Film Making: मुसीबत के दौर में भी बनी रहेगी मनोरंजन की मांग

अनेक अध्ययनों के अनुसार, यह धारणा सही नहीं है कि मीडिया या मनोरंजन पर खर्च करना विलासिता है।

0

इन दिनों सिनेमा हॉल खाली हैं और उन्हें होना भी चाहिए। भारत के अधिकांश राज्यों में इन्हें बंद रखने का आदेश दिया गया है। फिल्म संगठनों द्वारा भारत भर में फिल्म निर्माणFilm Making भी रोक दिया गया है। ये बंदी कब तक चलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। यह बंदी संभवत: सप्ताह भर चलेगी, और वह भी तब, जब भारतीय खुद जिम्मेदारी का परिचय देंगे और सोशल मीडिया पर प्राप्त सलाह की बजाय समाचार पत्रों में प्रकाशित निर्देशों-सलाहों का पूरा पालन करेंगे।

यह भी पढ़ें : संक्रमित अर्थव्यवस्था में आपका धन

धारणा है कि मनोरंजन पर खर्च करना एक विलासिता है, इसलिए यह किसी व्यक्ति या परिवार के गैर-आवश्यक या विवेकाधीन खर्च का हिस्सा है। इसे देखते हुए ज्यादातर लोगों से हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि वे आर्थिक बंदी के दौर में जिस पहली चीज का त्याग करते हैं, वह है गैर-आवश्यक खर्च, जैसे मनोरंजन।

यह भी पढ़ें : Ranjan Gogoi-Modi, लेन देन का पूरा खुलासा: प्रशांत भूषण

कोविड-19 की वजह से होने वाली वैश्विक मंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में कई लोग अपनी कमाई या रोजगार खो देंगे। ज्यादातर आम लोगों का अनुमान है कि मनोरंजन पर खर्च कम होने की आशंका है और उपयोगी चीजों पर लोग ज्यादा खर्च करेंगे। आज लोग भोजन और जरूरी सामान चाहते हैं, फिल्में या मनोरंजन नहीं। हालांकि जैसा कि मैं इसे देखता हूं, यह धारणा गलत है। पिछले एक दशक में भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग के विकास के पैटर्न का भारतीय अर्थव्यवस्था से कोई संबंध नहीं है। कुछ वर्षों में देश के आर्थिक विकास और मीडिया-मनोरंजन उद्योग की वृद्धि के बीच का अंतर 10 प्रतिशत से भी कम रहा है और कुछ वर्षों में मीडिया-मनोरंजन उद्योग ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि की तुलना में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की है। कई बार ऐसा भी हुआ है, जब अर्थव्यवस्था में उछाल आया, लेकिन मीडिया-मनोरंजन उद्योग में इसके विपरीत हुआ। इसलिए लोगों की मीडिया-मनोरंजन संबंधी भूख या खपत को अर्थव्यवस्था की स्थिति से जोड़ना सही नहीं होगा। इसके पीछे धारणा यह है कि मीडिया-मनोरंजन सामग्री की खपत एक विलासिता नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है।

यह भी पढ़ें : तिरछी नजर: जरा फासले से मिला करो

दुनिया के इतिहास में केवल दो उद्योग हैं, जिन्होंने सकल वैश्विक आधार पर देखें, तो साल-दर-साल कभी नकारात्मक वृद्धि दर नहीं दिखाई। पहला है स्वास्थ्य सेवा का क्षेत्र और दूसरा है मीडिया व मनोरंजन क्षेत्र। आर्थिक मंदी, स्वास्थ्य संकट के दौर और यहांं तक कि युद्ध के समय भी मीडिया और मनोरंजन उद्योग व उसके प्रमुख उत्पाद बढ़ते रहे हैं। तो मानवता के लिए मनोरंजन सामग्री उतनी ही महत्वपूर्ण क्यों है, जितनी कि स्वास्थ्य सेवा?

यह भी पढ़ें : Corona: आप चाहें तो इतिहास रच सकते हैं आजकल

मुंबई की किसी भी झुग्गी-बस्ती पर आप एक सरसरी निगाह डालेंगे, तो आपको वहां के 75 प्रतिशत से अधिक घरों पर सैटेलाइट टीवी की छतरियां नजर आएंगी। अगर हम मानते हैं कि उनमें से ज्यादातर टीवी सेट किसी स्थानीय राजनीतिज्ञ से मिले उपहार हैं, तब भी सवाल पैदा होता है कि क्यों? लोग टीवी सेट उपहार देने वाले उन राजनीतिज्ञों को भला क्यों वोट देंगे? क्योंकि, जैसे स्वास्थ्य सेवा शरीर का पोषण करती है और वैसे ही टीवी सामग्री से मन की सेवा होती है। यह एक ऐसा पोषण है, जिसे हम महसूस करते हैं। ज्यादातर मामलों में टीवी लोगों को बेहतर महसूस कराता है।

यह भी पढ़ें : Corona ने बिगाड़ा खेलों का कैलेंडर

नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो के अध्ययन के साथ-साथ नौ दशक पहले हुई महामंदी के उपलब्ध आंकड़ों से भी पता चलता है कि 1930 के दशक में पश्चिम में गरीबों को मनोरंजन की जरूरत क्यों थी और फिल्मों ने क्यों अच्छा प्रदर्शन किया? लोग अपने जीवन को उम्मीद से भरना चाहते थे, इसलिए वे मीडिया और मनोरंजन सामग्री की तलाश में रहते हैं। राहत के लिए मीडिया और मनोरंजन लोगों को हर हाल में चाहिए।

यह भी पढ़ें : Janta Curfew को मिला भोजपुरी कलाकारों का Thumbs Up

[bs-quote quote=”(ये लेखक के अपने विचार हैं, यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित है)

” style=”style-13″ align=”left” author_name=”चैतन्य चिंचालकर” author_job=”फिल्म निर्माण विशेषज्ञ” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/03/Chaitanya_Chinchlikar.jpg”][/bs-quote]

जब कोविड-19 के कारण बड़े परदे पर सामग्री की खपत कम हो जाएगी, तब छोटे परदे पर खपत बढ़ जाएगी। फिल्में देखने और बाहर खाने से बचने से जो पैसे जेब में रह जाएंगे, वे किसी ऑनलाइन सेवा या सामग्री पर खर्च होंगे। इन दिनों यदि ऑनलाइन मंचों पर भागीदारी या सदस्यता बढ़े, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। घर बैठे लोग यही करेंगे। यह ऑनलाइन सामग्रियों की खपत बढ़ने का समय है। कुल मिलाकर, मनोरंजन सामग्री की खपत न कभी घटी है और न कभी घटेगी।

 

 

यह भी पढ़ें : गंदी बात 3 एक्ट्रेस की अदाओं पर इंटरनेट हुआ फिदा, तस्वीरें एक से बढ़कर एक

[better-ads type=”banner” banner=”104009″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More