नेपाल में होने जा रहा संसदीय चुनाव भारत के लिए अहम

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पड़ोसी देश नेपाल में फिलहाल सबकी नजरें पहले के चरण के संसदीय चुनाव पर टिकी हैं। नतीजे चाहे भी हो, भारत के साथ संबंध मजबूत करना इस मुल्क के अगले प्रधानमंत्री की प्राथमिकता होगी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपीएन)-यूएमएल का गठबंधन माओवादियों के साथ है और इस पार्टी को चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस की उम्मीद है।
विकास कार्यों से उसे बहुमत पाने में मदद मिलेगी
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपीएन)-यूएमएल के चीन से करीबी संबंध हैं। मौजूदा सत्ताधारी पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) के सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि उसे भी सत्ता मे लौटने का पूरा भरोसा है। नेपाली कांग्रेस को उम्मीद है कि पिछले 7 महीनों में पार्टी की तरफ से किए गए विकास कार्यों से उसे बहुमत पाने में मदद मिलेगी।
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नेपाल संघीय और प्रांतीय विधायिका के जरिये नए संविधान को लागू करेगा। यह एकसाथ दो चरणों में 26 नवंबर और 7 दिसंबर को होगा। चुनाव इस लिहाज से भी दिलचस्प है कि 2 कम्युनिस्ट पार्टियां चुनावी गठबंधन में हैं। सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी सेंटर ने इस साल अगस्त में चुनावी गठबंधन बनाने का फैसला किया था। माओवादियों के एनसी के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद यह फैसला हुआ था। दोनों पार्टियों के बीच सहमति के मुताबिक, यूएमएल और माओवादी क्रमश: 60 और 40 फीसदी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगी।
नेपाल को अपने हितों की रक्षा करने में मदद मिलेगी
नेपाल चुनाव पर अपने हालिया लेख में लेखक और जानकार कमल देव भट्टाराई ने लिखा है, ‘चीन नेपाल के आंतरिक राजनीतिक मामलों में अपना असर बढ़ा रहा है और वह एनसी और सीपीएन-माओवादी सेंटर पार्टी के गठबंधन से खुश नहीं था। चीन यूएमएल और माओवादियों के बीच गठबंधन चाहता था और उसने दोनों पार्टियों के विलय की भी बात कही थी। चीन का मानना है कि नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टियों के एकीकरण और कम्युनिस्टों की अगुआई में सरकार बनने से नेपाल को अपने हितों की रक्षा करने में मदद मिलेगी।’
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नेपाली कांग्रेस के एक लोकप्रिय युवा नेता गगन थापा ने हालिया इंटरव्यू में कहा था कि वह वामपंथी गठबंधन के उभार को लेकर चकित हैं, लेकिन उनकी पार्टी ने चुनाव में जीत के लिए अलग रणनीति तैयार की है। भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार ने नेपाल में बांध बनाने के लिए चाइनीज फर्म को दिया गया ठेका कैंसल कर दिया और अब इसे किसी भारतीय कंपनी को दिया जा सकता है।
इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
नेपाल मामलों के जानकार ने बताया, ‘भारत-नेपाल का संबंध न सिर्फ सरकारों के बीच का, बल्कि लोगों के बीच का मामला है। इसी तरह, नेपाल के प्रधानमंत्री की विचारधारा कुछ भी हो, वह भारत के साथ मिलकर काम करेंगे। नेपाल की राजनीति, समाज और धर्म में भारत अहम फैक्टर है और इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’
(साभार – एनबीटी)
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