लॉकडाउन से टूटी परंपरा, मणिकर्णिका घाट पर नहीं जमी नगर वधुओं की महफिल

धर्मनगरी काशी को परंपरा और त्यौहारों का भी शहर माना जाता है। साल का शायद की कोई महीना ना हो जब यहां कोई उत्सव ना देखने को मिले

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धर्मनगरी काशी को परंपरा और त्यौहारों का भी शहर माना जाता है। साल का शायद की कोई महीना ना हो जब यहां कोई उत्सव ना देखने को मिले। अलमस्त काशीवासियों को मस्ती के लिए सिर्फ बहाना चाहिए होता है। यहां के लोग तो मरघट में भी महफ़िल सजा लेते हैं। लेकिन लॉकडाउन की बंदिशों ने इन उत्सवों और कार्यक्रम के आयोजन पर ब्रेक लगा दिया है। मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं की ओर से बाबा मसान नाथ को दी जाने वाली नृत्यंजली उन्हीं आयोजनों में से एक है, जिसे स्थगित कर दिया गया।

लॉकडाउन से बन्द हैं काशी में मंदिर-

लॉकडाउन के कारण सरकार ने देश में 21 दिन का लॉकडाउन कर रखा है। लगभग सभी प्रमुख मंदिर बंद हो चुके हैं। धर्म की नगरी वाराणसी में भी बाबा विश्वनाथ, काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव और संकट मोचन मंदिर समेत अन्य सभी मंदिरों को श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया है। इससे संस्कृति और परंपरा पर भी चोट पहुंच रही है। किसी तरह परंपरा के निर्वहन की औपचारिकता मात्र ही पूरी की जा रही है।कोरोना के साए में काशी की सदियों पुरानी एक परंपरा टूट गई।. लॉकडाउन और आयोजनों पर लगे प्रतिबंध के कारण काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट के किनारे बाबा मसान नाथ को नगर वधुएं नृत्यांजलि नहीं दे सकीं। लगभग 350 साल से हर साल वार्षिक श्रृंगार के दिन नगरवधुएं बाबा मसान नाथ को नृत्यांजलि देती आई हैं।. यह परंपरा 17वीं शताब्दी से ही चली आ रही है।

क्या है नृत्यंजली की परंपरा-

इसके पीछे यह कहानी भी बताई जाती है कि सत्रहवीं शताब्दी में काशी नरेश राजा मान सिंह ने बाबा मसान नाथ के मंदिर का निर्माण कराने के बाद संगीत का कार्यक्रम आयोजित कराना चाहा। कहा जाता है कि महाश्मशान पर आकर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने को कोई भी कलाकार तैयार नहीं हुआ। जब सभी कलाकारों ने इसके लिए मना कर दिया, तब नगर वधुओं ने हामी भरी और मसान नाथ के दरबार में अपनी नृत्यांजलि अर्पित की। जलती चिताओं के सामानांतर अपनी कला को प्रस्तुत किया।

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