NOTA का सोंटा, इन पर पड़ा भारी

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सुलखान सिंह

कुछ समय पूर्व मैंने नोटा के ऊपर विस्तृत लेख लिखा था और उसके ऊपर व्यापक चर्चा भी हुई थी।
आज उ.प्र. के लोकसभा परिणामों पर एक अखबार में छपे एक लेख को देख कर मै पुनः नोटा पर लिखने को उद्यत हुआ हूँ।

पूर्व के लेख के अनुसार ही मैं नोटा के बारे में कतिपय अनिवार्य तत्व अंकित कर रहा हूँ-
1. लोकतंत्र में विरोध प्रकट करने का नोटा एक बहुत प्रभावी तरीका है।
2. नोटा का प्रयोग करने से पहले व्यापक आन्दोलन/प्रचार आवश्यक है, अन्यथा राजनैतिक दलों को मुद्दा ही पता नहीं चलेगा।

मात्र उत्तर प्रदेश में ही तीन लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहाँ हार/जीत का अन्तर नोटा के मतों से कम है।

मछलीशहर –
बी.पी. सरोज – विजयी
त्रिभुवन राम – द्वितीय
अन्तर – 181
नोटा – 10830

मेरठ –
राजेंद्र अग्रवाल – विजयी
हाजी याकूब – द्वितीय
अन्तर – 4729,
नोटा – 6316

श्रावस्ती –
राम शिरोमणि – विजयी
दद्दन मिश्रा – द्वितीय
अन्तर – 5320
नोटा – 17108

इसका अर्थ यह हुआ कि नोटा किसी प्रत्याशी को हराने/जिताने में प्रभावी है। इस अनुपात से तो पूरे देश में तो नोटा पीड़ित प्रत्याशियों की संख्या 20 होनी चाहिये।

इतनी संख्या 3 मंत्री बनाने के लिए पर्याप्त है लेकिन नोटा सार्थक तभी होगा जब चुनाव से पूर्व इसको ठीक से प्रचारित किया जाये और सभी दलों एवं प्रत्याशियों को सचेत कर दिया जाये।

बिना कुछ बताये नोटा दबाने से लोग समझ नहीं पाते कि ये कुछ लोग नोटा क्यों दबा रहे हैं और ये किस प्रकार उनके पक्ष में वोट बन सकते हैं।

(लेखक यूपी के पूर्व डीजीपी हैं और इसे उनके फेसबुक से लिया गया है)

 

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