शहीद के पिता बोले..पाकिस्तान में एक बकरी भी जिंदा ,नहीं बचनी चाहिए ऐसा बदला लो

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मेरे बेटे की शरीर के जितने चिथड़े उड़े हैं उसके बदले पाकिस्तान में एक भी बकरी जिंदा नहीं बचनी चाहिए ये कहना हैं भागलपुर से शहीद रतन ठाकुर के पिता का। रोता बिलखते शहीद रतन सिंह की आवाज पिता सिसक पड़ता है…दूसरे कमरे में बेसुध पड़ी गर्भवती पत्नी को जिसे कैंप पर पहुंच कर बात करता हूं होल कर फोन काटा था और…

बहुत जतन से रतन को पाला था। मजदूरी की, सावन में जूस बेचे…कपड़े की फेरी की। उसे पढ़ाया-लिखाया। 2011 में सीआरपीएफ में भर्ती हुआ। पहली पोस्टिंग गढ़वा में हुई। धीरे-धीरे दुख कम होने लगा। एक ही होनहार सपूत था मेरा, वह भी भारत माता की रक्षा में शहीद हो गया।

अब किसके सहारे जीएंगे…आतंकियों काे भगवान कभी माफ नहीं करेंगे…। (यह कहते हुए वह फफक पड़े।) गुरुवार दोपहर डेढ़ बजे रतन (शहीद रतन कुमार ठाकुर) ने अपनी पत्नी राजनंदनी को फोन किया था। उसने कहा था- श्रीनगर जा रहे हैं, वहां शाम में पहुंचे जाएंगे, इसके बाद बात करेंगे। शाम 4 बजे वहां उसके ऑफिस से फोन आया और रतन का मोबाइल नंबर लिया। शंका हुई कि कहीं कुछ हुआ तो नहीं…। फिर छोटी बेटी नीतू से बोले कि जरा टीवी ऑन करो।

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टीवी पर आतंकी हमले की खबर चल रही थी, यह देखकर दिल बैठने लगा। रतन के बारे में जानने के लिए वहां के कमांडर को फोन मिलाए। लेकिन उन्होंने कहा कि अभी कुछ नहीं बता सकते हैं। कुछ कंफर्म होगा तो बताएंगे। अब तो कोई फोन ही नहीं उठा रहा है। रतन का मोबाइल ऑफ बता रहा है। (यह बोलते हुए वह शहीद के पिता सिसकने लगे।)अभी तक उसकी पत्नी को कुछ भी नहीं बताया है। चार साल का पोता (कृष्णा ठाकुर) है। बहू गर्भवती है। उसने अपनी पत्नी राजनंदनी को गुरुवार दोपहर फोन किया था।

मेरा तो सबकुछ बर्बाद हो गया

उसने कहा था- श्रीनगर जा रहे हैं, वहां शाम में पहुंचे जाएंगे, इसके बाद बात करेंगे। एक दिन पहले जब उससे फोन पर बात हुई थी तो उससे कहा था कि होली इस बार घर पर मनाएंगे। छोटी बहन नीतू की शादी सरकारी नौकरी करने वाले लड़के से करेंगे, आप चिंता मत कीजिएगा…। वह दुर्गापूजा के पहले ही घर से ड्यूटी पर गया था। (भावुक होकर) मेरा तो सबकुछ बर्बाद हो गया। मेरा दुनिया में जीना बेकार हो गया। सांस नहीं लिया जा रहा है। तोते जैसी आवाज वाला पोता अब किसको पापा कहेगा।

रतन की मां 2013 में ही चल बसी। उसने अपनी मां को इलाज के लिए वेल्लोर भी ले गया। लेकिन उसकी मां…मेरी पत्नी पिंकी देवी नहीं बच पाई।फिर 2014 दिसंबर में रतन की शादी राजनंदनी से की थी। हमलोगों का मूल घर मदारगंज पंचायत का रतनपुर गांव है।

लेकिन छोटे बेटे मिलन, पोते कृष्णा, छोटी बेटी नीतू को पढ़ाने के लिए शहर लेकर आ गए। बड़ी बेटी सोनी बिहार पुलिस में है और उसकी शादी हो गई है। छोटी बेटी नीतू बीए पार्ट-टू में पढ़ाई कर रही है। पोता किड्स प्ले में है। सब रतन के भरोसे था। छोटी बेटी की शादी के लिए लड़का भी देख रहे थे। अब इन सबको कौन देखेगा? आतंकियों ने मेरे बेटे को क्यों मारा? भगवान ने मुझे क्यों जिंदा रखा? आखिर कब तक आतंकियों के गोली से सपूत शहीद होते रहेंगे। भगवान आतंकियों को कभी माफ नहीं करेगा..

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