एक थे गायत्री प्रजापति , एक है कुलदीप सिंह सेंगर
मार्तण्ड सिंह
साल था 2016 , सर्दी के मौसम में अचानक से गर्माहट आ गई थी। ये गर्माहट थी राजनीति की, चुनाव का वक्त था तो आरोप और प्रत्यारोप के तीर भी तरकश में सज गए थे। इसी बीच एक महिला सामने आई जिसने उस समय के सबसे चर्चित मंत्री रहे गायत्री प्रजापति पर बलात्कार का आरोप लगाया। विपक्षी दलों को बैठे बिठाये जैसे ब्रह्मास्त्र मिल गया। विपक्षी दलों ने पूरी ताकत के साथ समजवादी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। और इसका खामियाजा सपा को चुनाव में हार कर चुकाना पड़ा। चुनावी माहौल में बीजेपी के लिए गायत्री प्रजापति का मामला गायत्री मंत्र की तरह साबित हुआ और बीजेपी ने चुनाव जीत कर अपनी सरकार बनाई।
समाजवादी पार्टी के गायत्री बन गए हैं कुलदीप सेंगर
आज भी माहौल कुछ कुछ वैसा ही है उस समय समाजवादी पार्टी के मंत्री गायत्री प्रजापति पर आरोप लगे थे , आज भाजपा के कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार और हत्या का आरोप लगा हैं। उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी आज भाजपा की सरकार है।
गायत्री भी पार्टी के मुखिया के करीबी थे तो आज कुलदीप सिंह पर भी सरकार के मुखिया मेहरबान है। उस समय भी पुलिस को गायत्री पर हाथ डालने की छूट नहीं थी आज भी सेंगर के मामले में पुलिस के हाथ बंधे है। एफआईआर दर्ज होने के बाद भी कुलदीप सिंह पुलिस के लिए माननीय हैं। वो भी चुनावी साल था ये भी चुनावी साल है।
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बीजेपी ने समाजवादी पार्टी की सरकार के समय जिस तरीके से गायत्री प्रजापति के खिलाफ मोर्चा खोला था उस का फल बीजेपी को सत्ता के शीर्ष पर पहुंच कर मिला। पर अब वही ‘गायत्री मंत्र’ बीजेपी लिए मुसीबत का सबब बन चुका है। उन्नाव गैंगरेप मामले में विधायक कुलदीप सेंगर को लेकर बीजेपी सरकार ने स्थानीय स्तर से प्रदेश स्तर तक जिस तरह से लापरवाही बरती वह आने वाले समय में उसकी सियासी राह मुश्किल कर सकती है।
सीएम आवास के सामने आत्मदाह का प्रयास
आठ अप्रैल को उन्नाव की रहने वाली युवती ने राजधानी स्थित सीएम आवास के सामने पहुंचकर आत्मदाह की कोशिश की तो सनसनी फैल गई। किसी को उम्मीद नहीं थी इस आत्मदाह की आंच इस कदर भड़केगी कि पूरी सरकार को ही अपनी जद में ले लेगी।
आंच इस कदर धधकी कि इसमें कानून व्यवस्था और सुशासन का नारा देने वाली योगी सरकार भी बुरी तरह झुलस रही हैं। जिस वक्त युवती सत्ताधारी पार्टी के विधायक और उसके भाई की ज्यादती की दास्तां सुना कर पुलिस पर पक्षपातपूर्ण रवैए का आरोप लगा रही थी, उस समय सरकार और अधिकारियों को भी अहसास नहीं था कि यह एक बड़ी मुसीबत साबित हो सकती है।
पुलिस नहीं सीबीआई करेगी गिरफ्तार !
खैर किरकिरी होने के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई है। आरोपों की सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी गई है। लेकिन सरकार के गृह सचिव और डीजीपी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बाते मीडिया के सामने कही और मामला सीबीआई की तरफ टाल कर अपना पल्ला छुड़ाया उससे एक बार फिर से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो गए हैं।
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अब यहां पर बड़ा सवाल ये उठता है कि जब मुकदमा दर्ज किया जा चुका है और मामला बेहद गंभीर है तो फिर विधायक कुलदीप सेंगर की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सीबीआई पर क्यों टाली जा रही है? सवाल इस बात का भी है कि एसआईटी ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी है, उसके बाद ही विधायक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। जिन धाराओं में विधायक के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है तो क्या उसमें तत्काल अरेस्टिंग नहीं की जा सकती?
बीजेपी के लिए आसान नहीं होगी 2019 की डगर
खैर , वजह चाहे जो कुछ भी हो ,लेकिन कुलदीप सिंह सेंगर को बचाने की कोशिश सरकार के लिए सिरदर्द बनती जा रहा है। ये सिरदर्द 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है।
समाजवादी सरकार के समय प्रदेश की कानून व्यवस्था ने बीजेपी के लिए प्रदेश के विधानसभा चुनाव की राह आसान की थी तो अब यही मुद्दा वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में उसके विजय रथ में रोड़ा अटका सकता है। अभी हाल ही में गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। अगर यही स्थिति रही तो बीजेपी के लिए 2019 की राह आसान नहीं होगी।