लोया की मौत से जुड़े सभी केस सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर, HC में सुनवाई पर रोक

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सीबीआई जज बीएच लोया की संदिग्ध मौत को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच कर रही है। सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि किसी भी हाईकोर्ट में अब जज लोया से जुड़े मामले की सुनवाई नहीं होगी। बॉम्बे हाईकोर्ट में जो दो याचिकाएं पेंडिंग हैं, उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए। कोर्ट ने दोनों पक्षकारों से कहा है कि वे अपने दस्तावेज सीलबंद कर कोर्ट को सौंपे।

मामले की अगली सुनवाई 2 फरवरी, दोपहर दो बजे होगी। महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने घटना की पूरी जानकारी दी। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से दुष्यंत दवे ने साल्वे का विरोध किया। उन्होंने कहा कि साल्वे अमित शाह के बचाव में पेश हुए थे, अब वे महाराष्ट्र सरकार की ओर से हैं। इससे संस्थान की छवि धूमिल हो रही है, कोर्ट को इसे रोकना चाहिए।

सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि किसी भी हाईकोर्ट में अब जज लोया से जुड़े मामले की सुनवाई नहीं होगी। बॉम्बे हाईकोर्ट में जो दो याचिकाएं पेंडिंग हैं, उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए कहा है कि कई अखबार और मीडिया ग्रुप ने जज लोया की मौत पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि मामले की सुनवाई नियमानुसार होगी, सभी वकीलों को कोर्ट के साथ कॉपरेट करना चाहिए।

सुनवाई में किसने क्या कहा?

जस्टिस चंद्रचूड़ – अभी तक की रिपोर्ट को देखते हुए यह एक प्राकृतिक मौत है। हरीश साल्वे – जब पेपर्स के अनुसार ये एक प्राकृतिक मौत है, तो फिर अमित शाह का नाम इसमें क्यों आ रहा है। हमें याचिकाकर्ता से किसी तरह की सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। दुष्यंत दवे – इस मामले पर सरकार का जो रुख रहा है, वह सही नहीं है। हो सकता है कि ये एक प्राकृतिक मौत हो, लेकिन परिस्थिति को देखते हुए शक की गुंजाइश है। लिहाजा जांच लाजिमी है।

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इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ होंगे। बीते शनिवार को ही इस बेंच ने इस केस को अपने हाथ में लिया है। बता दें कि जज लोया मामले की सुनवाई को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच को देने का विरोध किया गया था। जिसके बाद उन्होंने खुद ही इस मामले से पीछे कर लिया था।

चार जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर उठाया था मुद्दा

गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायमूर्तियों ने मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ बगावत करते हुए पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इस दौरान इन न्यायमूर्तियों ने खुले तौर पर जज लोया के केस की सुनवाई को लेकर आपत्ति उठाई थी। इन न्यायमूर्तियों की ये भी शिकायत है कि मुख्य न्यायमूर्ति सभी अहम मुकदमें खुद ही सुन लेते हैं यानी मास्टर ऑफ रोस्टर होने का फायदा उठाते हैं।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि जस्टिस लोया बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख मामले की सुनवाई कर रहे थे। 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर को गुजरात पुलिस ने अगवा किया और हैदराबाद में हुई कथित मुठभेड़ में उन्हें मार दिया गया था। सोहराबुद्दीन मुठभेड़ के गवाह तुलसीराम की भी मौत हो गई थी। इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी नाम जुड़ा था। मामले से जुड़े ट्रायल को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में ट्रांसफर किया था। इस मामले की सुनवाई पहले जज उत्पत कर रहे थे, लेकिन इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के सुनवाई में पेश नहीं होने पर नाराजगी व्यक्त की थी।

जिसके बाद उनका तबादला हो गया था। इसके बाद जस्टिस लोया के पास इस मामले की सुनवाई आई थी। दिसंबर, 2014 में जस्टिस लोया की नागपुर में मौत हो गई थी। जिसे संदिग्ध माना गया था। जस्टिस लोया की मौत के बाद जिन जज ने इस मामले की सुनवाई की, उन्होंने अमित शाह को मामले में बरी कर दिया था। हाल ही में कुछ समय पहले एक मैग्जीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि जस्टिस लोया की मौत साधारण नहीं थी बल्कि संदिग्ध थी। जिसके बाद से ही यह मामला दोबारा चर्चा में आया। लगातार इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी भी जारी रही है। हालांकि, जज लोया के बेटे अनुज लोया ने कुछ दिन पहले ही प्रेस कांफ्रेंस कर इस मुद्दे को बड़ा करने पर नाराजगी जताई थी। अनुज ने कहा था कि उनके पिता की मौत प्राकृतिक थी, वह इस मसले को बढ़ना देने नहीं चाहते हैं।

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