काशी के महाश्मशान घाटों पर पसरा सियापा, बिगड़ गया अंतिम संस्कार का ‘अर्थशास्त्र’

काशी का मणिकर्णिका घाट। एक ऐसा महाश्मशान जहां चीता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती

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काशी का मणिकर्णिका घाट। एक ऐसा महाश्मशान जहां चीता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती। सालों नहीं बल्कि सदियों से यहां मोक्ष की कामना लिए आने वाले शव अनवरत रूप से जलते हैं। लेकिन कोरोना काल में काशी का ये महाश्मशान खामोश है। बनारस के दूसरे घाटों की तरह यहां भी वक्त का पहिया थम गया है। लॉकडाउन के चलते गिनती के शव जलाए जा रहे हैं।

शवों के अंतिम संस्कार में आई गिरावट हैरान करने वाली है। आलम ये है कि पूरे दिन में सिर्फ 8 से 10 शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है। जबकि इतनी लाशें तो यहां एक साथ, एक वक्त में जलती रहती हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो लॉकडाउन ने शवदाह पर भी ब्रेक लगा दिया है। शवों के अंतिम संस्कार में आई गिरावट की असल वजह क्या है ? क्या सचमुच मृत्यु दर में कमी आई है या कोई अन्य कारण हैं।

जानकार बता रहे हैं कि-

  • लॉकडाउन की वजह से सड़क पर वाहनों का चलना बन्द है, जिसकी वजह से रोड एक्सीडेंट में कमी आई है।
  • लॉकडाउन की वजह से क्राइम कंट्रोल दिख रहा है, इसलिए मरने वालों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है।
  • जो लोग मर रहे हैं, परिजन उनका आसपास के नदी किनारे ही अंतिम संस्कार कर दे रहे हैं।

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बनारस में अंतिम संस्कार का क्या है अर्थशास्त्र ?-

धार्मिक मान्यताओं के चलते काशी में सिर्फ स्थानीय लोगों का ही नहीं बल्कि आसपास के कई जिलों से भी लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। कुछ तो बिहार और झारखंड जैसे प्रदेशों से भी शवदाह ले लिए पहुंचते है। यही कारण है कि मौसम चाहे कोई भी हो, बनारस के मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार चलता है। एक अनुमान के अनुसार एक दिन में तकरीबन 150-200 शवों का अंतिम संस्कार होता है। भीषण गर्मी और जाड़े में ये संख्या 400 के ऊपर भी पहुंच जाती है। घाटों पर शवदाह से जुड़े लगभग 15 हजार लोग हैं, जिनकी आजीविका का साधन चीता पर जलती लाशें हैं। प्रतिदिन लगभग अंतिम संस्कार से जुड़ा 2 से 3 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इसमें लकड़ी के अलावा नाई और चिता को आग देने वाले डोम राजा के परिवार के लोग शामिल हैं।

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लॉकडाउन से लगा ताला-

फिलहाल लॉकडाउन की वजह से अंतिम संस्कार पर एक तरह से ताला लगा हुआ है। गलियों में राम नाम सत्य की गूंज के बजाय खामोशी पसरी है। दिन में इक्का दुक्का शव ही घाट पर पहुंच रहे हैं। ऐसे में इस धंधे से जुड़े लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। लोग अचानक मृत्युदर में आई कमी का अपने-अपने स्तर से विश्लेषण कर रहे हैं। लोग इस बात की गुत्थी को सुलझाने में लगे हैं कि लॉकडाउन का लोगों की मौत से क्या वास्ता ?

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