पर्यावरण के लिए पहले अन्तःकरण का culture शुद्ध करें

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सुलखान सिंह

अभी कल पर्यावरण दिवस था। कई कार्यक्रम हुए। कुल फोकस पेड़ लगाने पर दिखाई पड़ा।पर्यावरण संरक्षण में सबसे महत्वपूर्ण है प्रदूषण नियंत्रण। इसके लिये प्रथम आवश्यकता है उपभोग कम करने की। हमारे विकास के माडल में मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा अन्य उपभोग को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।

अन्तःकरण के culture और विकास पर दें जोर

मनुष्य के अन्तःकरण के culture और विकास पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए। इसके साधन हैं- साहित्य, संगीत एवं कला। इनके अधिकतम फैलाव एवं विकास से भी पर्यावरण पर कोई भार नहीं पड़ेगा। आप स्वयं विचार करिए कि अत्यधिक पानी, बिजली, खाद्य सामग्री, कागज, डीजल/पेट्रोल इत्यादि उपभोग करनेवाला समाज ज्यादा विकसित है या उच्च शिक्षित, साहित्यिक अभिरुचि, कला का पारखी, दयालु, परहित चाहने वाला और कोमल भावों वाला समाज।

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उच्च स्तर का consumption लम्बे समय तक sustain करने भर के संसाधन पृथ्वी पर नहीं हैं। मूलभूत आवश्यकतायें तो सभी की पूरी हो सकती हैं परन्तु अधिक उपभोग sustain नहीं किया जा सकता।
हम अपने घर से तत्काल पानी, बिजली, गैस, खाद्य सामग्री, कागज, सौंदर्य प्रसाधन, टूथपेस्ट, साबुन, डिटर्जेंट, कपड़े, पालीथीन, डीजल/पेट्रोल इत्यादि का उपभोग तात्कालिक प्रभाव से कम कर सकते हैं। न्यूनतम waste generate किया जाये। सामग्री का यथासंभव multiple use किया जाये। इससे पर्यावरण पर भार तत्काल कम हो जायेगा और बोनस के रूप में धन की बचत भी होने लगेगी।

किसी धन या संसाधन की भी आवश्यकता नहीं है

यह ऐसा कार्य है जो तत्काल शुरू किया जा सकता है और इसके लिए किसी धन या संसाधन की भी आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है। “ईशावास्यमिदम् सर्वम् यत्किन्च जगत्याम् जगत्। तेन ‘त्यक्तेन भुन्जीथा’ मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।।
त्याग पूर्वक भोग अर्थात् न्यूनतम जरूरी खर्च- यही सही मार्ग है।

                                 (लेखक उत्‍तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं)

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