उत्तर प्रदेश में आईएएस व आईपीएस क्यों हैं आमने-सामने

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आशीष बागची

क्या छिन रहा है अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारीवाला पुलिस अधीक्षक का एक्सक्लूसिव डोमेन?

उत्तर प्रदेश में आईएएस व आईपीएस खुलकर आमने-सामने आ गये हैं। कार्यपालिका के ये दोनों महत्वपूर्ण धड़ों का अधिकारों को लेकर टकराव निश्चित तौरपर राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। ज्ञात हो कि अभी हाल में योगी सरकार ने जिलाधिकारियों को जिले में क्राइम को लेकर पुलिस अधिकारियों की मीटिंग पुलिस लाइन में लेने का आदेश जारी किया है। इसके बाद कथित तौर पर आईपीएस और आईएएस एसोसिएशनों के बीच तनातनी खुलकर सामने आ गयी है। आईपीएस एसोसिएशन का कहना है कि एक डीएम के पास 72 विभाग होते हैं, उनसे यह तो संभला जा नहीं रहा है, अब क्राइम मीटिंग में इनकी सरपरस्ती का परिणाम यह होगा कि एसओ व एसएचओ रैंक के लोग किसी आईपीएस का आदेश क्यों मानेंगे? क्यों नहीं वे सीधे डीएम के पास जाकर अपनी सिफारिशें करवा लेंगे?

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सीएम योगी से अपील

इस मुद्दे को लेकर आईपीएस एसोसिएशन ने सीएम योगी आदित्यनाथ से ट्वीट कर अपील की है और कहा है कि प्रकाश सिंह केस में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्देशित पुलिस सुधार का कार्यान्वयन कराएं। यह मांग की गयी है कि एसएसपी को ज्यादा परिचालन स्वतंत्रता मिले और अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों में भी पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो।
दूसरी ओर आईपीएस एसोसिएशन की ओर से आईएएस एसोसिएशन को पत्र लिखा गया है। पत्र का विषय है सामंतशाही प्रोटोकॉल को नष्ट करते हुए समता, समावेश और आदर के भाव से परिपूर्ण कार्य संस्कृति निर्मित की जाये। आईपीएस एसोसिएशन के पत्र में आगे लिखा गया है कि सरकारी मशीनरी को सामंतशाही मानसिकता से निकाल कर सुशासन की ओर ले जाने का मुद्दा बड़ा है। इससे पहले आईपीएस एसोसिएशन का ट्वीट आया था जिसमें कहा गया कि एसएसपी को काम करने की अधिक आजादी मिलनी चाहिये। एसोसिएशन का मानना है कि इस आदेश से एसपी की हैसियत कम होगी व युवा आईपीएस अधिकारी हतोत्साहित होंगे।

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आईपीएस एसोसिएशन ने बुलाई मीटिंग

यह आदेश आने के बाद दूसरे ही दिन आईपीएस एसोसिएशन की एक मीटिंग बुलाई गयी थी जिसे बाद में दबाववश स्थगित कर दिया गया। जैसे ही जिलाधिकारियों द्वारा मीटिंग लेने का मामला सामने आया क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर गिरीश कुमार जयंत का फेसबुक पर एक पोस्ट आया। इसमें उसने कहा कि अगर एसएसपी की जगह क्राइम मीटिंग डीएम लेंगे तो एसओ और एसएचओ को गालियां नहीं मिलेंगी, यह खुशी की बात है। यहां यह बताना जरूरी है कि सहारनपुर के एसएसपी बबलू कुमार ने पिछले महीने पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में जनपद के 22 थानों के प्रभारियों, सभी सर्किल के सीओ, एसपी सिटी और एसपी देहात के साथ क्राइम मीटिंग की। तत्पश्चात कप्तान ने सभी थाना प्रभारियों को पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में दौड़ लगवाते हुए चार-चार चक्कर लगवाए थे। कुछ थानेदार चंद कदम चलकर ही हांफ गए थे। इसके बाद थानेदारों में एसएसपी के इस रवैये से काफी आक्रोश व्याप्त हुआ था।

पुलिस के अधीनस्थों का कहना है कि जिलाधिकारी चूंकि अब अपराध पर सीधा सवाल पूछेंगे, ऐसे में थानाध्यक्षों की तैनाती में औपचारिकता नहीं चलेगी। शायद तनातनी की इस स्थिति को भांपते हुए आईपीएस धड़े को शांत करने के मकसद से लखनऊ में आईएएस वीक का शुभारंभ करते हुए मुख्य़मंत्री योगी आदित्यनाथ ने आईएएस अफसरों की कार्यप्रणाली पर भी सीधे सवाल उठाये। इसका कारण भी है। अदालत भी आईएएस अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही है। दो दिनों पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो वर्तमान जिलाधिकारी स्तर के अफसरों को निलंबित करने का फ़रमान सुनाया है।

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वहीं लखनऊ में सीएम योगी ने आईएएस वीक में कहा कि आज भी बड़ी सेवा में पद मिलने के बाद अगर पद पहचान बने और जनता के बीच विश्वसनीयता न हो तो क्या फायदा? टीएन शेषन जैसे अधिकारियों का उदाहरण है जिन्होंने चुनाव सुधार कर एक ऊंचा मानदंड स्थापित किया।साफ है, खासतौर पर जनता इन अफसरों को आजकल अच्छी नजरों से नहीं देख रही है। कारण भी है। उत्तर प्रदेश के अफसरों के खिलाफ करीब 225 मामले चल रहे हैं। इनमें कई सालों से 115 मामलों में अभियोजन की अनुमति मांगी गई है लेकिन अभी तक 110 मामलों में अभियोजन की अनुमति नहीं मिल सकी है। सिर्फ, 21 मामलों का ही निस्तारण हो सका है।

वहीं खनन, खाद्यान्न, एनआरएचएम, मनरेगा और प्लाट आवंटन घोटालों में यूपी कैडर के दर्जनों आईएएस अफसरों की भूमिका या तो सवालों में है या वे सलाखों के पीछे हैं।
इन स्थितियों के मद्देनजर अब आईपीएस अधिकारियों की जुबान पर सवाल आने लगे हैं कि क्या जिले में पुलिस का कप्तान डीएम होगा? वहीं सोशल मीडिया पर कुछ संदेश चर्चा का विषय बने हुए हैं। इनमें लिखा है कि आदरणीय चीफ सेक्रेटरी साहब आपसे तीन सवाल पहला- जिलों में गम्भीर अपराध होने पर डीएम नपेंगे? दूसरा- क्राइम होने पर मीडिया के सवालों के जवाबदेह डीएम होंगे? तीसरा- सबसे बड़ा सवाल-क्या रात्रि गश्त कलेक्टर साहब करेंगे? कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नियमानुसार जिलाधिकारी ही क्राइम मीटिंग करता है। परन्तु पुलिस अधिकारियों द्वारा क्राइम मीटिंग किये जाने की परम्परा चली आ रही है।

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थानाध्यक्षों की तैनाती कानूनी तौर पर जिलाधिकारियों द्वारा ही की जाती है। परन्तु वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार एसएसपी व एसपी स्वयं निर्णय लेकर जिलाधिकारियों से औपचारिक आदेश करवा लेते थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा मुख्य सचिव ने ये पुराना कानून लागू करने के आदेश जारी किये हैं। इसमें किसी को किसी प्रकार की समस्या नहीं होनी चाहिए।
आईपीएस एसोसिएशन का आक्रोश लखनऊ में चल रहे आईएएस वीक पर शनिवार को एक क्रिकेट मैच में दिखाई पड़ा। कहा तो यह जाता है कि यह एक फ्रेंडली मैच था, पर इसमें आईपीएस ने आईएएस को नौ विकेटों से रौंदकर अपनी खुन्नस कुछ हद तक खत्म की। मैच के दौरान आईएएस-आईपीएस विवाद मैदान के बाहर भी छाया रहा।

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यह पूछा जा रहा है कि जनता की नजरों में लगातार गिर रही आईएएस व आईपीएस अधिकारियों की छवि में इस तनातनी के बाद और कितनी गिरावट आती है या यह और कितनी ऊपर उठती है? क्या दोनों एसोसियेशन इसे खत्म कर प्रदेश की गिरती कानून-व्यवस्था की स्थिति को सुधारने के लिए समवेत होकर कुछ करेंगे या फिर ऐसे ही लड़ते हुए नौकरी पूरी करने की औपचारिकता निभाते हुए खर्च हो जायेंगे?

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