ईद की तैयारी पर खास : लखनऊ की चिकन, चिकेन और इत्र

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ईद की नजदीकियों ने नवाबों की सिटी लखनऊ शहर की रौनक बढ़ा दी है। बाजार में ईद के तैयारियों वाले सामान से गुजजार है। अगर सहरी और इफ्तारी की बात करे तो क्या कहने। यह लखनऊ की चिकन, ये ज़री की शाम ओ सहर, हर एक तार में सौ बार उलझे तार-ए-नजर।” जी हां लखनऊ शहर में चिकन खाया और पहना भी जाता है कि कहावत तो पूरी दुनिया में मशहूर है लेकिन ‘चिकेन’ और ‘चिकन’ का फर्क केवल यहां के बाशिंदों की पारखी नजरों से ही पहचाना जा सकता है।

चिकनकारी शहर की वो कशीदाकारी है जिसमें अलग अलग कपड़ों मसलन सूती, मलमल, डोरिया, शिफॉन, रेशमी, आरगंजा पर छत्तीस तरह के टांकों का इस्तेमाल कर खूबसूरत कढ़ाई की जाती है। इन टांकों में बखिया, मुर्री, टेपची, जाली, धूमपत्ती, हथकटी, फंदा, उल्टी बखिया, चना पत्ती, लौंग, धनिया, पंखुड़ी, कंगन, जंजीरा, कील और बिजली मशहूर है। लेकिन इन दिनों बखिया, मुर्री, टेपची, जाली शैडो और टप्पा का ज्यादा इस्तेमाल होता है।

ऐसे आया चिकन लखनऊ

चिकन फारसी शब्द चिकान या चाकीन का स्वरूप है जिसका मतलब होता है कशीदाकारी। इतिहासकारों की मानें तो जहांगीर की बेगम नूरजहां ने पहली बार इससे रूबरू करवाया था। उनके एक सहायक बिस्मिल्लाह लखनऊ के खदरा मे आकर बस गए थे। जिससे बाद लखनऊ में चिकन का काम किया जाने लगा। नवाबों के दौर में इस कला को फलने फूलने का मौका मिला।

ईद में बढ़ जाती है डिमांड

नजीराबाद के बनी सनशाइन चिकन आर्ट के मालिक सुरेश छबलानी बताते हैं कि 250-300 करोड़ का चिकन का सालाना व्यापार है। रमजान और ईद में सस्ते और मीडियम रेंज के चिकन के कपड़ों की बिक्री होती है। इसमें चिकन के जेंट्स कुर्ते जिनकी शुरुआती कीमत 250 रुपये से लेकर 700-800 रुपये तक है ज्यादा बिकते हैं। इसके अलावा महिलाओं की कुर्तियों की डिमांड लखनऊ के अलावा कई शहरों में है। इनकी कीमत 700 से हजार रुपये तक है। महंगे कपड़ों में चिकन के सूट की जगह कुर्तियों को ज्यादा पसंद किया जाता है। इनकी कीमत आठ सौ से 3-4 हजार के आस पास तक होती है।

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कढ़ाई की क्वालिटी पर बढ़ती है रेंज: चौक के राजाबाजार में श्री चिकन हैंडीक्राफ्ट के मालिक प्रमेश चंद्र रस्तोगी की होलसेल शॉप है। वह बताते हैं कि चिकन की कढ़ाई के ऊपर कपड़े की रेंज डिपेंड करती है। कढ़ाई जितनी महीन होगी, कारीगर की उतनी ही मेहनत होगी। ऐसे कपड़े के दाम बढ़ जाते हैं। हमारे यहां 250 रुपये से 10-12 हजार रुपये तक के जेंट्स कुर्ते हैं। लेकिन लोग मीडियम रेंज के कपड़ों को ज्यादा तरजीह देते हैं। चिकन का काम लखनऊ के आस पास के 40-50 किलोमीटर के एरिया में होता है। जिसमें ज्यादातर महिला कारीगर शामिल हैं।

विदेश तक है धूम

हजरतगंज के अदा चिकन स्टूडियो शोरूम के नीतेश श्रीवास्तव बताते हैं कि चिकन के कपड़े दुनियाभर में एक्सपोर्ट होते हैं। यूएसए, मलयेशिया, फ्रांस, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश से काफी डिमांड है। देश में वैसे तो तकरीबन हर शहर में माल एक्सपोर्ट होता है लेकिन मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद में ईद के वक्त डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है। लेडीज कुर्ती 849 रुपये से शुरू होकर 6-7 हजार से ऊपर की रेंज में मिल जाती है। वहीं साड़ी दो तीन हजार से लेकर 80-90 हजार तक उपलब्ध हैं।

इत्र की खुशबू

चौक से करीब दो फर्लांग आगे चलने के बाद इत्र की महक से रूबरू होना हमारे शहर लखनऊ की एक खास पहचान है। यूं तो कन्नौज में लखनऊ से ज्यादा इत्र बनता और बिकता है लेकिन लखनवी इत्र अपनी नफीज खुशबू और नफासती रंगों की बदौलत पूरे मुल्क में खास मकाम रखता है। लखनवी इत्र की खासियत इस एक शेर से बयां की जा सकती है: लखनऊ की रख के रूमाल नाक पे, ता बुए गुल छनी हुई जाए दिमाग पे। यानी सिर्फ धूल मिट्टी ही नहीं बल्कि फूलों की तेज महक भी लखनवी लोगों को खास पसंद नहीं है।

चौक के इजहारसन परफ्यूम्स के मालिक इमरान अहमद अब्बासी बताते हैं कि लखनऊ वालों की यही नजाकत उन्हें खुशबू के मामले में भी औरों से अलग करती है। वह कहते हैं कि उनकी दुकान तकरीबन 100 सालों से चौक में है। इसके अलावा जनपथ मार्केट में भी उनकी शॉप है जो साल 2006 से है। वह कहते हैं कि कन्नौज और लखनऊ के इत्र में सबसे बड़ा फर्क नजाकत का है। जैसे जब हम बेले के फूल से इत्र बनाते हैं तो अपने कामगारों को सबसे पहले बेले के फूल की हरी डंठल तोड़ने में लगाते हैं। दिनभर फूल और डंठल अलग होने के बाद रात को इत्र बनता है। इससे खुशबू में सोंधापन और बारीकी रहती है। लेकिन आपको कन्नौज के इत्र की खुशबू में कसैलापन मिलेगा जो सूंघने के बाद मिजाज बिगाड़ भी सकता है। यही वजह है कि ईद में लखनवी इत्र की डिमांड बढ़ जाती है।

इबादत के दौर में बढ़ जाती है बिक्री

इमरान अहमद अब्बासी बताते हैं कि रमजान और ईद में इत्र की बिक्री इबादत के चलते ज्यादा हो जाती है। चूंकि इत्र पूरी तरह से फूलों से बनता है उसमें अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं होता इसलिए लोग परफ्यूम की जगह इत्र का इस्तेमाल करते हैं। वह बताते हैं कि उनके यहां जनरल इत्रों के अलावा कुछ खास किस्म के इत्र भी बनते हैं। साधारण इत्र में चंपा, बेला, जूही, गुलाब, चंदन, मोगरा और दूसरे फूलों से इत्र बनाए जाते हैं।

ईद के लिए हैं स्पेशल इत्र

इमरान अब्बासी के मुताबिक उनकी दुकान में ईद के लिए खास तरह के इत्र बनाए गए हैं जिसमें अकीक, बज्म, और ऊद-उल अंबर को खासा पसंद किया जरहा है।

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