अर्थव्यवस्था की गिरती हालत से कैसे उबर पाएगा भारत?

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भारत की गिरती अर्थव्यवस्था को लेकर पूरा देश चिंतित है। वहीं, बढ़ती मंहगाई के कारण गरीबों पर इसकी सबसे बड़ी मार पड़ रही है। यह बात अलग है कि आरबीआई ने करोड़ों रुपए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को देने का ऐलान कर चुका है। लेकिन इसके बाद भी सवाल उठता है कि क्या आरबीआई के रुपयों से संकट टल जाएगा। फिलहाल जो भी हो जीडीपी को लेकर चिंता का होना जिस प्रकार स्वाभाविक है, उसी तरह से सरकार को इस पर गंभीर होकर अब कदम उठाना होगा। जिससे आगे हालात नहीं बिगड़ें। चूंकि किसी भी देश की जीडीपी पर ही वहां का विकास तय होता है। यदि जीडीपी स्तर नहीं सुधरता है, तो आम जन इससे प्रभावित होंगे।

देश की जीडीपी को सामान्य स्थिति में लाने के लिए प्राइवेट कंपनियों को चाहिए कि वह अपने कैश रिजर्व पर वापस जाए। क्योंकि सरकार को न तो इस समय चुनाव जीतना है। इसके साथ ही अभी सरकार किसी तरह की पुरानी नीतियों को भी नहीं अपनाने वाली है। वहीं, पूर्व पीएम मनमोहन सरकार के दौर की बात करें तो वह नीति अर्थव्यवस्था को पटरी पर जरूर ला सकती है। जिसके तहत फिर से फिस्कल डेफिसिट को 6% के ऊपर ले जाओ, इसके बाद बैंकों को रुपए दे दो। साथ ही किसी योजना के तहत लोगों के पास रुपए पहुंचा दिए जाएं। इससे आम जनता अपना रुपया योजनाओं में इन्वेस्ट करेगी और धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में सुधारता जाएगा। हालांकि, आठ से दस सालों में वापस यही स्थिति आएगी। यह समाधान चुनाव जीतने के लिए हो सकता है। इससे देश को लम्बे समय में नुकसान ही होता है, कोई लाभ नहीं।

विशेषज्ञों की मानें तो फिस्कल डेफिसिट का रिस्क एक ही बार लिया जा सकता है। वह भी उसी देश में जहां लोग टैक्स भरने में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं करते हों। जबकि भारत की स्थिति इससे कुछ अलग है। यहां छोटे व्यापारी से लेकर पूंजीपति व अन्य वर्ग के लोग भी टैक्स नहीं भरना अपनी बहादुरी समझते हैं। यहां तो शिक्षित वर्ग भी टैक्स की इस तरह से चोरी करते हैं कि मानो वह बहुत बड़ा नेक काम कर बुलंदियों को छू रहे हों। जबकि यह बात ध्यान देने वाली है कि यदि आप सरकार को टैक्स नहीं देते हैं, तो सरकार की आमदनी कैसे बढ़ेगी। सरकार यदि हर तरह से आम लोगों की मदद कर रही है, ता हर किसी को टैक्स स्वेच्छा से जमा करना चाहिए।

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प्राइवेट सेक्टर के बारे में बात करते हुए चीफ इकनॉमिक अडवाइजर यानी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कहा कहना है कि यदि देश में प्राइवेट कम्पनी को फायदा हुआ तो वह उनका अपना लाभ है। लेकिन जब वही कम्पनी घाटे में चली जाती है, कहा जाता है कि सरकार उनकी किसी भी तरह से सहायता नहीं कर रही। यह गौरफरमाने वाली बात है कि प्राइवेट कम्पनियां जब लाभ कमाती है, तो उनका होता है। ऐसे में यदि नुकसान हो रहा तो अब सरकार क्या करे? उन्होंने यह भी कहा कि माहौल इस तरह से बनाया जाता है, जैसे सरकार को बलैकमेल किया जा रहा हो। इस समय जेट एयरवेज में कई लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ गई है। सरकार उसी समय सब करेगी जब वह सरकारी होगी। फिलहाल जो भी हो जब देश पर आर्थिक संकट की स्थिति हो तो सभी को एकसाथ मिलकर साथ होना चाहिए। सरकार कंनपियों की परेशानियां समझनी होगी वहीं बड़ी कंपनियां जो लाभ में हों वह सरकार की मदद करें।

सबसे अधिक समस्या इस बात की ही देखने को मिलती है कि प्राइवेट सेक्टर में लोग इसी बात पर अधिक निभर रहते हैं कि सरकार से कुछ सहायता मिल जाएगी। इससे उनका अपना कैश तो रिजर्व ही रहेगा। कंपनियों को पास जो रुपए रहते हैं, उसको बचाकर रखना चाहती है। प्राइवेट सेक्टर कई बार इस चक्कर में रहता है कि सरकार की ओर से कुछ मदद मिल जाएगी तो उसका अपना कैश रिजर्व बचा रहेगा। हर ठीक-ठाक कम्पनी के पास कुछ पैसे होते हैं, जो वो अपने पास बचा कर रखती है। व्यापारी को अगर लोन मिल जाए तो वो दूसरों के पैसों पर अपना व्यापार करने में सहजता दिखाता है क्योंकि अगर व्यापार डूब गया तो उसे वो पैसा बैंक को नहीं लौटाना पड़ेगा। लेकिन अपना पैसा जब लगाना हो, तो लोग ज्यादा सोच-समझ कर पैसा लगाते हैं।

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देश में जीडीपी वृद्धि दर का भाजपा सरकार में सबसे निचले स्तर पर चले जाता चिंता का कारण बना हुआ है। आपको बता दें कि भले ही वैश्विक मंदी का ही प्रभाव क्यों नहीं हो, ग्रोथ रेट नीचे जाने की वजह से ही भारत विश्व की सबसे अधिक तेजी से बढ़ी अर्थव्यवस्था की दौड़ से बहार हो जाएगा। फिलहाल जीडीपी दर बढ़ने की बात जब भी सरकार कहती है, तो लोग सोशल मीडिया पर एक ही सवाल उठाते हैं कि इससे क्या हेाता है। इस पर सरकार अपनी पीठ खुद ही थपथपाते हुए कहती है कि जीडीपी लगातार ऊपर ही जा रही है। हम विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं। इसके बाद विपक्षी दलों का बयान आता है कि गरीब लोगों को भी यह आंकड़ा सरकार दिखा दे। कुल मिलाकर विपक्षी दलों का ये कहना होता है कि बढ़ते जीडीपी से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि भारत में लोग भूखे हैं।

फिलहाल आपाके बता दें कि जीडीपी बढ़ना किसी भी देश के लिए हमेशा ही हितकारी होता है। भले ही गरीबी क्यों ना हो। जीडीपी जिस तरह से देश की होगी उसी प्रकार गरीबों के पास सस्ते और मंहगे दामों में खाद्यान्न पहुंचते रहेंगे। बढ़ती जीडीपी के कारण हाइवे को चौड़ा करना, गरीबों को मुफ्त इलाज, सब्सिडी के जरिए लोगों को लोन देना, स्वरोजगार के अवसर बढ़ना या यूं कहें कि विकास के कई मार्ग प्रशस्त होते हैं। यदि यह घटती है, तो इसका विपरीत होता है। इसलिए जीडीपी दर का घटना बेहद ही चिंताजनक माना जाता है।

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