‘अंबेडकर’ को राज्यसभा भेजेंगी मायावती

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यूपी में राज्यसभा की सीट को लेकर पिछले कुछ दिनों से सपा-बसपा के गठबंधन की चर्चा थी तो मंगलवार को मायावती ने राज्यसभा उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर सबको चौंका दिया। चर्चा थी की मायावती अपने भाई आनंद कुमार को राज्यसभा भेजना चाहती हैं लेकिन उन्होंने इसके बजाय कभी काशीराम के सहयोगी रहे और पार्टी के पूर्व विधायक भीमराव अंबेडकर को राज्यसभा भेजने का ऐलान किया।

इससे मायावती दो समीकरण साधना चाहती हैं। एक तो परिवारवाद के आरोपों से बच गईं दूसरी दलित वोटों को साधने की बीजेपी की कोशिशों को भी इससे झटका लगेगा। भीमराव उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले हैं और पूर्व में विधायक रह चुके हैं। मायावती ने मंगलावर को राज्यसभा चुनाव की तैयारी के लिए देर शाम बीएसपी मुख्यालय में विधायकों और पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की और सबको चौंकाते हुए भीमराव अंबेडकर के नाम की घोषणा की।

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इस फैसले से मायावती ने अपने मूल वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। वहीं बीजेपी के दलितों को अपने पाले में करने की कोशिशों को झटका दिया है। बसपा के राज्यसभा प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर पार्टी प्रमुख मायावती के काफी करीबी नेताओं में से एक हैं। मौजूदा समय में वो कानपुर मंडल जोनल कोऑर्डिनेटर हैं। भीमराव बीएसपी संस्थापक कांशीराम के समय से ही सक्रिय भूमिका में है। पार्टी के मिशनरी कार्यकर्ताओं में उनका नाम आता है।

भीमराव पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता गिने जाते हैं

बीएसपी संस्थापक कांशीराम ने 1991 में जब सपा के सहयोग से इटावा लोकसभा से संसदीय का चुनाव जीता था, उस समय से भीमराव पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता गिने जाते हैं। भीमराव पेशे से वकील हैं और उन्होंने ‘अंबेडकर के आर्थिक विचार और वर्तमान में उनकी उपयोगिता’ सब्जेक्ट पर कानपुर विश्वविद्यालय में शोधग्रंथ प्रस्तुत किया था, पर दुर्भाग्य से उन्हें डिग्री नहीं दी गई। राज्यसभा के लिए मायावती की पहली पंसद बने भीमराव अंबेडकर विधायक भी रह चुके हैं।

2007 में मायावती ने उन्हें इटावा के लखना विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था, जिस पर वो खरे उतरे और चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने। हालांकि पांच साल के बाद दोबारा से 2012 में विधानसभा चुनाव हुए तो जीत नहीं पाए। इसके बावजूद वो पार्टी में सक्रीय रहे और दलित मूवमेंट के लिए काम करते रहे। यूपी में 403 विधानसभा सीटें हैं।

औसतन 38 विधायकों का समर्थन चाहिए

यहां राज्यसभा की 10 सीटों के लिए चुनाव होना है। राज्यसभा चुनाव का फॉर्मूला है, खाली सीटें में एक जोड़ से विधानसभा की सदस्य संख्या से भाग देना। निष्कर्ष में भी एक जोड़ने पर जो संख्या आती है। उतने ही वोट एक सदस्य को राज्यसभा चुनाव जीतने के जरूरी होता है। 10 सीटों में 1 को जोड़ा तो हुए 11। अब 403 को 11 से भाग देते हैं तो आता है 36.63। इसमें 1 जोड़ा जाए तो आते हैं 37.63। यानी यूपी राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए एक सदस्य को औसतन 38 विधायकों का समर्थन चाहिए।

बीजेपी के 8,सपा के 1 और 1 विपक्ष का संयुक्त

यूपी विधानसभा में सदस्यों की संख्या 403 है, जिसमें 402 विधायक 10 राज्यसभा सीटों के लिए वोट करेंगे। इस आकड़े के मुताबिक बीजेपी गठबंधन के खाते में 8, सपा को एक सीट। क्योंकि सपा के पास 47 विधायक हैं। वहीं, बची एक सीट के लिए सपा के 10 अतरिक्त वोट, बीएसपी के 19, कांग्रेस के 7 और 3 अन्य मिलाकर राज्यसभा भेज सकती है।

aajtak

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