पत्रकारिता छोड़, खेती को बनाया पेशा

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देश में जहां उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद बेटियां पत्रकारिता जगत में अपना परचम लहरा रही हैं। वहीं करीब नौ साल तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद भूमिका कलम अचानक पत्रकारिता की पकी-पकाई नौकरी छोड़कर हरदा जिले में खेती-किसानी में जुट गई हैं। 

भूमिका कलम ने पत्रकारिता में मास्टर्स डिग्री लेने के बाद करीब नौ साल तक सक्रिय पत्रकारिता की। हिन्दी के प्रसिद्ध अखबारों में से एक दैनिक भास्कर में रिपोर्टिंग और फिर पत्रिका जैसे दैनिक में वरिष्ठ पदों पर काम किया और फिर अचानक पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर हरदा जिले में खेती शुरु की है। इस साल उनकी सोयाबीन की फसल अच्छी रही और अब वे अगली फसल की तैयारी में जुटी हैं।

जोखिम भरा फैसला

पत्रकारिता से संन्यास के बाद राजनीति में जाने वाली और अपना मीडिया संस्थान खोलने वाली महिला पत्रकार बहुत मिलेंगी, लेकिन खेती-बारी जैसा काम अपनाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। वे पुरुष पत्रकार, जिनके पिता किसान हैं, वो भी कभी कभार ही अपने गांव जाते हैं।

भूमिका कलम ने पिता के स्वर्गवास के बाद खेती की जिम्मेदारी संभालना उचित समझा। उनके पिता इंजीनियर होते हुए भी खेती के काम में लगे थे। भूमिका का कहना है कि वे अपने पिता के काम को ही आगे बढ़ा रही हैं। उनकी दो बहनें और है, जिनकी शादी हो चुकी है और वे दूसरे शहरों में रहती हैं।

अन्नदाता बनी पत्रकार

शुरू-शुरू में भूमिका ने पत्रकारिता के साथ-साथ खेती भी की थी। बाद में लगा कि खेती के लिए अधिक समय देना जरूरी है। ‘पत्रिका’ दैनिक में रहते हुए उन्होंने ‘अन्नदाता’ पृष्ठ शुरू किया। पत्रिका के लिए एग्रो क्लब भी बनाया। इन दोनों का बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिला। अब वे खुद अन्नदाता की श्रेणी में शुमार हो गई हैं।

छोटे किसानों की सहारा

भूमिका ने पत्रकारिता में जो समय दिया है उसका फायदा उन्हें खेती के दौरान मिलता है। मध्य प्रदेश के हरदा जिले में खिड़किया के पास पहटकला गांव में भूमिका के पास करीब 15 एकड़ के सिंचित खेत है। इन खेतों में वे फसल तो बोती ही है, और साथ ही किसानों से मिलकर उनकी समस्याएं भी हल करती है।

bhumika

भूमिका का कहना है कि मध्य प्रदेश में सारी की सारी सरकारी मदद बड़े-बड़े किसान हड़प लेते है और जब तक छोटे किसानों को सरकारी योजनाओं की जानकारी मिलती है, तब तक वे योजनाएं बंद हो जाती है। उनके जिले में ही 125 एकड़ जमीन के मालिक एक किसान ने सरकारी मदद से 13 बोरवेल खुदवा लिए, लेकिन छोटे किसान एक बोरवेल भी नहीं खुदवा पाए।

किसानों का बनाया समूह

भूमिका कलम ने अपने इलाके के किसानों के समूह बनाए है और अब वे अपने समूह में शामिल किसानों की फसल की मार्केटिंग खुद करने की योजना बना रही है। उनकी योजना है कि किसान इस बार आलू की फसल व्यापारियों को नहीं बेचेंगे और न ही बिचौलियों की मदद लेंगे। वे अपना आलू उन कंपनियों को बेचेंगे, जो आलू के चिप्स बनाती हैं। अगर वे कंपनियां भी राजी नहीं हुई, तो किसान खुद अपने आलू की चिप्स बनाकर बाजार में बेचेंगे।

 

 

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