पुलवामा हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले जैश-ए-मोहम्मद का पूरा चिठ्ठा

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पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 से अधिक जवानों (jawans) ने देश के नाम अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी है। पूरे देश में शोक की लहर है तो वहीं दूसरे देश में भी इस घटना की निंदा की जा रही है। 

तो दूसरी तरफ इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद  ने ली है। आइए आज हम आपको जैश-ए-मोहम्मद के जन्म से लेकर अब तक के काले चिट्ठे के बारे में बताया जा रहा है।

दिसंबर 1979। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार के खिलाफ मुजाहिदीन हथियार उठाते हैं। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार को रूस का समर्थन हासिल होता है।

यही चीज अमेरिका की अफगान युद्ध में दिलचस्पी का कारण बनती है। अमेरिका, पाकिस्तान और सऊदी अरब मुजाहिदीन यानी भाड़े के लड़ाकों को छिपे तौर पर पूरा समर्थन देते हैं। अफगान सरकार का तख्ता पलटने के बाद बहुत से मुजाहिदीन लड़ाके बेरोजगार होते हैं।

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यहीं से शुरू होता है कश्मीर में आतंक के नए अध्याय का। पाकिस्तान इन लड़ाकों की मदद से कश्मीर में हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-अंसार नाम के आतंकी संगठनों की नींव रखता है। बाद में हरकत-उल-अंसार नाम बदलकर हरकत-उल-मुजाहिदीन (Hum-हम) के नाम से काम करता है। आईएसआई ने हम का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में शुरू कर दिया।

हम का एक सदस्य था मौलाना मसूद अजहर। 1994 में मसूद अजहर को भारत हम का सदस्य होने के नाते गिरफ्तार कर लेता है। अजहर को भारत की कैद से छुड़ाने के लिए आतंकी भारत के एक विमान का अपहरण कर लेते हैं। विमान को कंधार ले जाते हैं और अजहर समेत कुछ आतंकियों को रिहा करने की मांग करते हैं।

इस तरह से 31 दिसंबर, 1999 को अजहर रिहा हो जाता है। रिहा होने के बाद अजहर 31 जनवरी, 2000 को आतंक की एक नई फसल लगाता है, जिसका नाम जैश-ए-मोहम्मद रखता है। वैसे जैश-ए-मोहम्मद का मतलब होता है मोहम्मद यानी पैगंबर मोहम्मद की फौज।

जैश-ए-मोहम्मद का उदय

अपने भाषण में गैर मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलना और अफगान युद्ध में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना। ये दो चीजें मसूद अजहर को पाकिस्तान का चर्चित चेहरा बना देती है। उसको आईएसआई, अफगानिस्तान की नई-नवेली तालिबान सरकार और वहां शरण लिए हुए अल कायदा के आकाओं से मदद मिली। पैसे, हथियार और साजोसामान सब मुहैया कराए गए।

या यूं कह सकते हैं कि जैश-ए-मोहम्मद को खाद-पानी देने का काम आईएसआई ने किया। आईएसआई ने ही हरकत-उल-मुजाहिदीन के कई आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। थोड़े ही समय के अंदर जैश-ए-मोहम्मद आतंक की नई पाठशाला बन गई। इसकी विचारधारा पूरी तरह से अल कायदा और तालिबान की विचारधारा पर आधारित थी। अकसर अजहर अपने भाषणों में दोनों का नाम लेता है।

आतंकी कारनामों की लिस्ट

जैश-ए-मोहम्मद जम्मू-कश्मीर में अपने हमलों को लेकर कुख्यात होता रहा। यह खबरों में आया 19 अप्रैल, 2000 को। बादामी बाग, श्रीनगर स्थित भारतीय सेना के 15 कोर मुख्यालय पर हमला करके। इसके साथ ही जैश अंतरराष्ट्रीय जिहाद लीग का एक सदस्य बन गया। इन घातक हमलों और आतंकी क्षमता की वजह से आईएसआई के लिए लश्कर-ए-तैयबा की तरह ही जैश भी एक कीमती संपत्ति बन गई। अक्टूबर 2001 में इसने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले में भी इसका हाथ था। 18 सितंबर, 2016 को उरी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद शामिल था।

अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन की सूची में शामिल

अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद भारत ने अपने राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की। इसका असर हुआ कि 17 अक्टूबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित कर दिया। भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत ने अपने प्रयास और तेज कर दिए। सीमा पार से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ तेज कूटनीतिक अभियान चलाया गया। मुहिम रंग लाई और 26 दिसंबर, 2001 को अमेरिका ने भी इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया।

जैश में फूट और पाकिस्तानी शहरों पर हमला

जब पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह प्रतिबंध महज एक दिखावा था। जैश के आकाओं ने इसे नाम बदलकर अपना काम जारी रखने दिया। इसने नया नाम रख लिया खुद्दाम-उल-इस्लाम। उस पर भी पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। चूंकि 2002 में इसे गैरकानूनी संगठन करार दे दिया गया था तो जैश ने अल-रहमत ट्रास्ट नाम के चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में अपना काम शुरू कर दिया। उसी समय जैश की अंदरुनी कलह की वजह से एक नया संगठन अस्तित्व में आया। उसका नाम था जमात-उल-फुरकान। अब्दुल जब्बार, उमर फारूक और अब्दुल्ला शाह मजहर ने इसकी नींव रखी। मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा।

9/11 के बाद आतंक के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के शामिल होने के फैसले से जैश बौखला गया। अजहर ने मुशर्रफ के इस्तीफे की मांग की। इसके अलावा इस्लामाबाद, मरी, तक्षशिला और बहावलपुर में हमले कराए। नवंबर 2003 में पाकिस्तान ने हमलों के बाद खुद्दाम-उल-इस्लाम पर रोक लगा दी। इससे मसूद अजहर बौखला गया और मुशर्रफ के काफिले पर दो बार 14 दिसंबर और 25 दिसंबर, 2003 को हमला कराया। इसके बाद पाकिस्तान ने जैश पर सख्ती शुरू कर दी। हमले के आरोपियों को मुशर्रफ के दौर में ही फांसी दे दी गई। मसूद अजहर पर सख्ती की गई और उसे नजरबंद कर दिया।

फिर से उभार

भले ही यूएन और यूएस ने जैश चीफ अजहर की गतिविधियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया लेकिन उसे पाकिस्तानी मशीनरी का साथ मिलत रहा। अजहर दक्षिणी पंजाब के अपने गृह नगर बहावलपुर में खुलकर काम करता रहा। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी के बाद जैश का फिर से खुलकर उभार हुआ। 2014 के बाद से मसूद फिर से पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरा। भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगला।

साल 2014 में ही मुजफ्फराबाद में एक बड़े कार्यक्रम में अजहर ने हिस्सा लिया। मुजफ्फराबाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। यह मौका था आतंकी अफजल गुरु की किताब के विमोचन का। इसके बाद ही जम्मू-कश्मीर में फिर से जैश के सक्रिय होने के सबूत मिले। जुलाई 2015 में तंगधार इलाके में सीआरपीएफ कैंप पर हमला। नवंबर 2015 में आर्मी कैंप पर हमला। 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट आथंकी हमला। अक्टूबर 2017 में बीएसएफ कैंप श्रीनगर पर हमला। ये सब जैश के फिर से जिंदा होने के सबूत देते हैं।

चीन की वजह से बच जाता है अजहर

1968 में पाकिस्तान के बहावलपुर में जन्मे मसूद अजहर की आतंकी गतिविधियों की लम्बी लिस्ट है। अफगान युद्ध के समय वह मुजाहिदीनों से जुड़ा और बाद में भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा। भारत ने कई बार यूनाइटेड नेशंस सिक्यॉरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कोशिश की। हर बार चीन अड़ंगा लगा देता है। भारत ने मुंबई में 26/11 आतंकी हमले के बाद ही अजहर के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। लेकिन हर बार चीन की वजह से अजहर बच जाता है। साभार एनबीटी

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