जाते जाते कैंसर की दवा का तोहफा दे गए अंनत कुमार

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‘जब पता चला कि मां को कैंसर है तो डॉक्टर ने दवाई की हर रोज दो गोली खाने को कहा। लेकिन उसकी कीमत इतनी थी कि दवाई में ही पिता की पूरे महीने की सैलरी चली जाती। इसलिए पिता ने फैमिली का ध्यान रखते हुए मां को दो की बजाय एक ही गोली देने का फैसला लिया।’

केंद्रीय मंत्री रहे अनंत कुमार ने जब अपनी जिंदगी के इस चैप्टर को पलटा तो उनकी आंखें आंसुओं से भरी थी। जब वह प्राइम मिनिस्टर भारतीय जन औषधि योजना के बारे में बता रहे थे उस वक्त सीनियर जर्नलिस्ट अर्चिस मोहन भी वहां मौजूद थे। अर्चिस ने बताया कि अनंत कुमार ने कहा था कि मैंने महंगी दवाई की वजह से मां को दर्द में देखा है।

कुमार के पिता इंडियन रेलवे में सेकंड डिविजन क्लर्क

उस दर्द ने मुझे जन औषधि योजना का तेजी से विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। यह स्कीम 2011 में यूपीए सरकार ने शुरू की थी। इसमें मार्केट प्राइज से कम कीमत पर जेनेरिक दवाई बेची जाती है। 2014 तक 99 ऐसे स्टोर खुले थे जिसमें 400 जेनेरिक दवाई बेची जाती थी। अर्चिस मोहन ने बताया कि अनंत कुमार ने कहा कि मैंने इसके विस्तार को मिशन के तौर पर लिया। कुमार के पिता इंडियन रेलवे में सेकंड डिविजन क्लर्क थे।

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वह खुद कर्नाटक के हुबली में रेलवे वर्कर्स कॉलोनी में बढ़े हुए। कुमार ने बताया कि मेरे पिता घर में अकेले कमाने वाले थे। जब मैं छोटा था तो मां को कैंसर का पता चला। डॉक्टर ने उन्हें हर रोज दो गोली खाने को कहा। तब एक गोली 20 रुपये की थी। मेरे पिता 1200 रुपये महीने कमाते थे।

उनकी कमाई दवा की एक महीने की डोज की कीमत थी। पिता के पास दो विकल्प थे या तो मां को हर रोज दो गोली दें, लेकिन इससे परिवार में खाने का संकट आ जाता, या फिर मां को एक गोली दें। पिता ने वह किया जो उन्हें परिवार के लिए ठीक लगा। मां को दो की बजाय एक ही गोली दी।

ऐसा स्टोर खोलना है जिसमें 1000 दवाईयां मिलेंगी

अनंत कुमार ने कहा था, ‘मैंने मां का दर्द देखा है और इसलिए सस्ती दवाइयों को सब तक पहुंचाने के काम को मिशन के तौर पर लिया। अब देश भर में 3177 जन औषधि केंद्र हैं, जिनमें 600 जेनेरिक मेडिसिन और 150 सप्लिमेंट मिलते हैं।’ अनंत कुमार ने यह भी कहा था कि मेरा मिशन अगले साल तक देश के हर ब्लॉक में ऐसा स्टोर खोलना है जिसमें 1000 दवाईयां मिलेंगी। साभार

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