पीएम के गाजीपुर दौरे से क्यों तिलमिलाए हैं ओमप्रकाश राजभर ?

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पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी खेमे में हलचल नजर आ रही है। पार्टी ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अपना पूरा फोकस सियासी रुप से सबसे शक्तिशाली उत्तर प्रदेश पर लगा दिया है। रायबरेली और इलाहाबाद के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Modi) 29 दिसंबर को वाराणसी और गाजीपुर दौरे पर पहुंच रहे हैं।

पूर्वांचल की राजनीति के हिसाब से मोदी का गाजीपुर दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। लेकिन उनके इस दौरे के पहले यूपी सरकार के दो मंत्री आमने-सामने हो गए हैं। एक ओर कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर हैं तो दूसरी ओर स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री अनिल राजभर । दोनों एक ही जाति से आते हैं लेकिन दोनों सियासत नदी के दो किनारों की तरह हैं। पूर्वांचल में राजभरों के बीच सबसे बड़ा चेहरा कौन है, इसे लेकर दोनों के बीच लंबे समय से रेस चलती आ रही है।

ओमप्रकाश राजभर का खुल्लम-खुल्ला विरोध

यूपी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर का विरोध अभी सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को लेकर था। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि ओमप्रकाश राजभर ने पहली बार खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करना शुरु कर दिया है। ओमप्रकाश राजभर ने ओबीसी को तीन लेयर में बांटने को लेकर पीएम की सभा का विरोध कर दिया है।

उन्होंने साफ कहा कि उनकी पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता पीएम की सभा में नहीं जाएगा। अब सवाल इस बात का है कि ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी का कारण क्या है ? जानकार बताते हैं कि लंबे समय से विरोध सुर अलापने वाले ओमप्रकाश राजभर को उनके ही गढ़ में घेरने के लिए बीजेपी ने अब तुरुप का इक्का चल दिया है।

दरअसल मोदी राजभर जाति के सबसे बड़े नेता सुहेलदेव राजभर की जयंती पर गाजीपुर पहुंच रहे हैं। इस दौरान मोदी सुहेलदेव के नाम पर एक डाक टिकट भी जारी करेंगे। इसे लेकर अब ओमप्रकाश खेमे में हलचल बढ़ने लगी है।

अनिल राजभर ने संभाली कमान

दूसरी ओर ओमप्रकाश राजभर को टक्कर देने के लिए बीजेपी ने स्वतंत्र प्रभार मंत्री अनिल राजभर को आगे कर दिया है। अनिल राजभर पिछले दो सालों से गाजीपुर, मऊ, घोसी और बलिया में सक्रिय बने हुए हैं। यही बात ओमप्रकाश राजभर के आंखों में चुभती रही है।

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ओमप्रकाश राजभर और अनिल राजभर के बीच कई बार जुबानी जंग भी देखने को मिली है। बताया जा रहा है कि गाजीपुर में पीएम की जनसभा को कामयाब बनाने की पूरी जिम्मेदारी अनिल राजभर के कंधों पर है। खासतौर से राजभर जाति को लेकर पार्टी ने अनिल राजभर को बड़ा टास्क दिया है।

सियासत में बड़ा रोल अदा करते हैं राजभर

पूर्वांचल की दर्जनभर सीटों पर राजभर जाति का वर्चस्व है। कहीं कहीं तो ये निर्णायक भूमिका में रहते हैं। हालांकि आजादी के बाद से इस जाति का कोई बड़ा राजनेता उभरकर नहीं आया। बीजेपी से गठबंधन के बाद ओमप्रकाश राजभर का अपनी जाति के लोगों में कद बढ़ना शुरु किया तो लेकिन सत्ता में आते ही उन्होंने बागी रुख अख्तियार कर लिया।

किसी न किसी बहाने उनकी राज्य सरकार से अदावत चलती रहती है। कभी गाजीपुर के डीएम को लेकर तो कभी ओबीसी आरक्षण को लेकर। ओमप्रकाश राजभर हमेशा बीजेपी पर हमलावर बने रहते हैं। वही बीजेपी राजभर जाति के बीच अपना दबदबा कायम करने की कोशिश में लगी हुई है।

वाराणसी के अलावा गाजीपुर, बलिया, सोनभद्र, मिर्जापुर, आजमगढ़, मऊ, जौनपुर और भदोही जिलों में इनकी संख्या 12 लाख से अधिक है। 40 विधानसभा और 10 लोकसभा सीटों पर इनके वोटों का असर पड़ता है। इसका प्रमाण विधानसभा चुनाव में दिखाई पड़ा। यही कारण रहा कि भाजपा ने सुभासपा से गठबंधन कर पूर्वांचल की अधिकतर सीटों पर कब्जा किया। अब इसी समीकरण के सहारे भाजपा लोकसभा चुनाव जीतने की कोशिश में है।

रिपोर्ट- आशुतोष सिंह

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