श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : नंदलाल के दर्शन-पूजन एवं व्रत से मिलेगी खुशहाली

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अखिल ब्रह्माण्ड के महानायक षोडश कला युक्त से भगवान् श्रीकृष्णजी की महिमा अपरम्पार है। भगवान् श्रीकृष्णजी की जन्मकुण्डली अपने आप में अद्भुत है।

भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण के समय जन्मकुण्डली में चार प्रमुख ग्रह चन्द्रमा, मंगल, वृहस्पति व शनि उच्च राशि में । सूर्य, बुध व शुक्र स्वराशि में तथा राहु वृश्चिक और केतु ग्रह वृषभ राशि में विराजमान थे।

धार्मिक व पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान श्रीकष्ण का अवतार द्वापर युग के अन्तिम चरण में भाद्रपद कष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मध्यरात्रि 12 बजे वषभ लग्न में मथरा में हआ था। इस दिन बधवार व रोहिणी नक्षत्र से बन्ती योग था।

शास भगवान श्रीकष्ण के अवतार को पर्ण अवतार माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकष्ण की जन्माष्टमी पर व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने पर अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति के साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली सदैव बनी रहती है।

इस दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी-

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ग्रह नक्षत्रों के योग से जयन्ती योग पर षोडश कलायुक्त जगत योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण धरती पर अवतरित हुए थे। भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में हिन्दुओं में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लोकप्रिय विशिष्ट पर्व 4 गुरु माना गया है।

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार जन्माष्टमी का पावन पर्व 11 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 11 अगस्त, मंगलवार को प्रात: 9 बजकर 07 मिनट लगेगी, जो कि 12 अगस्त, बुधवार को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट तक रहेगी।

तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 13 अगस्त, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। 12 अगस्त, बुधवार को सम्पूर्ण दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना का विशिष्ट काल तथा अष्टमी तिथि 11 अगस्त, मंगलवार को मिल रही है।

11 अगस्त, मंगलवार को अष्टमी तिथि तथा महानिशिथकाल का योग रात्रि 11 बजकर 41 मिनट से रात्रि 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा जो कि भगवान श्रीकष्ण की पजा-अर्चना के लिए विशेष फलदायी रहेगा। जिसके फलस्वरूप 11 अगस्त, मंगलवार को स्मार्तजन एवं 12 अगस्त, बुधवार को वैष्णवजन व्रत, उपवास रखकर भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

ऐसे करें भगवान श्रीकृष्ण जी को प्रसन्न-

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ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता की आराधना करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूजन एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की पावन बेला पर रात्रि में भगवान् श्रीकृष्ण का नयनाभिराम अलौकिक, मनमोहक श्रृंगार करना चाहिए। भगवान् श्रीकृष्ण के बालस्वरूप को झूला झुलाया जाता है। इस दिन शुभ बेला में पूजा के अन्तर्गत नैवेद्य के तौर पर मक्खन, दही, धनिये से बनी मेवायुक्त पंजीरी, सूखे मेवे, मिष्ठान्न व ऋतुफल आदि अर्पित किए जाते हैं।

सम्पूर्ण दिन उपवास रखकर रात्रि 12 बजे भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के पश्चात् पूजा-आरती के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की शृंगारिक अलौकिक झांकियां सजाकर रात्रि जागरण करने की भी परम्परा है। इस दिन व्रत, उपवास रखने पर जीवन के समस्त पापों का शमन होता है, साथ ही सुख-समृद्धि के साथ अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

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