मकर संक्रांति के साथ होगा खरमास का समापन; जानिये पूजा का शुभ मुहूर्त, कथा और महत्‍व

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मकर संक्रान्ति : 14 जनवरी, गुरुवार को

भगवान सूर्य की आराधना का है विशेष पर्व मकर संक्रान्ति

 धनु से मकर राशि प्रवेश करेंगे सूर्यदेव, मकर राशि में बनेगा पंचग्रही योग 

तिल के दान से कटेंगे संकट, होगा पापों का शमन 

होगा खरमास का समापन 

- ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

पूरे भारत में मकर संक्रांति का पर्व अपनी-अपनी रीति-रिवाज के अनुसार हर्ष, उमंग-उल्लास के साथ मनाने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। भगवान् सूर्य की आराधना का विशेष पर्व मकर संक्रान्ति जम्मू-कश्मीर व पंजाब में लोहड़ी के नाम से जाना जाता है जबकि दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से विख्यात है।

सूर्यग्रह का धनुराशि से मकर राशि में प्रवेश होने पर यह पर्व मनाया जाता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। मकर संक्रांति का पर्व दक्षिणायन के समाप्त होने पर उत्तरायण के शुरू होने पर मनाया जाता है।

खरमास की समाप्ति-

दक्षिणायन देवताओं की रात्रि तथा उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है। मकर संक्रांति पर खरमास की समाप्ति मानी जाती है। उत्तरायण की 6 माह की अवधि उत्तम फलदायी मानी गई है। मकर संक्रान्ति के दिन तिल से बने पकवान ग्रहण करना शुभ फलदायी माना गया है।

इस दिन खिचड़ी पर्व मनाया जाता है जिसके फलस्वरूप चावल एवं काले उड़द की दाल से बनी खिचड़ी खाने व दान देने का विशेष महिमा है। इसी दिन से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आने शुरू हो जाते हैं। जिसके फलस्वरूप रात्रि छोटे व दिन बड़े होने लगते हैं।

मौसम में भी परिवर्तन शुरू हो जाता है। इस बार सूर्यग्रह धनु राशि से 14 जनवरी, गुरुवार को प्रात: 8 बजकर 15 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने पर संक्रांति होती है। स्नान-दान आज के दिन ही किए जाएंगे।

संगम स्नान का महत्व-

मकर संक्रांति के पर्व पर प्रयाग में संगम स्नान का बड़ा महत्व है। 14 जनवरी, गुरुवार को गंगास्नान व देव-अर्चना करने के पश्चात् अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य आदि करना चाहिए। इस दिन प्रातःकाल तिल का तेल व उबटन लगाकर तिल मिश्रित जल से स्नान करना विशेष फलदायी माना गया है।

तिल का दान व इनका उपयोग करने पर समस्त पापों का शमन होता है। मकर संक्रान्ति के दिन किए गए दान से पुनर्जन्म होने पर उसका सौगुना फल प्राप्त होता है।

पूजा का विधान-

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन भूदेव (ब्राह्मण) को तिल व गुड़ से बने व्यंजन, काले तिल, ऊनी वस्त्र, कम्बल, मिष्ठान्न एवं अन्य वस्तुएं आदि दान देने का विधान है। अन्य वस्तुएं दक्षिणा (नगद द्रव्य) के साथ दान करना चाहिए।

दान देने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है। आज के दिन भगवान शिवजी के मन्दिर में तिल व चावल अर्पित करके तिल के तेल का दीपक जलाना सुख-समृद्धिकारक माना गया है। शिवजी का घृत से अभिषेक करके बिल्वपत्र अर्पित करना पुण्य फलदायी रहता है।

आज के दिन भगवान भास्कर को अष्टदल कमल पर आवाहन करके उनकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि खुशहाली मिलती है। भगवान सूर्यदेव की महिमा में श्रीआदित्यहृदय स्तोत्र, श्रीआदित्यकवच, श्रीसूर्यसहस्रनाम, श्रीसूर्य चालीसा आदि का पाठ करना चाहिए।

सूर्यग्रह से संबंधित मंत्रों ‘ॐ आदित्याय नमः’, ‘ॐ सूर्याय नमः’, ‘ॐ घृणि सूर्याय नम:’ का जप करना विशेष लाभकारी रहता है।

पौराणिक मान्यता-

यशोदा ने आज के दिन श्रीकृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखा था। उसी दिन से मकर संक्रांति के व्रत की परंपरा शुरू हुई थी। पुराणों के अनुसार सूर्य के मकर राशि यानि उत्तरायण में होने पर यदि व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है।

आत्मा को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत काल में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामह ने गंगातट पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का 26 दिनों तक इंतजार किया था। इच्छामृत्यु का वरदान मिलने के कारण मोक्ष की प्राप्ति के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक जीवित रहे।

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