफटा योगी भी कहते हैं।’

गले में काले ऊन का जनेऊ धारण करते हैं योगी

आदित्यनाथ की तरह नाथ संप्रदाय से जुड़े योगी गले में काले ऊन का जनेऊ धारण करते हैं। इस जनेऊ के भी चार हिस्से होते हैं। पवित्रि यानी शुद्धता, रजस यानी ब्रह्मा, रुद्राक्ष यानी शिव, सतवा यानी विष्णु और सबसे नीचे होती है नादी। ये कहानी तो समझ में आ चुकी थी, लेकिन इस धाम के कुछ रहस्य थे, जिन्हें समझना अभी बाकी था। मंदिर परिसर में हमारी नज़र पड़ी अखंड धूना केंद्र पर। पता चला कि यहां की अग्नि त्रेता युग से जल रही है।

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लोग कहते हैं कि ये धूना केन्द्र बाबा के चमत्कारों का सिर्फ छोटा सा नमूना है। बताया गया कि इस धाम में हर दिन दर्जनों चमत्कार होते हैं और उन चमत्कारों का पहला सबूत है भैरो-नाथ का दरबार. हमारे सामने ही तमाम लोग इस दरबार में जा रहे थे। लाल रंग के धागे में कुछ पैसे बांधे जाते और एक त्रिशूल से साथ उन्हें दरबार में रख दिया जाता। यहां ऐसे लाखों त्रिशूल मौजूद थे। पूछा तो बताया गया कि ये सबकुछ उन मन्नतों की एक निशानी है, जो बाबा के चमत्कार से पूरी हो चुकी हैं।

चमत्कार की एक नई कहानी

मंदिर में हमें तमाम लोग मिले, जो बाबा के चमत्कार को खुद महसूस कर चुके हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं विनय रंजन तिवारी जो पेशे से पत्रकार हैं और फिलहाल एक हंसते खेलते परिवार के मुखिया भी हैं, लेकिन एक वक्त था जब जिंदगी से निराश होकर विनय ने खुदकुशी का मन बना लिया था मगर बाबा गोरखनाथ के दरबार में आते ही जैसे जिंदगी ही बदल गई। कुछ यही कहानी यशवंत की भी है। यशवंत ने बताया कि इस धाम में जाते ही कुछ ऐसी शक्तियों का अहसास होता है, जिन्हें बताया नहीं जा सकता, बस महसूस होता है।

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इस धाम में जिससे पूछा, चमत्कार की एक नई कहानी सुनाने लगा। चमत्कारों की पड़ताल करना तो मुश्किल था लेकिन इस बात की पड़ताल हो चुकी थी कि योगी आदित्यनाथ जिस परम्परा को निभा रहे हैं, वो आदिकाल से चली आ रही है और शायद अनंतकाल तक जारी रहेगी।

योगी सतयुग से कलयुग तक मौजूद

बाबा गोरखनाथ पर शोध करने वाले तमाम लोग भी इस बात का जवाब नहीं दे पाते, कि आखिर उनका ज़िक्र अलग अलग युगों में कैसे किया गया। ये कैसे हो सकता है कि कोई योगी सतयुग से कलयुग तक मौजूद हो? वहीं पंथ समुदाय से जुड़े योगियों का तर्क है कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बाबा गोरखनाथ शिव का ही एक रुप हैं और जबतक शिव का नाम रहेगा, तबतक बाबा गोरखनाथ का भी। अगले हफ्ते फिर प​ढ़िए एक नई कहानी जिसमें थोड़ा सच होगा, थोड़ा बहाना यानी आधी हक़ीक़त, आधा फ़साना। साभार

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