अच्छा तो…अखिलेश और मायावती के इस दांव ने दी BJP को शिकस्त

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उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। भाजपा की हार के पीछे मायावती और अखिलेश का ये गणित काम कर गया। जहां एक तरफ भाजपा जीत के लिए घूमघूम कर वोट अपील कर रही थी वहीं दूसरी तरफ अखिलेश और मायावती चुप्पी साधे रहे।

अखिलेश मायावती के इस दांव ने पलट दिए पासे

आरएलडी नेता जयंत चौधरी जहां घर-घर जाकर लोगों से वोट की अपील कर रहे थे वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का कैराना और नूरपुर में प्रचार न करने जाने की रणनीति और बीएसपी मुखिया मायावती की रणनीतिक चुप्पी भी बीजेपी की हार का मुख्य कारण रही। मायावती ने चुपचाप रहते हुए अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को एसपी-आरएलडी उम्मीदवार को सपॉर्ट करने को कहा। 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद 2014 में बीजेपी को भारी हिंदू वोट मिले और उसे कैराना में बड़ी जीत हासिल हुई थी लेकिन, इसबार पासा पलट गया।

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समाजवादी पार्टी के सूत्रों की मानें तो मुजफ्फरनगर के दंगे तब हुए थे जब समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में थी। जाट मुसलमानों के खिलाफ थे। इस बार समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने फैसला लिया कि वह कैराना और नूरपुर उपचुनाव में प्रचार नहीं करेंगे। अखिलेश नहीं चाहते थे कि इस बार बीजेपी को वोटों के ध्रुवीकरण का मौका मिले।

इसी तरह मायावती पूरी तरह से चुप्पी साधे रहीं। बीएसपी सूत्रों ने बताया कि पार्टी सुप्रीमो ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए की शांति से एसपी-आरएलडी प्रत्याशियों का समर्थन करें। यहां पर जाट और गुर्जर वोट के अलावा 15 फीसदी वोट दलित समुदाय का भी है। मायावती ने खुले तौर पर एसपी-आरएलडी का समर्थन नहीं किया। माना जा रहा है कि अगर मायावती खुलेआम समर्थन देतीं तो दलित वोटों का धुव्रीकरण होता।

मायावती ने भी दी थी ये सलाह

बीएसपी के एक समर्थक ने बताया कि मायावती को कुछ और कहने की जरूरत नहीं थी। वह एसपी-बीएसपी गठबंधन पर पहले ही बोल चुकी थीं। मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अखिलेश यादव ने बताया कि वह कैराना में चुनाव प्रचार के लिए क्यों नहीं गए। अखिलेश ने कहा कि वह प्रचार में इसलिए नहीं गए क्योंकि वह सीएम योगी के भाषण से डर गए थे। उन्होंने कहा कि बीजेपी की हार स्वयं से हुई है। यह उन लोगों की जीत है जो सांप्रदायिक सद्भावना, प्रेम और शांति पर विश्वास करते हैं।

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