सपनों के शहरों ने बहुत ज्यादा नाउम्मीद किया

बाहरी राज्यों में वह अपनत्व नहीं जो अपनी माटी में है

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लखनऊ : शहर सपने दिखाते हैं। जितना बड़ा शहर उतना बड़ा सपना Dream। Dream विकास, समृद्घि एवं बेहतर संभावनाओं का। यही Dream यहां के लोगों को बड़े शहरों तक खींच ले जाता है। लोग अपने घर-परिवार, नाते-रिश्ते से दूर अपने Dream के शहर में पहुंच जाते हैं।

पूरी जवानी खपा दी

विषम परिस्थितियों में रहकर वहां की समृद्धि एवं विकास में अपनी पूरी जवानी खपा देते हैं। इतने त्याग और योगदान के बाद जब संकट आया तो करोड़ों लोगों को Dream के शहरों ने नाउम्मीद किया। वह भी बुरी तरह।

अपनी सरकार अपनी ही होती है

अपने-अपने सपनों के शहर से लौट रहे लोग अब यही कह रहे हैं कि वहां कभी नहीं जाना है। अपने लोग और अपनी सरकार अपनी ही होती है और अगर सरकार का मुखिया योगी आदित्यनाथ जैसा हो तो क्या कहने हैं। हमें उनपर मुकम्मल यकीन है। लिहाजा अब बाकी का समय अपनों को देंगे। जो भी अपना हुनर है उसके जरिए प्रदेश की खुशहाली में योगदान देंगे। सुनिए उन श्रमिकों एवं कामगारों की जुबानी जो अलग-अलग शहरों से लौट रहे हैं।

मंजिल अलग अनुभव एक जैसा

अलग-अलग प्रदेशों से आने वाले कुछ ऐसे ही प्रवासी श्रमिकों एवं कामगारों से गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर मुलाकात होती है। सबकी मंजिल अलग-अलग थी, पर यात्रा के अनुभव एक जैसे।

हैदराबाद में रंगरोगन का काम करने वाले महराजगंज के रामाज्ञा हो या वीरेंद्र सबने उत्तर प्रदेश सरकार की व्यवस्था की तारीफ की। एक स्वर में कहा, ट्रेन की यात्रा में कोई दिक्कत नही हुई। यहां से सरकार हमको हमारे घर तक भी छोड़ेगी। कमोबेश यही बात लुधियाना से आने वाली बड़हलगंज निवासी युक्ति, गुंटूर से आए आजमगढ़ निवासी हरेंद्र ने भी कही।

माटी की अहमियत पता चली

महराजगंज के रामदीन लुधियाना में कपड़े का काम करते है। उनका कहना है, “महामारी काल में समझ आया कि अपने गांव अपनी माटी की अहमियत क्या होती है। बाहर रहने पर बहुत परेशानियां हैं। यहां आने पर पता चला कि सरकार रोजगार की भी व्यवस्था करेगी। अब ठीक है सबकुछ धीरे-धीरे रम जाएगा।”

बहुत सारा पैसा कमाने गए राहुल भी यही सोचते हैं कि दो पैसे कम मिले, लेकिन अपने गांव में रहकर जो छोटा-मोटा रोजगार होगा, उसी से पेट भर लेंगे। बाहरी राज्यों में वह अपनत्व नहीं है, जो यहां है। महामारी के समय में सब देखने को मिल गया है।

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