पांच पॉइंट्स में मिलेगा क्लाइमेट चेंज का निचोड़…

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2020 सबके लिए खतरनाक रहा! और उसके साथ ही महामारी जैसा ही इशू बन चुका है क्लाइमेट चेंज। अमेरिका के अलग-अलग हिस्सों में वाइल्डफायर तो वही साइबेरिया में गर्मी के आलम ने ये तो साबित कर दिया कि जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया के हर कोने में ताबीज है।

चलिए पॉइंट वाइज सबकी बात करते है—

 

1) कार्बन डाइऑक्साइड लेवल-

carbon emissions

2020 में कार्बन डाइऑक्साइड का लेवल 417 ppm तक पहुंच गया था। ये 2020 के मई महीने में रिकॉर्ड किया गया है और दुनिया में ऐसा करीब 2000 साल पहले हुआ था। उस समय भी टेम्परेचर 2-4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था और सी लेवल दुनिया 25 मीटर ज्यादा था। ऐसा भी तब हुआ जब सबका कहना था कि लॉकडाउन का समय है और पर्यावरण में सुधार आ रहा है।

2) रिकॉर्ड गर्मी-

summer season

पिछले 10 सालों में ये साल सबसे गर्म रहा। औसतन ये साल 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था। यूरोप में ये सबसे गर्म साल था वही अगर दुसरे सालों से तुलना की जाए तो 2016 के बाद 2020 सबसे गर्म साल था।

हालांकि 2016 में एल नीनो का इफ़ेक्ट पूरी दुनिया पर पड़ा था। “एल नीनो” वह इवेंट था जब सी वाटर का टेम्परेचर बढ़ा था। लेकिन 2020 में तो ला नीना के इफेक्ट्स देखने को मिलने चाहिए थे जोकि नहीं हुआ। और गर्मी की वजह से अमेरिका में अभी तक का सबसे बड़ा वाइल्डफायर कैलिफ़ोर्निया और कोलोराडो में हुआ था।

3) आर्कटिक आइस-

arctic ice

इस गर्म साल कस सबसे ज्यादा एहसास साइबेरिया में आर्कटिक आइस पे पड़ा है। जून 2020 में ईस्टर्न साइबेरिया का टेम्परेचर 38 डिग्री सेल्सियस था जो कि अभी तक के इतिहास में 1898 के बाद सबसे ज्यादा था।

बर्फ जमने की प्रक्रिया को अर्क्टोक में होती है वो इस बार गर्मी की वजह से दो महीने लेट से हुई। यूरेशियन साइड में बर्फ अक्टूबर के आखिर तक नहीं जमी। 15 परसेंट आइस इस बार मल्ट हो गई है। माना जाता है कि दुनिया भर में पहले से ही बर्फ का नुकसान मौसम के मिजाज को बाधित कर रहा है, उसमे ऊपर से ऐसा हाल सबके लिए चिंताजनक है।

4) Permafrost-

Northern Hemisphere के पास पेर्माफ्रोस्ट यानि जमी हुई ज़मीन जोकि आम तौर पर 2 से 3 साल तक जमी रहती है वैसा इस बार नहीं हुआ। जब ईस्टर्न साइबेरिया का टेम्परेचर 38 डिग्री सेल्सियस पहुँच गया तब आर्कटिक के कई इलाकों का टेम्परेचर 45 डिग्री तक पहुंच गया था जिसकी वजह से permafrost पिघलने लगे है।

पर्माफ्रॉस्ट में CO2 और मीथेन सहित ग्रीनहाउस गैसों की एक बड़ी मात्रा होती है, जो वायुमंडल में छोड़े जाते हैं। पर्माफ्रॉस्ट के क्षेत्र में मिट्टी, जो साइबेरिया, ग्रीनलैंड, कनाडा और आर्कटिक के पार लगभग 23 मिलियन वर्ग किलोमीटर (8.9 मिलियन वर्ग मील) तक फैली हुई है, उसकी दोगुनी यानि 1,600 बिलियन टन कार्बन वायुमंडल में है। उस कार्बन का अधिकांश भाग मीथेन के रूप में संग्रहित होता है, जो ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव वाली एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जो CO2 से 84 गुना अधिक है।

5) Forest-

Forest

1990 से दुनिया ने 178 मिलियन ha km का फ़ॉरेस्ट खो दिया है जोकि लगभग लीबिया के साइज़ का होगा। पिछले तीन दशकों में, जंगलों की कटाई की दर धीमी हो गई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह उतना भी अच्छा नहीं है, ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए इसपर अंकुश लगाना बहुत ही ज़रूरी है।

भूमि पर कार्बन का अनुमानित 45% पेड़ों और जंगलों में संग्रहीत है। विश्व स्तर पर मिट्टी में सभी पौधों और वातावरण की तुलना में अधिक कार्बन होता है। जब जंगलों को काट दिया जाता है या जला दिया जाता है, तो मिट्टी परेशान होती है और कार्बन डाइऑक्साइड निकलता है।
WTO ने कार्बन को अवशोषित करने के लिए एक ट्रिलियन पेड़ लगाने के लिए इस साल एक अभियान शुरू किया था। हालांकि, पेड़ लगाने से CO2 उत्सर्जन के पिछले 10 वर्षों को रद्द करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इससे आप जलवायु संकट को हल नहीं कर सकता है।

क्लाइमेट चेंज को टैकल करने के लिए सबको अपने-अपने स्तर पर एक एहेम भूमिका निभानी पड़ेगी। 2020 मी SWOT एनालिसिस तो आपने देखी लेकिन 2021 वाली आपको खुद करनी पड़ेगी।

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