संस्कृत के साथ बचेगा शास्त्र, क्या हो रही है कवायद ?

देववाणी संस्कृत और शास्त्रों को सजोने का काम इण्डोलॉजी क्लासिक इनपुट सोसायटी बखूबी कर रही है.

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देववाणी संस्कृत (sanskrit) और शास्त्रों को सजोने का काम इण्डोलॉजी क्लासिक इनपुट सोसायटी बखूबी कर रही है. वर्ष 2005 में शास्त्र संरक्षण को आधुनिक तकनीक से जोड़ते हुए सामान्य जनमानस को सुलभ कराने के संकल्प के साथ स्थापित हुई संस्था ने अब तक हजारों पांडुलिपियों का संग्रह और डिजिटिलाइजेश किया है. संस्था के निदेशक डॉ. संतोष कुमार द्विवेदी ने बताया कि संस्कृत वाङ्मय यथा –धर्म, दर्शन, साहित्य, तन्त्र, योग आदि के स्थापित साहित्य का रोमन-लिपि में लिप्यंतरण कार्य उच्चारण की सुविधा के लिए हरस्व, दीर्ध, प्लुत स्वरों के निर्देश के साथ अद्यावधि चल रहा है. इसका मूल उद्देश्य संस्कृत को सामान्यजन से जोड़ना है.

हजारों पांडुलिपियों का किया डिजिटिलाइजेशन

इस संस्था के माध्यम से कर्नाटका राज्य के मैसूर क्षेत्र में दो शाखाओं द्वारा बौद्ध-साहित्य के महायान ग्रन्थों जिनका मुगल काल में तिब्बती भाषा में लिप्यंतरण कर दिया गया था, उसका पुन: तिब्बती भाषा से संस्कृत (sanskrit) भाषा में लिप्यंतरण तिब्बती लोगों द्वारा ही कराया जा रहा है. वाराणसी के सारनाथ में भी तिब्बती से संस्कृत (sanskrit) भाषा में लिप्यंतरण का काम दो वर्षों तक किया गया. केरल के पालघाट में ताड़पत्र पर लिखित पाण्डुलिपियों को डिजिटिलाइजेशन कर संरक्षित किया जा रहा है.

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नेपाल के नागार्जुन इन्स्टीट्यूट से नेवारी, भूजमोल, रंजना नेवारी की प्रचलित लिपियों की हजारों प्रतिलिपियों को अपनी संस्था में मंगाने पर बात चल रही है. संस्था में करने वालों को शारदा लिपि, ब्राह्मी लिपि, संस्कृत (sanskrit) की पुरानी और नई लिपियों को पढ़ने में विशेषज्ञता प्राप्त है. संस्कृत ग्रन्थों जिनमें शब्दकोष, तन्त्र, योग, ज्योतिष, व्याकरण, उपनिषद् एवं पाण्डुलिपियों सहित तीन सौ तैंतीस टाइटल लभगग एक लाख सत्त्ताइस हजार पेज का रोमन लिप्यंतरण का का लगभग पूरा हो गया है. संस्था के निदेशक डॉ. संतोष कुमार द्विवेदी ने बताया कि विदेशी छात्रों के लिए अंग्रेजी भाषा में संस्कृत शिक्षण के उद्देश्य से ‘इन्डोलॉजी इन्स्टीच्यूट ऑफ संस्कृत लर्निग, काशी स्थापित करने के लिए जमीन ले ली गई हैं.

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