मोदी-जिनपिंग की मुलाकात के लिए महाबलीपुरम में को ही क्यों चुना गया?

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तमिलनाडु के शहर महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आज से 12 अक्टूबर तक दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए पूरे शहर को अभेद्य किले में तब्दील कर दिया गया है।

साथ ही, इलाके का सौंदर्यीकरण किया गया है। इस साल का ऐतिहासिक महत्व है और ये चीन से सदियों पहले से जुड़ा हुआ है। तमिलनाडु का यह प्राचीन शहर अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य और सागर-तटों के लिए बेहद ही लोकप्रिय है।

होगी ऐतिहासिक मुलाकात-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच महाबलीपुरम/मामल्‍लापुरम में ऐतिहासिक मुलाकात होने जा रही है । दोनों देशों के बीच शताब्दियों से स्थापित संबंधों को एक कदम और आगे ले जाने वाली साबित होगी।

इस अनौपचारिक मुलाकात के लिए जिस जगह का चुनाव किया गया है वो दोनों देशों के बीच 1700 साल पुराने संबंधों का राजदार है। तमिलनाडु का यह प्राचीन शहर अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य और सागर-तटों के लिए बेहद ही लोकप्रिय है। द्रविड वास्तुकला की दृष्टि से यह शहर अग्रणी स्थान रखता है।

सातवीं शताब्दी में यह शहर पल्लव राजाओं की राजधानी था और इस दौरान चीन के साथ कई स्तरों पर संबंध भी थे। दरअसल, इस क्षेत्र में काफी समय पहले चीन, फारस और रोम के प्राचीन सिक्के मिले थे, इतिहासकारों के मुताबिक ये इस बात के सबूत देते हैं कि यहां पर बंदरगाह के जरिए इन देशों के साथ व्यापार होता था।

व्यापार करने आते थे चीन के लोग-

ऐसा माना जाता है कि छठी और सातवीं शताब्दी के दौरान चीनी श्रद्धालु कांचिपुरम आए थे।  इतिहासकारों का कहना है कि चीनी व्यापारी हुआन चियांग ने यहां का दौरा किया जिनका स्वागत महेंद्र पल्लव ने किया। ऐसा माना जाता है कि चीन के लोगों के लिए यह शहर काफी पहले से परिचित रहा और वे यहां व्यापार के लिए आते थे।

मामल्‍लापुरम   क्षेत्र में पल्लव वंश का राज था और पल्लव वंश के राजा नरसिंह द्वितीय ने तब चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अपने दूतों को चीन भी भेजा था। इसी के पास बसे कांचिपुरम का भी चीन के साथ पुराना संबंध है।

चीन और भारत के बीच व्यापारिक के अलावा आध्यात्मिक संबंध भी रहे हैं। इतिहासकारों का यह भी मत है कि चीन में लंबा समय व्यतीत करने वाले बोधिधर्म का संबंध पल्लवों से था।

गौरतलब है कि बोधिधर्म एक महान भारतीय बौद्ध भिक्षु और विलक्षण योगी थे। इन्होंने 520 या 526 ई. में चीन जाकर ध्यान-सम्प्रदाय का प्रवर्तन और निर्माण किया।  इन्होंने अपनी चीन-यात्रा समुद्री मार्ग से की। वे चीन के दक्षिणी समुद्री तट केन्टन बन्दरगाह पर उतरे।

अतुल्य भारत के खोले द्वार-

पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक बातचीत राजधानी दिल्ली के इतर हो रही है। इससे पहले भी पीएम मोदी ने विश्व के नेताओं के दौरों के दौरान अतुल्य भारत के द्वार खोले हैं। जापान के राष्ट्रपति शिंजो आबे जब भारत दौरे पर आए थे तो उन्हें अहमदाबाद के साबरमति आश्रम का दौरा कराया गया था।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का स्वागत पीएम मोदी ने अहमदाबाद में किया था और उन्होंने साबरमति रिवर फ्रंट का दौरा किया था। फ्रांस के राष्ट्रपति एमेनुअल मेक्रां की वाराणसी और मिर्जापुर में आगवानी की गई। वहीं पीएम मोदी की वुहान में राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ मुलाकात का ऐसा दूसरा मौका था जब यह बीजिंग शहर के इतर आयोजित हुआ।

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