कौन थे असली बाहुबली ? ये सच्ची कहानी जानकर चौंक जाएंगे आप !

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बाहुबली एक जैन व्यक्ति थे जिसका जन्म अयोध्या में हुआ था। वह जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और उनकी पत्नी सुनंदा के पुत्र हैं। बाहुबली को गोम्मतेश्वर भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें समर्पित गोम्मतेश्वर की प्रतिमा है।

इसे 981 A.D के आसपास बनाया गया था और यह 57 मीटर ऊंची है। यह कर्नाटक राज्य के हसन जिले में श्रवणबेलगोला में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यह दुनिया की सबसे बड़ी मुक्त खड़ी मूर्तियों में से एक है।

real bahubali statue

बाहुबली ने चिकित्सा, तीरंदाज़ी, पुष्पकृषि और रत्नशास्त्र में महारत प्राप्त की। उनके पुत्र का नाम सोमकीर्ति था जिन्हें महाबल भी कहा जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार जब ऋषभदेव के भरत-बाहुबली को मिलाकर 100 पुत्र थे। उन्होंने संयास लेने का निश्चय किया तब उन्होंने अपना राज्य अपने 100 पुत्रों में बांट दिया।

भरत को अयोध्या का राज्य मिला और बाहुबली को अम्सक का जिसकी राजधानी पोदनपुर थी। भरत चक्रवर्ती जब छ: खंड जीत कर अयोध्या लौटे तब उनका चक्र-रत्न नगरी के द्वार पर रुक गया। जिसका कारण उन्होंने पुरोहित से पूछा।

पुरोहित ने बताया की अभी आपके भाई बाहुबलि ने आपकी आधीनता नहीं स्वीकारी है। इसके बाद क्रोधित भरत ने बाहुबलि के ऊपर चढ़ाई कर दी। लेकिन भरत से हजार गुनी कम सेना होने के बाद भी वे घबराए नहीं।

real baahubali

वे यह जानते थे कि सारी दुनिया को भरत जीत चुके हैं फिर भी उन्हें अपने सामर्थ पर यकीन था और वे युद्ध करने रणभूमि में आ गए।

सैनिक-युद्ध न हो इसके लिए मंत्रियों ने तीन युद्ध सुझाए जो भरत और बाहुबली के बीच हुए। यह थे, दृष्टि-युद्ध, जल-युद्ध और मल-युद्ध। तीनों युद्धों में बाहुबली की विजय हुयी।

इस युद्ध के बाद बाहुबली को वैराग्य हो गया और वे सर्वस्व त्याग कर मुनि बन गये। उन्होंने एक वर्ष तक बिना हिले खड़े रहकर कठोर तपस्या की। इस दौरान उनके शरीर पर बेले लिपट गयी।

bahubali

चींटियों और आंधियो से घिरे होने पर भी उन्होंने अपना ध्यान भंग नहीं किया और बिना कुछ खाये पिये अपनी तपस्या जारी रखी। उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे इस अर्ध चक्र के प्रथम केवली बन गए। इसके पश्चात उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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