Bday Special : 20 साल बाद सचिन ने याद किया शारजाह के उस ‘तूफान’ को

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इस बात को 20 साल हो गए हैं जब सचिन ने एक के बाद एक लगातार दो शतक लगाकर भारत को कोका कोला ट्रोफी जितवायी थी। 22 अप्रैल 1998 को सचिन ने 130 गेंदों पर 143 रनों की पारी खेलकर भारत को फाइनल में पहुंचाया था। इसके दो दिन बाद ठीक 24 अप्रैल को सचिन ने 134 रन बनाए और भारत ने ऑस्ट्रेलिया को मात दी। उस समय ऑस्ट्रेलिया दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम मानी जाती थी।

खास बातचीत

शारजाह की आपकी उन पारियों को अब ‘डेजर्ट स्ट्रोम’ कहा जाता है, आप उन्हें अब कैसे याद करते हैं?

मुझे एक मजाकिया घटना याद आती है। जब रेतीला तूफान आ रहा था तो मैं विकेट के बीच में खड़ा था। मेरे साथ गिली (एडम गिलक्रिस्ट) भी थे।

तो उड़ना इतना आसान नहीं होगा

ज्यादातर लोग मैदान पर उलटे लेटे हुए थे। मुझे हॉलिवुड की वे फिल्में याद आ रही थीं जिसमें लोग तूफान में उड़ जाते हैं। तो मैंने सोचा कि अगर में गिलक्रिस्ट को पकड़ लूं तो मैं कम से कम 80 किलो के आदमी के साथ हूं, तो उड़ना इतना आसान नहीं होगा।

तो फिर गिली ने क्या कहा? क्या यह आप दोनों के लिए एक नया अनुभव था?

हां, हां। मैंने इससे पहले ऐसा तूफान कभी नहीं देखा था। यह बिलकुल अविश्वसनीय था। ऐसी चीजें आप सिर्फ फिल्मों में देख पाते हैं। यह हम दोनों के लिए बड़ी घटना थी।

आपने एक बार कहा था कि आप उस समय अपने करियर के सर्वश्रेष्ठ दौर में थे। क्या आप इसे विस्तार से बता सकते हैं?

हम ऑस्ट्रेलिया से भारत में खेल चुके थे इसलिए मुझे यहां भी अच्छा करने का विश्वास था। हमने एक त्रिकोणीय श्रृंखला खेली थी जिसमें न्यू जीलैंड और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल थे। मैंने शारजाह में त्रिकोणीय सीरीज के पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 80 रन बनाए थे।

गेंद बाउंड्री के बाहर जा रही थी

मैं अच्छी बल्लेबाजी कर रहा था। तो मुझे लग रहा था कि बैट का फ्लो वाकई काफी अच्छा है। गेंद बल्ले के बीचों-बीच लग रही थी। अगर वह बीच में नहीं भी लग रही थी तो बैट स्विंग ऐसा था कि गेंद बाउंड्री के बाहर जा रही थी।

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दबाव आपके लिए नयी बात नहीं है, लेकिन अपने 25वें जन्मदिन के मौके पर, क्या आप पर फाइनल में अच्छा प्रदर्शन करने का अतिरिक्त दबाव था?

जन्मदिन हो अथवा नहीं, आप हमेशा जीतना चाहते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह पहला मैच है या फाइनल या फिर आपके बर्थडे जैसा कोई खास दिन है। मेरे लिए हमेशा यह देश का प्रतिनिधित्व करने की बात है। और एक बार जब आप मैदान पर उतरते हैं तो आप जीतना चाहते हैं- फिर चाहे यह क्लब मैच हो, राज्य स्तर का मुकाबला हो या फिर अंतरराष्ट्रीय मैच। मैं कभी समझौता नहीं करना चाहता। मैं बचपन से ही अच्छा करना चाहता हूं। यह बात सिर्फ क्रिकेट की ही नहीं है, मैं चाहे कोई भी खेल खेलूं उसमें मुकाबला करना और जीतना चाहता हूं।

ऑस्ट्रेलिया उस समय लगभग अजेय टीम थी?

जी। ऑस्ट्रलियाई टीम ने जो हासिल किया है उसके लिए हमें उनकी तारीफ करनी चाहिए। उस दौरान ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराना लगभग नामुमकिन था। उनके पास कई महान खिलाड़ी थे लेकिन मेरी तैयारी अच्छी थी। जब वे भारत आए तो उससे पहले मैंने खुद को टर्निंग ट्रैक पर तैयार किया। शेन वॉर्न से निपटने के लिए मैंने लक्ष्मण शिवरामाकृष्णनन के साथ चेन्नै में तैयारी की। मुंबई में मैंने नीलेश कुलकर्णी, राजेश पवार और साईराज बहुतुले के साथ तैयारी की। इस अच्छी-खासी प्रैक्टिस थी जिसमें मेरे भाई अजीत ने भी मेरी मदद की। इस सबसे फायदा हुआ।

शारजाह में अप्रैल-मई में काफी गर्मी पड़ती होगी। आपने इसका कैसे सामना किया?

जी, गर्मी तो वहां काफी पड़ती है। कई बार तो आपको अपने जूतों और जुराबों में भी गर्मी लगती थी। ऐसे में आपके जूते के तलवे भी नरम हो जाते थे। कई बार तो ऐसा लगता था जैसे पैरों में छाले पड़ गए हों। कई बार मैंने इंटरवल के दौरान अपने पैर बर्फ की बाल्टी में डालकर रखे। पर आज जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है कि वाकई यह सब करने की पूरी कीमत वसूल हो गई।

उन दिनों फिटनेस का स्तर आज जितना अधिक नहीं होता था। आपने कैसे मैनेज किया?

मैं स्कूल के दिनों से ही अपनी फिटनेस पर काम कर रहा था। मैं बल्लेबाजी करके अपने पैड और दस्ताने पहनकर ही दौड़ लगाता था। यह मेरे कोच अचरेकर सर का निर्देश था। तो मैं मानसिक रूप से मजबूत बन चुका था। मेरी बल्लेबाजी खत्म होने के बाद मैं दूसरों को बैटिंग करते नहीं देखता था। मैं नेट्स में लगातार गेंदबाजी करने लगता था। इससे मुझे कार्डियो सेशन में मदद मिलती थी।

क्या शारजाह के फाइनल की वह पारी… 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोलकाता में खेली गई वीवीएस लक्ष्मण के 281 के समान रूप से महान कही जा सकती है? मैं ऐसा सोच सकता हूं, लेकिन मैं तुलनाएं नहीं करता। अगर मैं गलत हूं तो मुझे बताना। मुझे नहीं याद आता कि उस मैच से पहले हमने बड़े लक्ष्यों को हासिल किया हो। उस समय टी20 क्रिकेट नहीं होता था। उस दौर में वनडे क्रिकेट की मानसिकता भी अलग होती थी। इसलिए मैं सोचता हूं कि यह मेरे करियर की महत्वपूर्ण पारियों में से एक थी।

आपकी नजर में आपके अलावा कौन सा भारतीय क्रिकेटर उस तरह की पारियां खेलने की क्षमता रखता था?

मैं किसी तरह की तुलना नहीं करना चाहूंगा। यह अन्य खिलाड़ियों के साथ भी अन्याय होगा। अगर आप तुलना करना शुरू कर देते हैं तो आप अनजाने में ही सही, उस अवसर और अन्य लोगों की पारियों की महत्ता को भूल जाते हैं। मैं हमेशा यह देखता हूं कि किसी शख्स ने क्या हासिल किया। तुलना करना मुझे पसंद नहीं।

भारतीय टीम की मानसिकता को उन दो पारियों ने कैसे बदला?

बिना शक हम पहला मैच जीतना चाहते थे। रन और ओवर कम होने के बाद लक्ष्य हासिल करना और मुश्किल हो गया था। असल में, रनों की तुलना में अधिक ओवर घटाए गए थे। संयोग से दोनों ही पारियों में मैं अंपायर के गलत फैसले का शिकार हुआ। मैं क्वॉलिफायर मैच जीतना चाहता था क्योंकि उसके बाद फाइनल में विपक्षी टीम अलग तरीके से सोचती। हम काफी नजदीक पहुंच गए थे लेकिन कुछ चीजें मेरे नियंत्रण से बाहर थीं। मैं गलत फैसलों का शिकार हुआ, जो वाकई निराशाजनक था।

टॉम मूडी की गेंद पर लगाया गया सिक्स काफी खास था। क्या आपने कभी इस बारे में बात की?

मुझसे इस बारे में किसी ने कोई बात नहीं की। चूंकि हमने इसके एक दिन बाद एक मुकाबला और खेलना था। मैदान के बाहर वह हमेशा मेरे प्रयासों की तारीफ किया करते थे। और शेन वॉर्न की गेंद पर लगाए गए छक्के के बारे में क्या कहेंगे? उन्होंने आपसे क्या कहा? हम हमेशा मैच के बाद बात किया करते थे। लेकिन मैदान पर हमारे बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती। मैं कड़ा और नियमानुसार मुकाबला करने में यकीन रखता हूं। हम बहुत अच्छे दोस्त थे लेकिन वह सब मैदान के बाहर। हमारी दोस्ती मैदान पर हमारे मुकाबलों के बीच कभी नहीं आयी। हम दोनों अपने देशों के लिए मैच जीतना चाहते थे।

फाइनल को लेकर आपकी कैसी यादें हैं?

फाइनल में मैं बिना किसी रिकवरी टाइम के खेलने पहुंचा। चूंकि उस समय हम दुबई में ठहरे हुए थे, मैं आधी रात के बाद होटल पहुंचा। हम शारजाह से दुबई सड़क के रास्ते आते थे। मुझे सोते-सोते रात के दो बज गए। अगले दिन लंच और आधिकारिक डिनर था। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते हम दोबारा मैदान पर थे। हमें आराम करने का समय ही नहीं मिला। जब मैं बल्लेबाजी करने उतरा मैं मानसिक रूप से थका हुआ था। शुरुआत के कुछ ओवर्स में मैं गेंद को मिडल नहीं कर पा रहा था। लेकिन मैं जानता था कि अगर मैं कुछ समय और टिका रहा तो दोबारा सही तरीके से बल्लेबाजी कर सकता हूं। मैंने इंतजार किया और धीरे-धीरे चीजें ठीक होने लगीं।स्टीव वॉ ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया सचिन से हार गया। यह वाकई बड़ी प्रशंसा होगी? हां उन्होंने ऐसा कहा था। अब मैं इस पर क्या कह सकता हूं। यह वाकई ऐसी तारीफ है जिस पर कुछ कहा नहीं जा सकता।

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