समाज ईमानदारी की ही अपेक्षा करता है: सुलखान सिंह

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फिल्म त्रिशूल में एक dialogue था- “अगर जमीर इतना महंगा बिकता तो सभी भिखारी करोड़पति बन गये होते”। मैंने देखा है कि अक्सर ईमानदार और खुद्दार लोग कहते हैं कि अगर उन्होंने भी अपना जमीर बेचा होता तो वे भी अमीर बन सकते थे। मेरी राय में या तो ऐसे लोग गम्भीर मुगालते में हैं या भ्रष्टों से ईर्ष्या करते हैं।

भ्रष्टाचारी लोग अपने जमीर को दबाते हैं

यह सच है कि भ्रष्टाचारी लोग अपने जमीर को दबाते हैं परन्तु मात्र इतने से कोई धनवान नहीं हो सकता। इसके लिए अन्य बहुत से कर्म (सही या गलत) करने पड़ते हैं। अतः ईमानदार को कोई अफसोस इस बात का नहीं होना चाहिये कि उन्होंने अपने जमीर से समझौता नहीं किया। ईमानदारी स्वयं अपना फल है, पुरस्कार है। ईमानदारी की एवज में किसी अन्य प्रतिफल की उम्मीद करना ईमानदारी बेचने के बराबर है।

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ईमानदारी दुर्गुण का अभाव है कोई गुण नहीं है

यह दर्शाता है कि उसमें भ्रष्टाचार करने का साहस नहीं है परन्तु अन्दर से यह इच्छा है कि उसे मात्र ईमानदार होने की एवज में धन/मान-सम्मान मिले। ईमानदारी दुर्गुण का अभाव है कोई गुण नहीं है। समाज ईमानदारी की अपेक्षा अनिवार्य योग्यता के रूप में करता है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

(सुलखान सिंह उत्‍तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं। इस लेख को उनके फेसबुक वाल से लिया गया है)

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