भारत में पत्रकारिता का विकास

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राजनैतिक पराधीनता के युग में हिन्दी पत्रकारिता ने जिस साहस और संघर्ष क्षमता का परिचय दिया था वह प्रशंसनीय है। जनमत निर्माण तथा जनशिक्षण की दिशा में हिन्दी समाचार पत्रों तथा पत्रकारों ने जिस मिशन भाव से कार्य किया वह मिशन भाव स्वतंत्रता के पश्चात समाप्त हो गया और उसके स्थान पर व्यावसायिकता का साफ प्रभाव दिखाई देने लगा।

पत्रकारिता का बदलता लक्ष्य

स्वतंत्रता के पूर्व हिन्दी पत्रकारिता जिन उद्देश्यों और लक्ष्यों के लिए समर्पित थी वह अब बदल गए। पहले पत्रकारिता का मूल लक्ष्य था देश की आजादी, मगर स्वतंत्र भारत में पत्रकारिता का लक्ष्य हो गया देश के आर्थिक सामाजिक विकास में जन-जन की सक्रिय-भागीदारी को प्रोत्साहन देना। राष्ट्र ने लोकतांत्रिक शासन पद्धति को स्वीकार किया। यह पद्धति तभी सफल हो सकती है जब आम जन इस शासन पद्धति से सीधे जुड़ें। इस प्रकार सत्ता और जनता के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करने का भी दायित्व पत्रकारिता के कन्धों पर आ गया है।

अंग्रेजी पत्रों का प्रभुत्व

पत्रकारिता के उद्देश्य में आए बदलाव के साथ-साथ इसके स्वरूप में भी परिवर्तन होने लगा। अब अधिकांश पत्र-पत्रिकाएं कुछ बड़े प्रकाशन समूहों तक ही सिमट गए हैं। एक लंबी अवधि तक अंग्रेजी भाषा के पत्रों का प्रभुत्व रहा। हिन्दी पत्रकारिता को अनुवाद प्रणाली पर निर्भर रहना पड़ा। संपादक और अन्य पत्रकार वेतन भोगी होने लगे और सेवा के आदर्श के बजाय अब व्यक्ति हित साधन को प्रमुखता दिया जाने लगा। प्रत्येक कार्य व्यावसायिकता से संचालित होने लगा। मित्र पत्रकारिता भी अपना सिर उठाने लगी।

आधुनिकता का समावेश

इतना सब कुछ पत्रकारिता विधा के विपरीत होने के बाद भी पत्र-पत्रिकाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी। 1980 के आस-पास पहली बार यह पता चला कि हिन्दी समाचार पत्रों की प्रसार संख्या अन्य भाषाओं के समाचार पत्रों की प्रसार संख्या से अधिक हो गई। समाचार संकलन से लेकर समाचारों के प्रस्तुतीकरण, मुद्रण तथा साज-सज्जा आदि सभी क्षेत्रों आधुनिकता का समावेश हुआ।

रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज पेपर्स की स्थापना

स्वतंत्र भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यक्तिगत जानकारी उपलब्ध कराने की दृष्टि से रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज पेपर्स कार्यालय की स्थापना की गई। इसके माध्यम से सन 1956 से लगातार भारत में प्रेस की स्थिति की विशद् जानकारी प्राप्त की जाती है। भारत में प्रेस की स्थिति के अध्ययन के लिए दो प्रेस आयोगों की भी स्थापना की गई। इस आयोगों ने अनेक महत्वपूर्ण सिफारिशें भी कीं।

पाठकों में इजाफा

अस्सी के बाद के वर्षों में यह पाया गया कि भारत में समाचार पत्र पढ़ने वाले पाठकों में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और कुल मिलाकर उस समय प्रत्येक भाषाओं में कुल समाचार पत्रों के प्रसार में 10.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। दैनिक समाचार पत्रों की संख्या में इस अवधि के दौरान लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई और तीन वर्ष पश्चात दैनिक समाचार पत्रों की वृद्धि दर लगभग 17 प्रतिशत तक पहुंच गई।

हिन्दी ने लहराया परचम

इस दौरान सर्वाधिक हिन्दी भाषा के पत्र प्रकाशित हुए उस समय हिन्दी पत्रों की संख्या थी 5,936 तथा दूसरी भाषाओं के पत्रों की संख्या क्रमश: इस प्रकार रही। अंग्रेजी 3,840, बंगला 1,582, उर्दू 1,372 तथा मराठी 1,131। दैनिक समाचार पत्रों के कुल समाचार पत्रों में हिन्दी (470) का प्रथम स्थान रहा जब कि उर्दू (148) मराठी (127) अन्य एक सौ से अधिक दैनिक पत्र के प्रकाशन अंग्रेजी (123) मलयालम (112) तथा तमिल (106) का प्रकाशन हुआ।

27% पाठकों पर हिन्दी का कब्जा

जहां तक प्रसार का सवाल है, हिन्दी पत्रों ने 45 लाख से ऊपर प्रतियों का वितरण कर पहला स्थान प्राप्त किया, जबकि 33 लाख से ऊपर प्रतियों का वितरण कर अंग्रेजी दूसरे स्थान पर रही इस प्रकार हम पाते हैं कि कुल पाठकों का 27 प्रतिशत से कुछ ज्यादा हिस्सा हिन्दी समाचार पत्रों के पास रहा, जबकि 20 प्रतिशत के आस-पास अंग्रेजी पत्रों का हिस्सा रहा।  दैनिक पत्रों के कुल प्रसार का 50 प्रतिशत से अधिक बड़े समाचार पत्रों के अधिकार में रहा। 71 बड़े दैनिक समाचार पत्रों का प्रसार प्रतिशत 50.1 रहा। 165 मझोले दैनिकों का प्रसार प्रतिशत 26 तथा 651 छोटे दैनिकों का प्रसार प्रतिशत 23.1 रहा।

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